2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर देश में महागठबंधन बनाम मोदी गठबंधन की चर्चा है. मीडिया का एक धड़ा महागठबंधन को कमजोर करने के लिए यह प्रचार करने में जुटा है कि मोदी लहर से डरकर सभी नेता एक हो रहे हैं. बीते दिनों आजतक के एक प्रोग्राम में इसी सवाल को लेकर पलटवार करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि "जब मोदी लहर है तो फिर मोदी जी 40 पार्टियों के साथ गठबंधन क्यों किए हुए हैं" तेजस्वी यादव के इस जवाब ने मोदी लहर की हवा निकाल दी.
दिल्ली आने वाली हर ट्रैन UP हो कर गुज़रती है
महागठबंधन को लेकर देश के दो राज्य सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. एक तरफ जहां 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश चर्चा में है, वहीं दूसरी ओर 40 लोकसभा सीटों वाला बिहार भी चर्चा में है. राजनीति में यह बात कही जाती है कि दिल्ली को आने वाली हर ट्रेन यूपी से ही होकर गुजरती है. इसका सीधा मतलब यही है कि जिस पार्टी को भी सत्ता में आना है उसे यूपी में 40 से ज्यादा सीटें हासिल करनी ही होंगे. यूपी में पिछले दो दशक से SP-BSP काफी मजबूत रहे हैं. दोनों ही दलों ने यूपी में अपनी राजनीति चमकाई है. इनकी राजनीति से जनता को कितना लाभ मिला यह एक अलग विषय है.
मोदी को हराना है तो (-) अखिलेश ही जाना होगा
गठबंधन को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा यूपी हो रही है. एक तरफ खबर यह है कि सपा बसपा कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल पीस पार्टी समेत सभी छोटे-छोटे दल एक साथ चुनाव लड़ सकते हैं. वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर गठबंधन को उत्तर प्रदेश में बड़ा करना है तो उसे (-) अखिलेश ही जाना होगा. जानकारों का मानना है कि (+) अखिलेश जाने से गठबंधन को 20 फीसद वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है जो BJP के लिए वरदान साबित होगा. उसे पहले की तरह तो नहीं लेकिन 20+ सीटें वह हासिल कर सकती है.
(-) कांग्रेस गठबंधन से बीजेपी को होगा फायदा
वहीं दूसरा धड़ा यह मानकर चल रहा है कि गठबंधन (-) कांग्रेस अगर हुआ तो महागठबंधन की नैया पार लग सकती है, क्योंकि कांग्रेस के अलग होने से बीजेपी के अपर कास्ट वोटों में सेंध लग सकती है और जो अपर कास्ट बीजेपी से नाराज है वह कांग्रेस की तरफ आ सकता है जिससे BJP कमजोर हो सकती है, जबकि (-) अखिलेश गठबंधन के वकील यह दलील दे रहे हैं कि अपर कास्ट हमेशा से थोड़ा-बहुत कांग्रेस के साथ रहा है जबकि अगर (-) अखिलेश गठबंधन होता है तो यादव को छोड़कर सभी ओबीसी समाज के लोग गठबंधन को वोट दे सकते हैं, क्योंकि समाजवादी पर इलज़ाम है कि उस के दौर में दूसरे ओबीसी समाज को उन का हक नहीं मिला है. पूरी की पूरी मलाई सिर्फ यादव समाज के लोगों ने ही खाई है, इसलिए 2017 में OBC समाज ने एक जुट हो कर भारतीय जनता पार्टी को वोट वोट किया था, जिसे गठबंधन को समझना होगा.
अखिलेश और कांग्रेस हो चुके हैं फ्लॉप
अगर गठबंधन इसे समझने में विफल रहा तो यह गठबंधन की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल होगी. जानकारों का यह भी मानना है कि 20017 में यादव समाज ने भी काफी बड़ी तादाद में सपा कांग्रेस गठबंधन को छोड़ कर बीजेपी को वोट दिया था. इसलिए गठबंधन को इन चीजों को ध्यान में रखकर राजनीतिक गणित को सामने रखकर ही कोई फैसला लेना होगा. अगर गठबंधन इसे समझने में विफल रहा तो यह उसकी राजनीतिक भूल होगी.
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