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असम में कथित तालिबान समर्थक पोस्ट करने पर यूएपीए के तहत गिरफ्तार 14 लोगों को जमानत

सोशल मीडिया पर कथित तालिबान समर्थक पोस्ट करने पर असम पुलिस ने 16 मुस्लिम लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया था। जिनमें से 14 लोगों को निचली अदालत और गुहावटी हाईकोर्ट ने यह कहते हुए ज़मानत देदी कि उन्हें जेल में रखने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है।

By: Abdus Samad
14 arrested under UAPA for allegedly posting pro-Taliban posts in Assam got bail

असम में कथित तालिबान समर्थक पोस्ट करने पर यूएपीए के तहत गिरफ्तार 14 लोगों को जमानत

 

नई दिल्ली: द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया पर कथित तालिबान समर्थक पोस्ट करने पर असम पुलिस ने 16 मुस्लिम लोगों को यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया था। जिनमें से 14 लोगों को निचली अदालत और गुहावटी हाईकोर्ट ने यह कहते हुए ज़मानत देदी कि उन्हें जेल में रखने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है।

 

इस मामले में सभी लोगों पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था, यह मामला इतना कठोर है कि इसके तहत गिरफ्तार लोगों लोगों को ज़मानत मिलना बेहद मुश्किल हो जाती है। परंतु अदालत का कहना है कि इन लोगों को जैल में रखने का कोई पर्याप्त कारण नहीं है। उन्हें जैल में रखना अनुचित होगा।

 

द वायर ने इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से बताया कि, असम के स्पेशल डीजीपी (लॉ एंड आर्डर) जीपी सिंह ने कहा था कि "21 अगस्त को सोशल मीडिया पर तालिबान के समर्थन में पोस्ट करने पर 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद दो और अन्य लोगों को इसी मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस पर कार्रवाई करने का आदेश मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा ने खुद दिया था।"

 

हालांकि अब इस मामले में लोकल अदालत और गुहावटी हाईकोर्ट ने 14 लोगों को जमानत देते हुए कहा कि इन लोगों के खिलाफ कोई भी पुख्ता आधार नहीं है। और न ही इन्होंने कोई ऐसी आपत्ति जनक पोस्ट की है, जिसके कारण इन्हें गिरफ्तार किया जाए।

 

इस मामले में जमानत पाने वाले लोगों में एआईयूडीएफ के पूर्व महासचिव और जमीअत के राज्य सचिव मौलाना फजलुल करीम कासमी सहित अनेक लोग शामिल हैं।

 

ज्ञात रहे कि पिछले कुछ सालों में यूएपीए के तहत गिरफ्तारी के मामले तेज़ी से बढ़े हैं, खासकर गिरफ्तारी के यह मामले एक विशेष समुदाय से ज़्यादा जुड़े हैं। जिसकी कई बुद्धिजीवियों ने आलोचना करते हुए कहा है कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार करना नागरिकों के साथ ज़्यादती है, यह नागरिकों की स्वतंत्रता पर आघात है। इसी कड़ी में एक बड़ा नाम सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस रोहिंटन नरीमन का है उन्होंने बीते 10 अक्टूबर को दिए अपने बयान में कहा था कि राजद्रोह कानून और यूएपीए को रद्द करना चाहिए ताकि देश आज़ादी से खुल कर सांस ले सके।

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