नई दिल्ली, 01 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट के 1994 के इस्माईल फ़ारूक़ी मामले में अपने पुराने फैसले को बरकरार रखा है, जिस से रामजनमभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की दिन-प्रतिदिन सुनवाई का रास्ता साफ़ हो गया है, लेकिन बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी में एक ऐसा वर्ग है जो चाहता है कि सांसद राजीव गांधी सरकार द्वारा शाह बानो मामले की तरह विवादित साइट पर मस्जिद का पुनर्निर्माण करे।
उन्हों ने मीडिया को जारी बयान में कहा कि हम बाबरी मस्जिद को कभी नहीं भूल सकते, बिलकुल उसी तरह जिस तरह हम मस्जिदे अक़्सा को नहीं भूले हैं. उन्हों ने कहा कि वहाँ मस्जिद थी और हर वह भारतीय जिस का संविधान पर विश्वास है वह वहां मस्जिद मानता है. गाज़ी ने कहा कि अगर वहां मंदिर था तो मुग़ल और आज़ादी के बीच 200 साल से ज़्यादा का वक़्फ़ा है, उस बीच इस मामले को हल किया जाना चाहिए था. उन्हों ने कहा कि 1947 वाली पोज़ीशन को बरक़रार रखा जाना चाहिए.
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सदस्य वसीम अहमद गाजी
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सदस्य वसीम अहमद गाजी ने मीडिया से बात चीत में बताया, "हम राजनेताओं पर दबाव डालने के लिए काम कर रहे हैं कि मस्जिद ताक़तवर लोगों द्वारा ध्वस्त की गयी थी और चूँकि हम अल्पसंख्यक हैं इस लिए हमारे साथ इंसाफ किया जाये और गिराने वालों को सज़ा मिले। इसलिए हम केवल वोट उसी को देंगे जो राजनीतिक दल हमारी मस्जिद बनाने का वादा करे. जिस तरह से कानून पारित करके संसद में शाह बानो मामले का फैसला हुआ उसी तरह मस्जिद का फैसला होना चाहिए।"
गाजी ने कहा कि शीर्ष अदालत में टाइटल सूट एक सिविल मैटर है, जिसे इस मामले में लंबित आपराधिक मामले के साथ तय किया जाना चाहिए। दोनों को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए। "हम कोशिश कर रहे हैं कि PM से मुलाक़ात कर के इस मामले को हल किया जाये.
उन्होंने कहा, "अदालत के फैसले के साथ, हम एक बार फिर उसी जगह पहुंच गए जहां से हमने शुरू किया था। यह बहुत ही भ्रमित निर्णय है। यह स्पष्ट नहीं है कि अदालत ने किस पर क्या फैसला दिया। यह सिर्फ एक भूमि विवाद नहीं है। जब तक आपराधिक मामला तय नहीं होता तब तक सिविल मामले का फैसला नहीं किया जाना चाहिए। "
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