विवेक बंसल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हम लोगों का जो इस समय मुद्दा है, जिस विषय को लेकर हम सब लोगों के बीच में उपस्थित हैं, मुख्य रुप से जो वर्तमान मुख्यमंत्री हरियाणा, आदरणीय खट्टर जी का वक्तव्य, जो आपने कल देखा होगा वीडियो के माध्यम से। कल करनाल में किसानों ने जो अपना खासतौर से, जो बहुत ज्यादा व्यथित और उद्दवेलित है, उन्होंने अपना विरोध प्रकट किया और जिसके कारण सभा या किसान पंचायत नहीं हो सकी, संभव नहीं हो सकी और उनका हैलिकॉप्टर नहीं उतर पाया। उसका दोष उन्होंने ठीकरा जो फौड़ा है, उसका दोष उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर मढ़ा है और बार-बार इस बात को लेकर इस बात की टिप्पणी कर रहे हैं कि कांग्रेस ने ये किया है। मैं ये बहुत ही स्पष्टता के साथ हमें इस बात पर घोर आपत्ति है, क्योंकि या तो सत्ता के नशे में वो जो किसानों का जो प्रतिरोध है, जो उनका विरोध है, वो उन्हें नहीं दिख रहा है, उसको अनदेखा कर रहे हैं, जिसका कहीं ना कहीं दोषारोपण वो राजनीतिक दलों पर कर रहे हैं।
शुरु से आप देख रहे हैं कि आदरणीय चाहे प्रधानमंत्री जी की बात हो, चाहे उनके जो मंत्री जो कृषि मंत्री हों या और जो भी मंत्री वार्तालाप में रहे, बार-बार उन्होंने जिस तरह की टिप्पणी की, चाहे उन पर जो भी पर्यायवाची, चाहे आतंकवादी और तरह-तरह की लेकर की और उसका कहीं ना कहीं बार-बार राजनीतिक दलों की ओर इशारा उन्होंने किया। तो ये अपनी असफलता, जो खासतौर से आज जो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के फलस्वरुप आज देखने को मिल रही है, जिस चीज को हमारे नेता, आदरणीय राहुल गांधी जी ने बार-बार कहा, हमारे जो सांसद थे, उन लोगों ने उसका संसद में और बाहर विरोध किया, जब ये बिल पारित हो रहा था और उनकी सिर्फ औऱ सिर्फ छोटी सी मांग ये थी कि इस बिल पर चर्चा होनी चाहिए। इतना बड़ा मुद्दा है, जो कहीं ना कहीं एक बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला है और जो अंदेशा था खासतौर से, हम लोगों को, कांग्रेस पार्टी को जो अंदेशा था कि पूंजीपतियों के हाथों में किसानों का भविष्य गिरवी रखा जा रहा है और यही कारण है कि सांसद हों या हमारे कांग्रेस पार्टी के सांसद हों, हम लोगों ने छोटी सी मांग थी, जिस पर उन्हें निष्काषित कर दिया गया और शायद ये बहुत वर्षों बाद हुआ है कि सांसदों ने वहाँ अपना उपवास रखा, बापू की प्रतिमा के नीचे और अपना विरोध प्रकट किया।
तो आज वही बात माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आज अपनी टिप्पणी में की है। तो मैं इन चीजों पर बिंदुवार चर्चा कर रहा हूं कि जो मुख्यमंत्री जी जो हैं, अपने व्यक्तित्व से इतने ज्यादा जो हैं, उसमें आवेष में, कहीं आवेग में कहिए कि वो जो बोल रहे हैं कि जनभावना क्या है। उन्हें ये नहीं पता कि 2 लाख किसान जो वहाँ बैठा हुआ है, वो अपना सब कुछ छोड़कर, अपना सब आराम छोडकर सड़कों पर है, तो कहीं ना कहीं उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। उसे कोई राजनीतिक दल प्रायोजित नहीं कर सकता है। हर व्यक्ति आज की तारीख में, उसे अपना भविष्य, उसकी जो चिंताएं हैं, उसको लेकर वो जागरुक है कि कौन, तो मेरा कहने का अभिप्राय है कि ना तो कांग्रेस पार्टी इसके पीछे है, ना कोई और। ये एक जनआंदोलन है और जन आंदोलन की जिसने भी बड़े-बड़े से शासक हैं, जिसने भी अनदेखी की है, उन शासकों को सत्ता से हटा दिया गया है। और आज यही हमें देखने को मिल रहा है कि जिस तरह के वक्तव्य हैं, वो मैंने कहा कि इधर-उधर, वो कहते हैं कि तू इधर-उधर की ना बात कर, बता कि कारवां क्यों लूटा? ये इधर-उधर की बात नहीं होनी चाहिए, मुद्दे पर बात होनी चाहिए। किसानों की भावनाएं, आज 45 से ज्यादा दिन हो गए, उन्होंने अभी तक जो खासतौर से किसानों ने जो मांग रखी थी। आज सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया Keep it in abeyance. What is the issue? ये कह दिया है सुप्रीम कोर्ट ने, सर्वोच्च न्यायालय ने। पर लेकिन हठधर्मी हो, जब सत्ता में मदमस्त हों, तो फिर उशके पश्चात उन्हें कुछ दिखता नहीं है और हम इसकी घोर निंदा करते हैं, घोर विरोध करते हैं और सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि किसानों की भावनाओं को समझिए आदरणीय मुख्यमंत्री जी और दोषारोपण मत करिए। कहीं ना कहीं आपसे अनदेखी हुई है, कहीं ना कहीं जितना आपको इस पर चिंतन करना चाहिए था, आपका तो खासतौर से कृषि प्रधान प्रदेश है, जिसने हरित क्रांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, पूरे देश को और जो आदरणीय प्रधानमंत्री जी आत्मनिर्भरता का नारा देते हैं, आत्मनिर्भर खाद्यान के क्षेत्र में बढ़ाने में हरियाणा और पंजाब के किसान की मुख्य भूमिका रही है, तो उसका सम्मान करते हुए, उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए था, बल्कि किसी पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए था।
कुमारी शैलजा ने कहा कि जैसा कि हमारे इंचार्ज श्री विवेक बंसल जी ने अभी आपसे बातचीत में कहा कि ये दोनों बाते हैं आज के दिन, एक तो जो कल हरियाणा के मुख्यमंत्री 'महापंचायत', उनकी नजरों में जो 'महापंचायत' कार्यक्रम करने गए और उसका क्या हश्र हुआ और दूसरी बात आज सुप्रीम कोर्ट की जो टिप्पणी है, उनके बारे में। हम हरियाणा के संदर्भ में ही बात करें, तो माननीय मुख्यमंत्री जी एक बार नहीं, बार-बार जो बात कहते हैं कि ये कानून तो वापस नहीं होंगे, यही इनका राजहठ है, जो इस पूरी स्थिति को इस मुकाम पर ले आया है। चाहे इनकी केन्द्र की सरकार हो, माननीय प्रधानमंत्री जी हों या राज्य सरकार हो, माननीय मुख्यमंत्री जी हों, इनका एक ही रवैया है, दोगली बात करना, दिखावा करना, ढोंग करना कि किसानों से बातचीत की जा रही है और दूसरी और अब ये रवैया कि हम झुकेंगे नहीं, हम ये कानून वापस नहीं करेंगे।
अब ऐसी स्थिति में जब सारा किसान सड़कों पर है, महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग ऐसे समय में इनका ये एलान कि हम जाकर महापंचायत करेंगे, जो कल इनकी फ़जीहत हुई, मुख्यमंत्री जी की, उनके ही गृह जिले में, जब आपको लोगों का विश्वास नहीं प्राप्त है, तो आप प्रदेश के सामने क्या दिखाना चाहेंगे? महापंचायत का एलान तो कर दिया, लेकिन उस पूरे क्षेत्र को आपने छावनी में बदल कर रख दिया और उसके बावजूद जो वहाँ पर हुआ, ये किसी के लिए भी लोकतंत्र में कोई सुखद बात नहीं हो सकती। लेकिन मैं साथ में ये कहना चाहूंगी कि ये रास्ता कहाँ से आया? जब हमारे किसान दिल्ली की ओर आ रहे थे शांतिपूर्वक, आज तक किसानों का आंदोलन शांतिपूर्वक किया गया, अमन से, चैन से। लेकिन जब किसान आ रहे थे, तो उनको रोकने की कोशिश किसने की, उन पर लाठियां किसने बरसाई, उन पर वॉटर कैनन किसने चलवाए, अश्रु गैस किसने छोड़ी जगह-जगह पर, ये हरियाणा में किया, हरियाणा सरकार ने किया। सड़कें किसने खोदी, किसानों ने नहीं, पब्लिक प्रोपर्टी, किसानों ने, मजदूरों ने डिस्ट्रोय नहीं किया, उसको नष्ट किया सरकार ने! सड़कें, हाईवे किसने खोदे, किसने नष्ट किए, ये सरकार ने किए। अगर कोई एक व्यक्ति भी पब्लिक प्रोपर्टी को हाथ लगाता है, तो उसके खिलाफ केस दर्ज किए जाते हैं, जब इतनी पब्लिक प्रोपर्ट डिस्ट्रोय किए तब आपने किसके खिलाफ केस दर्ज किए? कुछ नहीं किया ऐसा। अब कल अगर कोई किसानों ने वहाँ पर आकर अपनी बात करनी चाही तो आपको सुननी चाहिए थी। आपने तो उन्हें न्योता देना चाहिए था कि हम महापंचायत कर रहे हैं, आओ हरियाणा के किसान, मजदूरवासियों, मेरे साथियों, मेरे भाईय़ों-बहनों, मेरी बात सुनिए, मैं आपको विश्वास दिलाऊंगा कि ये कानून आपके हित में है, अगर आपको अपने ऊपर और लोगों पर विश्वास था। आपने नहीं किया, आपने छावनी में बदला, लोग वहाँ पर आए और क्या हुआ। अब उसका ठीकरा जैसे बंसल साहब कह रहे हैं, आप कांग्रेस पार्टी के लोगों पर फौड़ना चाह रहे हैं। कांग्रेस का अपना एक अलग राजनीतिक संघर्ष है, ये जन आंदोलन है कि आम किसान इसमें शामिल है। कांग्रेस की अपनी एक अलग, जो हमने पहले दिन से, राहुल जी ने इसका विरोध किया, हमारी पार्टी ने विरोध किया, हम अभी भी विरोध कर रहे हैं। हम अपने स्टेंड पर हैं कि ये तीनों कानून वापस होने चाहिएं और अभी 15 तारीख को हमारे राजनीतिक संघर्ष के तहत हम चंडीगढ़ में राजभवन का घेराव करेंगे।
हमारे प्रभारी विवेक बंसल जी वहाँ होंगे, हम सभी होंगे, समेत हरियाणा के कांग्रेसजन। हम घेराव करेंगे, ये हमारा राजनीतिक संघर्ष है, लेकिन किसान का जो एक जन आंदोलन हैं, आप उनकी आवाज ना सुनकर लोकतंत्र के साथ एक खेल कर रहे हैं, छलावा कर रहे हैं। और इसी ओर सुप्रीम कोर्ट ने आज इशारा भी किया है। आप बताईए कि जो कमेटी अब तक कही जा रही थी, मंत्रियों की थी, वो तो एक ढोंगी कमेटी साबित हुई। जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि उसका कोई कार्य नहीं हुआ, तो ये तो ढोंगी कमेटी ही साबित हो गई ना? आने वाले वक्त में सुप्रीम कोर्ट अगर एक कमेटी तय करता है, तो आगे वो बातचीत लेकर जाएंगे, इसमें कई बातें हैं, कई पहलू हैं, जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी। जितनी सहानुभूति और संवेदनशीलता सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई है आज के दिन, क्या इस सरकार ने कभी दिखाई, माननीय प्रधानमंत्री जी ने दिखाई, एक शब्द बोला? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा ठीक नहीं हो रहा, किसान ऐसे बैठे हैं, महिलाएं, बुजुर्ग, सुप्रीम कोर्ट ने कहा। सुप्रीम कोर्ट ने शायद ऐसा भी कहा, एगजेक्ट वर्ड आप लोग ज्यादा जानेंगे कि ऐसा ना हो कि हाथ खून से रंगे जाएं, शायद ऐसा भी कुछ कहा गया है। तो सुप्रीम कोर्ट जब ऐसी बात कह सकता है और ये सरकार क्या इतनी पत्थर दिल है कि इसको ये नजर नहीं आ रहा?
ये सब बाते हैं, कानूनी बातें अलग हैं, ये लोकतंत्र हैं, संवेदनशीलता चाहिए, सहानुभूति चाहिए। किसान हमारा है, अन्नदाता है, किसान-मजदूर आज वो क्यों बाध्य किया गया है कि वो खड़ा हो और अगर सुप्रीम कोर्ट ये कह सकता है कि these three law should be kept in abeyance, तो ये तो इशारा होता है कि सरकार को तुरंत उसी बात को समझते हुए, अगर थोड़ी सी भी समझ हो इस सरकार में, तो तुरंत प्रभाव से तीनों कानून इस सरकार को निरस्त कर देने चाहिएं।
लेकिन ये सरकार को आप जानते हैं, आगे हम देखेंगे, जब पूरा ऑर्डर आ जाएगा, तब उसको देखेंगे, पार्टी देखेगी और हमारी पार्टी की ओर से उसके बारे में रिएक्शन भी दिया जाएगा। लेकिन फिलहाल आज हम यही कहना चाह रहे थे कि हरियाणा में जो स्थिति पैदा हो गई है, उसके लिए पूरी - पूरी तरह से भाजपा सरकार जिम्मेदार है।
आप देख रहे हैं कि कभी कोई एमएलए खड़ा होकर बोलता है, कभी कोई एमएलए खड़ा होकर बोलता है, चाहे सत्ता पक्ष के हों, चाहे समर्थन देने वाले हों, चाहे आजाद जो हैं एमएलए हैं, चाहे वो हों, बार-बार लोग इसके खिलाफ बोल रहे हैं। तो आज के दिन हम समझते हैं कि हरियाणा सरकार को जिस तरह से स्थिति बन गई है और कल जो हुआ है, ये लोगों का विश्वास खो बैठे हैं और इन्हें तुरंत प्रभाव से माननीय मुख्यमंत्री जी को इस्तीफा देना चाहिए और ये सरकार, हरियाणा की सरकार जानी चाहिए।
इनेलो विधायक अभय चौटाला द्वारा इस्तीफा देने के सन्दर्भ में एक पत्र लिखने के बारे में पूछे एक प्रश्न के उत्तर में सुश्री शैलजा ने कहा कि ऐसा है कि इस्तीफे कंडिशनल नहीं होते, कंडिशनल नहीं होते हैं इस्तीफे, इस्तीफे तो इस्तीफे होते हैं। जिस तरह से आप जानते हैं जो लीगली टेनेबल (legally tenable) हों, लेकिन उन्होंने एक भावना प्रकट की है, आगे अकेले वो पार्टी के हैं। वो क्या फैसला लेते हैं, वो देखें। मुझे तो लगता है कि ना केवल भारतीय जनता पार्टी की सरकार से, उन सभी लोगों को वापस आना चाहिए, जो लोगों में विश्वास रखते हैं।
एक अन्य प्रश्न पर कि कल जिस तरह से हंगामा हुआ करनाल में, क्या आप इस तरह के हंगामे का समर्थन करती हैं? सुश्री शैलजा ने कहा कि मैंने तो पहले कहा, अपने ओपनिंग रिमार्क में मैंने कहा कि कल जो हुआ, ये एक बहुत दुखद घटना है, लेकिन इसका रास्ता को खुद सरकार ने दिखाया है। खुद सरकार ने इस तरह के कार्य किए और दिखाया और आपने वहाँ पर पुलिस छावनी क्यों बनाई? आपने तो सबको बुलाना चाहिए था, निमंत्रण देना चाहिए था, महापंचायत किसान का मतलब है कि ओपन इंविटेशन होना चाहिए था कि किसान लोग वहाँ आएं, मेरी बात सुनें, संवाद करें, उन्होंने कभी संवाद नहीं किया। हरियाणा कृषि बाहुल्य प्रदेश है, बल्कि हरियाणा के लोगों की भावना को लेकर माननीय मुख्यमंत्री जो को केन्द्र को बताना चाहिए था, यहाँ पर नेताओं को बताना चाहिए था और बल्कि इनको तो हरियाणा के लोगों की भावना को समझते हुए स्पेशल सेशन बुलाकर तीनों कानूनों के खिलाफ रेजोल्यूशन पास करना चाहिए और अपनी केन्द्र सरकार को बताएं कि हरियाणा के लोग इनको बिल्कुल भी मान्यता नहीं दे रहे और केन्द्र को इसके बारे में दोबारा सोचना चाहिए।
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