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कांग्रेस नेता रागनी नायक बोलीं: दम न तोड़े कहीं भूख से बचपना

बहुत दुख होता है मुझे ये कहते हुए कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ये कहते थे कि पंक्ति में खड़े हुए अंतिम व्यक्ति के आंसू पोंछना राजनीतिक जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। मोदी सरकार केंद्र में बैठी हुई और भाजपा की तमाम प्रदेश सरकारें इस देश के गरीब, हाशिए पर खड़े हुए, मजलूम किसान, नौजवान, महिलाएं इन सभी को खून के आंसू रुलाने का काम कर रही है। चूंकि आज मैंने प्रेसवार्ता यू तो बहुत सारे मसले हैं जो मैं आपके सामने रख सकती हूं पर प्रेसवार्ता की शुरुआत में 37 साल के नौजवान, जिसने अपनी जान दे दी, चूँकि बात वहाँ से शुरु हुई है तो मुझे ये भी कहना होगा कि किसानों के दर्द पीड़ा कठिनाईयों और परेशानी की निष्ठुरता की पराकाष्ठा अगर आप देखना चाहते हैं तो महाराष्ट्र में, महाराष्ट्र सरकार की जो किसान विरोधी नीतियां रही हैं उसके ऊपर एक हल्की सी नजर अगर डाली जाए तो वो सामने आ जाएगा।

By: वतन समाचार डेस्क
फाइल फोटो
  •  कांग्रेस नेता रागनी नायक बोलीं: दम न तोड़े कहीं भूख से बचपना

 

रागिनी नायक ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा- आज की प्रेसवार्ता शुरु करने से पहले लाजमी है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जी ने जिस तरह से निम्न स्तरीय, अभद्र भाषा का प्रयोग करके कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी जी के ऊपर कटाक्ष किया है, आज कांग्रेस पार्टी के मंच से मैं उसकी कठोर निंदा करुँ, कड़ी भर्त्सना करुँ और इस बात को भी पुरजोर तरीके से आप लोगों के सामने रखूं कि इस देश में “ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारि, सकल ताड़ना के अधिकारी” इस विचारधारा का परचम जो संघ से जुड़ा हुआ हर व्यक्ति उठाकर चल रहा है, चाहे वो संघ का कार्यकर्ता हो, या न हो, प्रचारक हो या रहा हो, देश के संवैधानिक पद पर बैठा हुआ मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री ही क्यों न हो, जो इस महिला विरोधी सोच का परचम देश में फहराने की कोशिश कर रहा है, कांग्रेस पार्टी उस हर व्यक्ति, संघ के हर उस कार्यकर्ता, नेता और संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति से लोहा लेगी, सड़क से लेकर विधानसभा के सदनों तक और संसद तक।

ये इसलिए जरुरी है कि इस देश की आधी आबादी का सम्मान, इस देश की आधी आबादी का अधिकार सुरक्षित रहे। इस देश में, उसके ऊपर आंख उठाने का, उंगली दिखाने का काम कोई कर न पाए। सोनिया गांधी जी का अपमान तो किया ही है, साथ में मैं समझती हूँ कि इस देश की नाराी शक्ति का भी अपमान किया है और आगामी चुनाव में भी जो लड़कियाँ, महिलाएँ, बेटियाँ इस देश की देख रही हैं, कि खट्टर जी बढ़ती हुई बलात्कार की घटनाओं को तो कम कर नहीं पाते, 42 प्रतिशत बलात्कार की घटनाएं बढ़ जाती हैं और अपनी गलतियों को छुपाने के लिए देश के सर्वोच्च नेताओँ में से एक, पर इस तरह से आक्षेप लगाने का काम करते हैं जो कि सार्वजनिक और राजनीतिक शोभनीयता के परखच्चे उड़ाता है, ये कितना शर्मनाक है, ये कितना निर्लज्ज कार्य है, मैं समझती हूँ कि आप सभी लोग जो इस प्रेसवार्ता में बैठे हैं, इस बात को पूर्ण रूप से समझते होंगे और इस बात पर बहुत लंबी टिप्पणी इस पर की जाए मैं वो राय भी नहीं रखती। तो आजके मुख्य मुद्दे पर मैं आगे बढ़ना चाहती हूँ।

ये तस्वीर (फांसी पर लटके हुए एक व्यक्ति की तस्वीर दिखाते हुए) हर मीडियाकर्मी ने, हर जागरुक नागरिक ने, मन में संवेदना रखने वाले हर व्यक्ति ने देखी होगी तो उसकी आँख में आंसू जरुर आए होंगे। महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में इस व्यक्ति ने, जहाँ पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फड़णवीस जी अपने गाल बजाने का काम कर रहे थे, उससे मात्र दस किलोमीटर दूर भाजपा के नारे, ‘पुने आलुया आपले सरकार’ यानि के अपनी सरकार को फिर लाया जाए, Let us bring this government to power again. वाली टीशर्ट पहनकर आत्महत्या की है। भाजपा की महाराष्ट्र में सरकार की कथनी और करनी के बीच के फर्क को उजागर करने वाला, इससे ज्यादा प्रत्यक्ष प्रमाण क्या मिलेगा, जो दिखाए, जो चरितार्थ करे, जो सामने रखे और इसीलिए जब मैंने ये तस्वीर देखी, मैं दोबारा दिखाऊँगी आपको (दोबारा तस्वीर दिखाते हुए) जब मैंने ये तस्वीर देखी, तो मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आईं। जब मैं एनएसयूआई में आई थी, पहली बार छात्र नेता के रूप में मेरे जीवन की शुरुआत हुई, एक नए जीवन की, तो ये पंक्तियाँ मैंने पढ़ी और मैं समझती थी कि किसी के भी राजनीतिक जीवन का ये लक्ष्य होना चाहिए-

इसीलिए राह संघर्ष की हम चुनें,

कि जिंदगी आंसूओं में नहाई न हो,

शाम सहमी न हो, रात हो न डरी,

भोर की आँख फिर डबडबाई न हो,

दम न तोड़े कहीं भूख से बचपना,

रोटियों के लिए फिर लड़ाई न हो,

इसलिए राह संघर्ष की हम चुने,

कि जिंदगी आँसूओं में नहाई न हो

बहुत दुख होता है मुझे ये कहते हुए कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ये कहते थे कि पंक्ति में खड़े हुए अंतिम व्यक्ति के आंसू पोंछना राजनीतिक जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। मोदी सरकार केंद्र में बैठी हुई और भाजपा की तमाम प्रदेश सरकारें इस देश के गरीब, हाशिए पर खड़े हुए, मजलूम किसान, नौजवान, महिलाएं इन सभी को खून के आंसू रुलाने का काम कर रही है। चूंकि आज मैंने प्रेसवार्ता यू तो बहुत सारे मसले हैं जो मैं आपके सामने रख सकती हूं पर प्रेसवार्ता की शुरुआत में 37 साल के नौजवान, जिसने अपनी जान दे दी, चूँकि बात वहाँ से शुरु हुई है तो मुझे ये भी कहना होगा कि किसानों के दर्द पीड़ा कठिनाईयों और परेशानी की निष्ठुरता की पराकाष्ठा अगर आप देखना चाहते हैं तो महाराष्ट्र में, महाराष्ट्र सरकार की जो किसान विरोधी नीतियां रही हैं उसके ऊपर एक हल्की सी नजर अगर डाली जाए तो वो सामने आ जाएगा।

यूं तो मैं समझती हूँ कि किसानों की आत्महत्या को हम रोमांचकारी आंकड़ों में जो तब्दील कर देते हैं वो बात सही नहीं है, पर कई बार परेशानी को पूर्ण रूप से समझने के लिए कुछ तथ्यों का सामने आना भी बहुत जरुरी है। जो कृषि विकास दर है महाराष्ट्र की वो एक प्रतिशत भी नहीं है, 0.4 एग्रीकल्चरल ग्रोथ रेट है। पिछले पांच साल में 12,800 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, अगर आप औसत लगाएंगे तो करीब-करीब 8 किसान आज भी हर रोज आत्महत्या कर रहे हैं।

फसल बीमा योजना, जिसकी मोदी जी ने अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनते हुए महाराष्ट्र में बहुत तारीफ की थी, उसका नतीजा ये है कि 36 प्रतिशत ड्यूज जो कि सबसे ज्यादा हैं पूरे देश में आज महाराष्ट्र में ही हैं। इतनी विफल योजना ये रही  महाराष्ट्र में 2017 में जब ये योजना लागू की गई थी तो 19 लाख किसानों ने अपने आप को इससे दूर कर लिया और कहा कि हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। क्योंकि ये अंततः इंश्योरेंस कंपनी का और कॉरपोरेट सैक्टर की जेब भरने का ही काम करती है। तो बड़ी बात ये है कि फड़णवीस सरकार सत्ता में काबिज हुई ये वायदा करके कि हम किसानों की आय को, एग्रीकल्चरल इंकम को दोगुना करेंगे और अगर आज यह सरकार कोई चीज दोगुनी कर पाई है तो वो केवल और केवल किसानों की आत्महत्या के आंकड़े हैं, जिन्हें ये सरकार दोगुना कर पाई है।

अब ये लड़का, जिसने आत्महत्या की, इसने ये कदम उठाया मजबूरी के कारण। उसके बाद जो पीछे परिवार छूटा उसका क्या, क्या सरकार उसकी मदद कर पाएगी? अगर हम इतिहास उठाकर देखें, पिछले पांच साल का महाराष्ट्र मे तो आप पाएंगे कि रिलीफ एंड रिहैबिलिटेशन मिनिस्टर सुभाष देशमुख, विधानसभा में खड़े होकर सदन में कहते हैं कि 12,800 किसानों ने आत्महत्या की है और हम कुल 6,800 परिवारों को आर्थिक मदद दे पाएं है। तो पहली बात आप ऐसी नीति अपनाते नहीं कि किसान आत्महत्या करने से गुरेज करे और अगर कोई किसान ऐसा कदम उठाता भी है तो  उसके बाद उसके बचे परिवार को किसी भी तरह की आर्थिक मदद पहुँचेगी ऐसी कोई नियमावली महाराष्ट्र सरकार की नहीं है।

ये तब है जब हर तीसरा कृषि परिवार कर्ज के बोझ तले दबा है। 80 हजार रुपए से लेकर 1 लाख 20 हजार रुपए का कर्ज है जिसके कारण ये किसान अपनी जान गंवा बैठा। थोड़ी सी नजर अगर हम हरियाणा के ऊपर भी डालें तो वहाँ के कृषि मंत्री धनखड़ जी का तो बयान आप लोगों को याद ही होगा कि जो किसान आत्महत्या करता है वो किसान कायर है और खट्टर जी तो गलत बयानबाजी के मैं समझती हूँ अब मास्टरमाइंड बनते जा रहे हैं। उन्होंने तो ये कहा था कि किसानों के ऋण को कभी माफ करना ही नहीं चाहिए क्योंकि ये कामचोर और हरामखोर बनाता है किसान को। तो इस देश के अन्नदाता के प्रति जिस तरह की संवेदनहीनता भाजपा की सरकार में है, उसके चलते तो यही लगता है कि किसानों की आत्महत्या बहुत जल्दी रुकने वाली नहीं है।

थोड़ा सा इतिहास के पन्नों को पलटती हूँ कि सन 1920 और 1921 में अवध में एक बड़ा किसान आंदोलन हुआ था, जिसके संदर्भ में पंडित नेहरु ने अपनी आत्मकथा में कुछ लिखा, उन्होंने लिखा है कि मुझे सबसे बड़ा आश्चर्य इस बात पर हुआ है कि शहर वालों को इतने बड़े आंदोलन का  पता तक नहीं था, किसी अखबार में उस पर एक खबर भी नहीं आई थी, उन्हें देहात की बातों में कोई दिलचस्पी न थी। हम अपने लोगों से किस तरह दूर पड़े हए हैं, तो जो बात अंग्रेजों के गुलाम भारत में किसानों की दशा के लिए कही जाती थी, 1917 के बाद से जिस तरह से कांग्रेस ने अपने आप को किसान आंदोलन से जोड़ा, चंपारण के बाद से, किसानों के हालात को सुधारने की कोशिश की अगर वो हालात जो अंग्रेजों के समय पर थे, आज के संदर्भ में भी ये  कहा जाए कि वो शत-प्रतिशत लागू होते हैं तो मैं समझती हूं कि ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, मोदी राज में भी वही हो रहा है जो गुलाम भारत में हो रहा था किसानों के साथ और किसानों के संघर्ष के बारे में सरकार मुख्य रूप से विमुख है, मीडिया काफी हद तक मौन रहती है और सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि बापू, जो ट्रस्टीशिप की बात करते थे, उन्हीं के देश में जो खाए, पिए, अघाए, के संपन्न लोग हैं, उनको शायद किसानों के बारे में उतनी चिंता है भी नहीं। इसीलिए किसानों की समस्या मुख्यधारा में बहुत समय तक रह नहीं पाती। एक आत्महत्या होती है तो खबर बनती है, अगले दिन हम और आगे निकल जाते हैं।

तो जैसा कि मैंने शुरु में कहा, किसानों की आत्महत्या को एक रोमांचकारी आंकड़े में बदल देना आजकल हमारी फितरत है। उद्योगपतियों का राहुल जी ने कल भी कहा, लाखों करोड़ रुपया माफ किया जाता है औऱ किसानों का ऋण माफ करने के लिए भाजपा सरकारें 10-20-50 रुपए का मजाक करती हैं, जिसके ऊपर कई बार हमने खबर देखी और मैं बार-बार गांधी जी पर आ रही हूं, क्योंकि एक और बात मैं आज की प्रेसवार्ता में कहना चाहती हूं।

पहले तो ये सोचना कि जिस देश में सत्य, अहिंसा और अभय को एक अमोघ अस्त्र बनाकर गांधी जी ने चंपारण में इस्तेमाल किया, पहला किसान आंदोलन जो था, नील के शोषण के धब्बे के खिलाफ उस देश में जहाँ पर किसानों के आंदोलन को अंग्रेजों के शोषण से उनके कठिनाइयों को निकालकर लाना, उबारना ये पूरी दुनिया में गांधी जी ने मानक स्थापित करके दिखाया। उनके ही देश में आज किसानों की दुर्गती है, पर उससे भी ज्यादा चिंताजनक तो ये है कि आज महात्मा गांधी जी की विरासत की देश में क्या दुर्गती है।

गुजरात की तरफ ले जाना चाहूँगी, आप इस बात से वाकिफ होंगे कि ‘सुफलाम शाला विकास संकुल’ के बैनर तले कुछ स्कूल चल रहे हैं गुजरात में, वो स्कूल सैमी अटौनमस हैं पर सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त हैं, यानिके सरकार आर्थिक मदद करती है इन स्कूलों की और इन स्कूलों के नौंवी कक्षा के प्रश्न पत्र में ये पूछा गया छात्रों से कि गांधी जी ने आत्महत्या क्यों की? अब देखिए गांधी जी के बारे में हर तरीके की अफवाह फैलाना, भ्रामक जानकारी देना, और कॉन्सपिरेसी थ्योरीज का प्रचार करना ये भी मैं समझती हूँ कि संघ से जुड़े हुए जो तमाम कट्टरपंथी विचारधारा वाले जो संगठन हैं, उन्होंने इसका बीड़ा अपने सिर पर उठा लिया है और दुख की बात ये है कि पोस्ट ट्रुथ के इस युग में हिंदू कट्टरपंथ की बहुकोणीय विचारधारा न सिर्फ अपने असत्य के प्रयोगों में संलग्न है, बल्कि No one killed Gandhi को एक शाश्वत सत्य के रुप में दिखाना चाहती है।

No one killed Gandhi, अब जब तक No one killed Gandhi स्थापित नहीं होगा, तब तक गोड़से, सावरकर, हिंदु महासभा और संघ के दामन पर लगा, सबसे बड़ा दाग और उनके चेहरे पर लगी सबसे बड़ी कालिख का धब्बा कैसे पुछेगा। तो ये पूरा एक बड़ा षड़यंत्र है और मैं समझती हूं कि  इसके हमने कई रुख देखें, मैं आपको थोड़ा पीछे ले जाऊंगी, याद कीजिएगा, आप अभिनव भारत ट्रस्ट के एक ट्रस्टी थे पंकज फडणीस, जो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने गए थे कि गांधी को तीन नहीं चार गोलियाँ मारी गईं थी इसलिए गांधी हत्या के पूरे प्रकरण की दोबारा तफ्तीश की जाए, सुप्रीम कोर्ट ने फटकार कर भगा दिया और कहा कि It is going to be a futile exercise हम वो भी नहीं भूले हैं कि कैसे हिंदु महासभा की एक नेता ने गांधी हत्या के पूरे दृश्य को दोबारा से रेखांकित करके गोड़से का महिमा मंडन किया। हम ये भी नहीं भूल सकते हैं कि प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि गोड़से देश भक्त है, उसके बाद मोदी जी ने कहा मेरे मन में बहुत पीड़ा हुई, लेकिन उस पीड़ा के बाद प्रज्ञा ठाकुर के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं की गई। हम ये भी नहीं भूल सकते हैं कि 2 अक्टूबर को जब पूरा देश ही नहीं, पूरा विश्व गांधी जी की 150वीं जयंती मना रहा था, तब हमारे देश में नेशनली ट्रैंड करने वाला नंबर दो का जो ट्रेंड था, वो गोड़से अमर रहे था। मैं जानना चाहती हूँ कि इस देश में तो सिडीशन चार्जेस का दौर चल रहा है लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ उनके हत्यारे को देशभक्त बताकर उनका महिमा मंडन जो किया जाता है, ट्वीटर पर जो ट्रैंड चलाया जाता है और चलाने वाले ऐसे लोग हैं, जिनको स्वयं प्रधानमंत्री जी फॉलो करते हैं, किस पर सिडीशन चार्ज लगाना चाहिए?

मैं जानना चाहती हूँ कि नरेन्द्र मोदी जी, मोहन भागवत जी, अमित शाह जी और उनके साथ के तमाम लोग गांधी के साथ खड़े हैं या गोड़से के, राम के साथ खड़ें हैं या रावण के, अहिंसा के पुजारी के साथ खड़े हैं या उसके हत्यारे के क्योंकि मोदी जी मुंह में राम और बगल में छुरी नहीं चलेगा देश में। मुंह में गांधी और मन में गोड़से नहीं चलेगा। इस देश में आप गांधी जी के चश्में को प्रतीक बनाते हैं, पर नजरिया आपका गोड़से का रहेगा, ये देश में नहीं चलेगा।

अंततः इन दोनों मुद्दों के साथ मैं समझती हूँ कि आज की इस प्रेस वार्ता को मैं खत्म जरुर करूँगा पर ये समझना जरुरी है चाहे महिलाओं का विरोध हो, चाहे किसानों के प्रति विमुखता हो, चाहे नौजवानों की बेरोजगारी की बढ़ती हुई संख्या हो, या फिर महात्मा गांधी को कहीं न कहीं धरातल पर औंधे मुंह गिराने की चेष्टा हो, इसमें मोदी सरकार पूरी तरह से संलग्न है, क्योंकि संघ ऐसा देश बनाना चाहता हैं, जहाँ पर गांधी की उदारता, गांधी की मानवता और गांधी की अहिंसा को गोड़से की विचारधारा वाली संकीर्णता, हिंसा और कारयरता के सामने झुका हुआ दिखा सकें और न सिर्फ ये कांग्रेस पार्टी का बल्कि इस देश के हर नागरिक का मैं ये उत्तरदायित्व समझती हूँ कि ऐसी सभी विभाजनकारी शक्तियों को आड़े हाथ लेने का बीड़ा उठाएं।

On the reaction of the Congress party on the story about NCP leader and former Union Minister Shri Praful Patel, Ms. Ragini Nayak asked has the matter been investigated? Is that the ED has sent him a notice. I think we should wait a while before making conjectures of that sort and I think such a thing would unfold with time and to say that Shri Praful Patel was guilty of an offence for which ED has sent a notice, I think would be an extremity. So, we must wait for some time. Let the investigation be over in due course of time. Only then, I think we should make an informed comment on the subject.

प्रधानमंत्री जी के धारा 370 पर दिए वक्तव्य से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्रीमती नायक ने कहा कि मुझे ऐसा लगता है और ये आप लोग भी महसूस कर रहे होंगे कि देश में जो पॉलिटिकल नेरेटिव है, वो बहुत हद तक चेंज हो रहा है। आप देखेंगे सड़क पर चलते हुए अगर आपको कोई महिला मिलेगी तो वो कहेगी कि प्याज, टमाटर का भाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। आप किसी नौजवान से बात करेंगे तो कहेंगे कि  पकौड़ा तलने के लिए तो प्याज भी नहीं बची अब क्या किया जाए? आप देखेंगे तो आपको ये 38 साल का लड़का, जिसने भाजपा की टीशर्ट पहनकर आत्महत्या कर ली। आप देखेंगे कि बड़े-बड़े अर्थशास्त्री लिख रहे हैं कि अर्थव्यवस्था का न सिर्फ बंटाधार हुआ है, बल्कि इस बीच में फंसी हुई अर्थव्यवस्था को वैतरणी के पार लगाया ही नहीं जा सकता। आप पाएंगे कि निर्मला सीतारमण के पतिदेव आर्टीकल लिख रहे हैं ‘दा हिंदू’ में और ये कह रहे हैं कि आप कटाक्ष करना छोड़िए नेहरुवियन, सोशलिस्ट मॉडल ऑफ इकॉनमी पर कुछ अपना तो अल्टरनेट लेकर आइए, अर्थव्यवस्था को कैसे बचाएंगे? ये बताइए और जब वो भी उपाय सुझाते हैं तो उसमें नरसिम्हाराव और मनमोहन सिंह, कांग्रेस के नेताओं की तरफ ही उनका ध्यान जाता है। तो मैं समझती हूँ कि नरेन्द्र मोदी जी ये जानकर जनता मुख्य मुद्दे जो दैनिक जिंदगी के हैं, रोजमर्रा की जिंदगी के हैं, वो उठा रही हैं, बार-बार 370 या राम मंदिर या किसी और भावनात्मक मुद्दे के प्रति जनता को भटकाने की और बरगलाने की जरुर कोशिश करेंगे, लेकिन जैसा कि वो कहा जाता है कि आप कुछ लोगों की आँख में पूरे समय धूल झोंक सकते हैं, सभी लोगों की आँख में कुछ समय धूल झोंक सकते हैं, पर आप सभी लोगों की आँख में हर समय धूल नहीं झोंक सकते, मुख्य मुद्दे सतह पर आएंगे और चुनाव उन्ही पर लड़ा जाएगा।

एक अन्य प्रश्न पर कि उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने आज महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार में कहा कि आप कमल का बटन दबाएंगे, तो अपने आप पाकिस्तान पर परमाणु बम गिरेगा, क्या कहेंगी, श्रीमती नायक ने कहा कि आप देखिए, मैं तो कहूँगी कि इतिहास दोहराया जाता है, अमित शाह जी ने कहा था, बिहार के चुनाव से पहले कि अगर आप किसी और दल को वोट देंगे, तो पाकिस्तान में बम पटाखे फूटेंगे और इस तरीके का भाषण जब दिया जाता है तो इसका मतलब है कि आप धरातल पर किसी बड़ी योजना को सफल बनाने में नाकारा रहे हैं, जनता ने बिहार में जो नतीजा दिया था और जिस तरीके की हार का सामना भाजपा को करना पड़ा था, मैं समझती हूँ कि केशव चंद्र मौर्य जी भी याद कर रहे हैं कि अब वही दिन दोहराए जाएंगे, हरियाणा में भी, महाराष्ट्र में भी। बोलने दीजिए, परमाणु बम गिराने का दौर चला गया है, किसी के भी लिए। मैं समझती हूँ कि आज परमाणु बम बेरोजगारी पर थोड़ा गिराया जाए, किसानों की आत्महत्या पर गिराया जाए, महिलाओं पर हो रहे बलात्कारों पर गिराया जाए, देश की अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए परमाणु बम गिराने की जरुरत नहीं है। देश को विकसित बनाने के लिए परमाणु बम को गिराने की जरुरत नहीं है, अपनी जिम्मेदारी समझकर देश को विकास के रास्ते पर प्रगतिशील करने की जरुरत है।

 

 

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