नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के पास महज एक सप्ताह और कुछ दिन का समय ही बचा है. वह दो अक्तूबर को रिटायर हो जाएंगे। अगर बीते दो दशकों की बात की जाए तो मिश्रा के अलावा ऐसा कोई दूसरा मुख्य न्यायाधीश नहीं रहा है जिसने इतनी अधिक संवैधानिक पीठों का नेतृत्व किया हो।
मिश्रा ने ऐसी कई बेंचों का भी नेतृत्व किया है, जो देश की राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थिति के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। समलैंगिकों को अपराध बताने वाली धारा 377 को हटाने का फैसला उन कि बेंच ने दिया जिसके बाद वह पूरे देश में छा गए।
अब रिटायरमेंट में महज नौ दिन रह गए हैं, जिनमें से छह दिन ही काम-काज के हैं। इन छह दिनों में सीजेआई के नेतृत्व वाली अलग-अलग संवैधानिक पीठ की ओर से आठ अहम मामलों की सुनवाई की जानी है। आधार से अयोध्या मामले की सुनवाई होनी है.
उनकी बेंच में सुप्रीम कोर्ट के दस जज, जस्टिस कुरियन जोसेफ, एके सीकरी, आर.एफ. नरीमन, ए.एम. खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण, संजय किशन कौल, एस. अब्दुल नजीर और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।
आधार मामले पर कई पक्षों ने याचिका दायर की है। इनमें उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज के. पुत्तास्वामी भी शामिल हैं। आधार कार्ड को लेकर करीब साढ़े 4 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। 40 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
देश के 118 करोड़ लोगों तक आधार पहुंच चुका है और मोदी सरकार ने तमाम योजनाओं के लिए इसे अनिवार्य दस्तावेज के तौर पर मंजूरी दे दी है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने बैंक के खाता खोलने और मोबाइल नंबर लेने के लिए आधार की अनिवार्यता पर रोक लगा दी है।
मोदी सरकार का एक राष्ट्र एक पहचान का स्लोगन करो या मरो की स्थिति बना हुआ है। और इसकी सफलता और असफलता दीपक मिश्रा के आने वाले इस फैसले पर निर्भर करती है। अब देखना यह है कि क्या आधार पर आने वाला फैसला गरीबों को आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रभावित करता है।
इसी हफ्ते सबरीमाला मंदिर पर भी अपना फैसला सुनाएंगे। परंपरा के अनुसार इस मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित बताया गया है क्योंकि इस दौरान महिलाएं माहवारी से गुजरती हैं और ऐसी मान्यता है कि इस दौरान महिलाओं को किसी भी शुभ और पूजन कार्य में सम्मलित नहीं किया जा सकता है। सरकारी कर्मचारियों में जाति धर्म के नाम पर आरक्षण और प्रमोशन पर भी फैसला आना है।
फिलहाल ऐसे आपराधिक मामलों में लिप्त राजनीतिज्ञ छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। फिलहाल मांग यह है कि जघन्य अपराध के मामले जिन नेताओं पर दर्ज हैं उनके चुनाव लड़ने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगना चाहिए।
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