किसानों के मुद्दे पर घिरी केंद्र की मोदी सरकार से अब जवाब नहीं बन पड़ रहा है। आरोप है कि किसानों के आंदोलन को कमजोर करने या खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने एमएसपी में ₹50 से लेकर ₹300 तक की वृद्धि की है। आरोप यह भी है कि इतिहास में पहली बार एमएसपी में सितंबर में वृद्धि की गई है जबकि अक्टूबर या इसके बाद वृद्धि होती रही है। आरोप यह भी है कि जिन फसलों का सीज़न भी नहीं है उन फसलों पर भी केंद्र सरकार ने अभी से ही एमएसपी में वृद्धि कर दी है, ताकि किसानों के आंदोलन को कमजोर किया जा सके लेकिन किसान संगठन इस वक्त आर-पार के मूड में नजर आ रहे हैं।
किसानों ने जहां देशव्यापी आंदोलन की धमकी दी है वहीं विपक्ष भी अब देशव्यापी आंदोलन करने जा रहा है। विपक्ष के सांसद संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह आंदोलन कर रहे हैं। वह केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार ने संसद को हाईजैक कर लिया और सिर्फ इसलिए वोटिंग नहीं कराया क्योंकि उसे इस बात का विश्वास था कि अगर वोटिंग होती है तो यह बिल पास नहीं होगा और केंद्र सरकार को संसद के अंदर हार का सामना करना पड़ेगा।
कांग्रेस पार्टी तो यहां तक आरोप लगा रही है कि यह बिल केंद्र सरकार अपने सूट-बूट के उद्योगपतियों और साथियों को फायदा देने के लिए लाई है, लेकिन इस बीच केंद्र सरकार इसलिए फंसती नजर आ रही है क्योंकि केंद्र सरकार इस बात पर कोई माकूल जवाब अब तक नहीं दे पा रही है कि अगर एमएसपी पर किसानों की फसलें नहीं खरीदी गई तो उसका क्या होगा क्योंकि केंद्र सरकार ही की एक रिपोर्ट है जिसमें इस बात को कहा गया है कि 6 फीसद ही किसान एमएसपी का फायदा उठा पाते हैं जबकि 94 फीसद किसान इसका फायदा नहीं उठा पाते यानी 14.50 करोड़ किसानों में से मात्र 86 लाख किसान ही इसका फायदा उठा पाते हैं और उस में अकेले पंजाब के 86 फीसद लोग शामिल हैं।
केंद्र सरकार पर इस बात को लेकर के किसान संगठन बल दे रहे हैं कि अगर केंद्र सरकार सच में किसानों की हितैषी है तो वह क्यों नहीं इस बात को बिल के अंदर लाती है कि अगर किसानों की फसल एमएसपी से कम कीमत पर खरीदी गई तो व्यापारियों को जेल होगी और 100 फीसद एमएसपी पर खरीद को यक़ीनी बनाया जाएगा। किसान संगठनों का आरोप है कि उन की फसल आज भी उन्हें औने पौने में खरीदी जा रही है। सरकार यह कह रही है कि 100000 करोड रुपए का कृषि के क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट होगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलप किया जाएगा ताकि किसान अपनी फसल को मंडियों तक पहुंचा सके, किसानों का आरोप यह है कि वह अपनी फसल को गांव के बाहर भी नहीं ले जा सकते तो वह मंडी तक कैसे ले जाएंगे।
1937-1938 के दशक में चौधरी चरण सिंह और चौधरी छोटूराम के अथक प्रयासों से मंडी वजूद में आई। तब से मंडी का काम चल रहा है। चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश में संसदीय कार्य मंत्री होने के बावजूद उस वक्त किसानों के हित का यह बिल पास नहीं करा पाए थे, क्योंकि आरोप है कि उस वक्त यूपी में महाजनों का दबदबा था और विधानसभा पर वही लोग प्रभाव रखते थे लेकिन जब चौधरी छोटूराम को पता चला तो उन्होंने लाहौर से अपने PA को भेजा और उन तमाम दस्तावेजों को मंगवाया और अपने प्रभाव वाले पंजाब में पहली बार मंडी को इंट्रोड्यूस कराया।
किसानों का कहना है कि अगर सरकार सच में उनकी हितैषी है तो वह उन्हें पूजी पतियों से बाहर निकाले और अगर वाकई सरकार यह बिल किसानों के जीवन में चार चांद लगाने के लिए लाई है तो क्यों नहीं किसानों से संवाद करने की हिम्मत कर पा रही है? क्यों अब तक सरकार के मुखिया हों या सरकार के मंत्री खामोश थे जब किसान आंदोलित हुआ तो वह आकर के ट्विटर पर सफाई दे रहे हैं। किसानों का यह भी कहना है कि वह कैसे यह मान लें कि एमएसपी खत्म नहीं होगी क्योंकि जब भी प्रधानमंत्री मोदी ने कहा यह नहीं होगा तो यह मान के चलिए कि वह होने वाला है। क्योंकि नोटबंदी में यही कहा गया था कि सारी समस्या का समाधान हो जाएगा लेकिन नोटबंदी तो समस्याओं की एक पोटली लेकर आयी। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस पूरे मामले में क्या रुख अपनाती है क्योंकि किसान तो इस वक्त आर-पार के मूड में हैं।
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