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प्राचीन काल से ही फॅमिली प्लानिंग इंसानी फ़िक्र का हिस्सा रहा है: इम्पार के फोरम पर आमना मिर्ज़ा का बयान

इन्डियन मुस्लिम फ़ाॅर प्रोगेस एण्ड रिफ़ार्म(इम्पार) की ओर से दिनांक 14 नवम्बर 2020 को अपराहं 4 बजे, ‘‘ मुसलमानों में एकीकृत परिवार नियोजन कार्यक्रमः चुनौतियां एंव समाधान’’ विषय पर एक वेबनार का आयोजन जू़म पर किया गया। विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक अध्ययन की असि0 प्रोफ़ेसर डा0 आमना मिर्ज़ा ने कहा कि आज ही नही प्राचीन काल से ही परिवार नियोजन इंसानी फ़िक्र का हिस्सा रहा है। हमारा मज़हब इसकी इजाज़त देता है। आपको ऐसी आयतें और हदीसें मिल जायेंगी जो इसकी अहमियत और ज़रुरत पर बल देती हैं। हां ऐसे लोग भी हैं जो कु़रान और हदीसों में दिये गये संदेश का गलत मतलब निकालकर इसकी मुख़ाल्फ़त करते हैं। इस मामले में हमें नकारात्मकता को छोड़कर सकारात्मकता को अपनाना चाहिये।

By: Press Release
फाइल फोटो
  • प्राचीन काल से ही फॅमिली प्लानिंग इंसानी फ़िक्र का हिस्सा रहा है: इम्पार के फोरम पर आमना मिर्ज़ा का बयान

 

 

इन्डियन मुस्लिम फ़ाॅर प्रोगेस एण्ड रिफ़ार्म(इम्पार) की ओर से दिनांक 14 नवम्बर 2020 को अपराहं 4 बजे, ‘‘ मुसलमानों में एकीकृत परिवार नियोजन कार्यक्रमः चुनौतियां एंव समाधान’’ विषय पर एक वेबनार का आयोजन जू़म पर किया गया। विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक अध्ययन की असि0 प्रोफ़ेसर डा0 आमना मिर्ज़ा ने कहा कि आज ही नही प्राचीन काल से ही परिवार नियोजन इंसानी फ़िक्र का हिस्सा रहा है। हमारा मज़हब इसकी इजाज़त देता है। आपको ऐसी आयतें और हदीसें मिल जायेंगी जो इसकी अहमियत और ज़रुरत पर बल देती हैं। हां ऐसे लोग भी हैं जो कु़रान और हदीसों में दिये गये संदेश का गलत मतलब निकालकर इसकी मुख़ाल्फ़त करते हैं। इस मामले में हमें नकारात्मकता को छोड़कर सकारात्मकता को अपनाना चाहिये।

 

 

 

 

स्टेट जेएलएन होम्योपेथी कालिज कानपुर में एसोसियेट प्रोफ़ेसर डा0 लुबना कमाल ने अपने चिकित्सीय अनुभव को साझा करते हुये कहा कि इलाज के लिए मेरे सम्पर्क में आने वाली ज़्यादातर गर्भवति मुस्लिम महिलायें कमज़ोरी और खून की कमी का शिकार होती हैं जिनके कारण उन्हें प्रजनन सम्बंिधत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यही नही परिवार नियोजन सम्बंधी भ्रम शिक्षित महिलाओं की तुलना में अशिक्षित में ज़्यादा पाया जाता है। हमें इनमें सघन परिवार नियोजन जागरुकता कार्यक्रम चलाने चाहिये। डा0 लुबना कमाल ने परिवार नियोजन के सम्बंध में कु़रान की अनेक आयतों का ज़िक्र किया।

                इम्पार की राष्ट्रीय संचालन समिति के सदस्य व धर्मार्थ सेवा से जुड़े श्री माजिद पारिख ने विस्तार से क़ुरान की उन आयतों और हदीसों का ज़िक्र किया जो परिवार नियोजन की अहमियत पर रौशनी डालती हैं। उन्होने कहा कि इस्लाम साफ़तौर पर अपने मानने वालों को यह संदेश देता है कि अगर आप अपने बच्चों की सही तरबियत और परवरिश करने में असमर्थ हैं तो आप अपने परिवार की मंसूबा बंदी करें और बच्चों की कशीर तादाद से परहेज़ करें।

 

 

 

                इम्पार कम्युनिटी रिफ़ार्म कमेटी में सलाहकार, लेखक व पत्रकार श्री मुशर्रफ़ अली न कहा कि मुसलमानों की आबादी बढ़ने का भय दिखाने के पीछे राजनीतिक मकसद होता है जबकि हक़ीक़त यह है कि जैसे जैसे शिक्षा और स्वास्थय सुविधाओं का विस्तार और सहज सुलभता होती जायेगी लोग अपने आप परिवार नियोजित रखने लगेंगे। उन्होने इन्डिया टूडे की अगस्त 2019 की रिपोर्ट में दिये गये आंकड़ों का हवाला देते हुये कहा कि 1992-93 में मुस्लिम महिलाओं में पूरे जीवन में बच्चे पैदा करने का औसत 4.4 बच्चे था जो 2015-16 में 50 प्रतिशत घटकर 2.2 बच्चे रह गया है। इसी तरह पहली बार मां बनने की आयु का औसत 1992-93 में जहां मुस्लिम महिलाओं में 18.3 वर्ष था वह 2015-16 में 20.6 वर्ष हो गया है जबकि हिन्दु महिलाओं का उसी अवधि में 19.4 वर्ष से बड़कर 21 वर्ष हो गया है। रिपोर्ट बताती है कि मुस्लिम महिलाओं में परिवार नियोजन के प्रति जागरुकता हिन्दु महिलाओं की तुलना में तेज़ी से बढ़ रही है। इसकी मिसाल है कि दो बच्चों के बीच अंतराल रखने का औसत जहां 1992-93 में हिन्दु महिलाओं में 32 माह था वह 2015-16 में घटकर 31.9 माह रह गया है जबकि उसी अवधि में मुस्लिम महिलाओं में यह अंतराल 30.3 महीने से बढ़कर 32 महीने हो गया है। इसका एक और कारण मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा के प्रति जागरुकता है। 2018 में सभी धर्माें की छात्राओं का उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले का राष्ट्रीय औसत 24 प्रतिशत था वही मुस्लिम छात्राओं का उससे दोगुना 47 प्रतिशत था।

 

 

 

 

परिवार नियोजन पर लंदन में 2012 में जो सम्मेलन हुआ उसके लक्ष्य पूरे करने के लिए सरकार को ज़्यादा बजट आवंटित करना चाहिये। देश की ज़रुरत के हिसाब से स्वास्थय व परिवार कल्याण पर बजट काफ़ी कम हैं। परिवार नियोजन कार्यक्रम का बजट तो कुल स्वास्थय बजट का 4 प्रतिशत ही है जिसके कारण हर साल पांच साल से कम आयु के बच्चे जितने दुनियाभर में मरते हैं उनका 20 प्रतिशत भारत में मरते हैं। उन्होने कहा कि हमें आज के दौर की समस्याओं का समाधान अतीत में नही आज के दौर में ही विवेक के आधार पर तलाशना चाहिये। यूरोप ने तब विकास किया जब उसने पोप की उंगली पकड़कर चलना छोड़ दिया।

वेबनार के अंत में वक्ताओं और श्रोताओं को धन्यवाद देते हुये इम्पार के नेशनल एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर श्री ख़ालिद अंसारी ने कहा कि सरकार अगर मुसलमानों में परिवार नियोजन जागरुकता फैलाने की ज़िम्मेदारी इम्पार को देती है तो वह उसे सहर्ष लेने को तैयार है। इम्पार भारतीय समाज और देश के विकास के लिए दृढ़ संकल्प है और वह इसी मकसद को लेकर अपने सीमित साधनों के बल पर कार्यरत् है। श्री खालिद अंसारी ने कहा कि रास्ता आसान नही है क्योंकि परिवार नियोजन की राह में रुढ़िवादी चिंतन की बाधायें हैं जिन्हें हटाना होगा। एक बाधा हमारे पड़ौसी देश से आने वाले तथाकथित धार्मिक उलेमाओं के वीडियों हैं जिनमें अविवेकपूर्ण संदेश भरे रहते हैं। इन संदेशों ने उनके देश के समाजिक ताने-बाने को तो बर्बाद कर दिया है अब वह हमारे समाज को बर्बाद करना चाहते हैं। हमें उनके प्रभाव को खत्म करने के लिए भी काम करना होगा।

 

 

 

 

वैबनार का संचालन कर रहे इम्पार के सदस्य श्री अत्थर ने कहा कि परिवार नियोजन न सिर्फ़ लोगों बल्कि देश के नियोजित विकास के लिए भी फ़ायदेमंद है इसलिए हमें इसको प्रोत्साहित करना होगा।

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