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अभिव्यक्ति की आज़ादी स्वाभाविक और संवैधानिक अधिकार हैः JIH

जमाअत इस्लामी हिन्द के ‘‘दावत’’ विभाग की ओर से गत शाम ‘एक स्वस्थ समाज मे अभिव्यक्ति की आज़ादी’’ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में देश के विभिन्न धर्मों के रहनुमाओं, बुद्धिजीवियों, सियासी और सामाजिक रहनुमाओं ने हिस्सा लिया। जिसमें भारतीय सर्वधर्म संसद के नेशनल कनवीनर श्री गोस्वामी सुशील महाराज और विद्या कालेज ऑफ़ थियोलोजी के डॉक्टर विक्टर ऐडविन भी शामिल थे। जमाअत इस्लामी हिन्द के अमीर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि वेबिनार का यह विषय पुरे देश नही बल्कि पुरी दुनिया के लिए सामयिक और महत्वपूर्ण है।

By: वतन समाचार डेस्क
  • अभिव्यक्ति की आज़ादी स्वाभाविक और संवैधानिक अधिकार हैः JIH

नई दिल्ली, 26 नवंबर। जमाअत इस्लामी हिन्द के ‘‘दावत’’ विभाग की ओर से गत शाम ‘एक स्वस्थ समाज मे अभिव्यक्ति की आज़ादी’’ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार में देश के विभिन्न धर्मों के रहनुमाओं, बुद्धिजीवियों, सियासी और सामाजिक रहनुमाओं ने हिस्सा लिया। जिसमें भारतीय सर्वधर्म संसद के नेशनल कनवीनर श्री गोस्वामी सुशील महाराज और विद्या कालेज ऑफ़ थियोलोजी के डॉक्टर विक्टर ऐडविन भी शामिल थे। जमाअत इस्लामी हिन्द के अमीर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि वेबिनार का यह विषय पुरे देश नही बल्कि पुरी दुनिया के लिए सामयिक और महत्वपूर्ण है।

 

 

 

अभिव्यक्ति की आज़ादी इंसान का स्वाभाविक अधिकार है। और देश का संविधान भी हर व्यक्ति को यह अधिकार देता है। इसलिए किसी इंसान को जो सही लगता है उसे ज़रूर बोलना चाहिए। अगर वह नहीं व्यक्त करेगा या बोलने नहीं दिया जाएगा तो वह घुटन का शिकार हो जाएगा। अगर किसी को हकूमत की कोई नीति ग़लत लगती है तो उसको ज़रूर अभिव्यक्त करना चाहिए। क्योंकि इस आज़ादी के बिना किसी भी क्षेत्र में विकास नहीं हो सकता। लेकिन हर अधिकार की कुछ हदें तय होती हैं। इसी आज़ादी की भी हदें धार्मिक और देश के क़ानूनों के अनुसर निश्चित कर दी गयी हैं। इस सीमा को पार करके किसी को मांसिक, धार्मिक और व्यक्तिगत चोट पहुंचाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। इस्लाम में अभिव्यक्ति की आज़ादी को प्रोत्साहित किया गया है, इसलिस कई ऐसे अवसर आए जब पैग़म्बर मोहम्मद (सल्ल.) के साथियों ने उनके मत का विरोध किया और पैग़म्बर मोहम्मद के मतों के खिलाफ फैसले किए गए। विगत दिनों में मुसलमानों पर आलोचना करने के रुझान बहुत तेजी के साथ बढ़े हैं।

 

 

 

अगर यह आलोचना संतुलन के साथ और शब्दों पर नियंत्रण करते हुए किया जाए तो इसे सुनने में मुसलमानों को कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन जब इस आलोचना का जवाब दिया जाता है तो उसे भी सुनना चाहिए। अगर जवाब नहीं सुना गया तो इसका अर्थ यह है कि यह आलोचना ग़लत नियत के साथ विघटनकारी रुझान रखता है। ऐसी आलोचनाओं पर रोक लगायी जानी चाहिए और संदेहों को आपसी संवाद से हल किया जाना चाहिए। वेबिनार में जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मोहम्मद जाफर, दावत विभाग के सचिव इक़बाल मुल्ला, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चीफ नोडल अधिकारी हरदीत सिंह कोविंदपुरी, सीपीआई के राष्ट्रीच सचिव अतुल कुमार अंजान, वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर बाल मुकुंद सिन्हा ने अपने अपने विचार रखे। सभी ने अभिव्यक्ति की आज़ादी और अभिव्यक्त करने में संतुलन बरतने की ज़रूरत और अहमियत पर प्रकाश डाला और कहा कि दूसरों की आस्था को निशाना बनाना और असभ्य भाषा का इस्तेमाल करना एक नापसंदीदा तरीक़ा है जिसको रोका जाना चाहिए।

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