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जम्मू-कश्मीर पर सरकार द्वारा हाल के फैसले संसदीय लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के ख़िलाफ़ - जमाअत अध्यक्ष

जमाअत अध्यक्ष ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, “इस निर्णय के माध्यम से राज्य के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है. सेना की मौजूदगी को और अधिक बढ़ा दिया गया है. राजनीतिक नेतृत्व को जेल में हैं, शैक्षणिक संस्थान बंद हो गए हैं और संचार के साधन निष्क्रीय हैं. ऐसे में निर्णयों को लागू करने के प्रयास पूरे देश के लिए चिंता का विषय है.”

By: वतन समाचार डेस्क
Govt’s recent decisions over J&K, against basic principles of parliamentary democracy: Jamaat-e-Islami Hind Prez

 नई दिल्ली: जमाअत इस्लामी हिंद (JIH) के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने NDA सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर मामले में हाल ही में उठाए गए क़दम को संसदीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत क़रार दिया है. उन्होंने आगे कहा कि: "धारा 370, जिससे जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था, को वहां के लोगों और उनके प्रतिनिधियों से परामर्श के बिना ही राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अचानक और एकतरफा निरस्त कर दिया गया." सरकार इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि राज्य को दो भागों में बांट दिया और उसकी स्थिति को केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया. दूरगामी प्रभाव वाले इस बेहद संवेदनशील फैसले को न तो लोगों की सलाह से लिया गया और न ही उन्हें विश्वास में लेकर लिया गया. राज्य में कई प्रतिबंध लगाए गए थे और भय का माहौल बनाया गया था. इस प्रकार का निर्णय संसदीय लोकतंत्र की आत्मां और हमारे देश की संघीय राजनीति के लिए अत्यंत हानिकारक है.”

 

जमाअत अध्यक्ष ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, “इस निर्णय के माध्यम से राज्य के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है. सेना की मौजूदगी को और अधिक बढ़ा दिया गया है. राजनीतिक नेतृत्व को जेल में हैं, शैक्षणिक संस्थान बंद हो गए हैं और संचार के साधन निष्क्रीय हैं. ऐसे में निर्णयों को लागू करने के प्रयास पूरे देश के लिए चिंता का विषय है.”

 

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष ने ये मांग की कि, “सरकार को इन एकतरफा लिए गए क़दम और फैसले को वापस लेना चाहिए और जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने चाहिए. सरकार को गिरफ्तार किए गए नेतृत्व को तुरंत रिहा करना चाहिए, लोगों के लिए संचार और परिवहन के साधनों को बहाल करना चाहिए तथा भय और आतंक का माहौल खत्म करना चाहिए. हम अपने पूर्व विचार को फिर से दोहराना चाहेंगे कि जम्मू और कश्मीर के मामलों को राज्य के लोगों और उनके प्रतिनिधियों के साथ बातचीत तथा परामर्श के द्वारा हल किया जाना चाहिए.”

 

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