अगर बाबा साहब को पार्लियामेंट भेजना पाप था तो यह पाप भारत के हर मुसलमान को करना चाहिए
मोहम्मद अहमद
आज 26 जनवरी 2020 है। इस अवसर पर पूरा भारत राष्ट्र गणतंत्र दिवस की खुशियां मना रहा है। पूरे देश में शाहीन बाग से लेकर लखनऊ तक। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी तक, जामिया मिल्लिया इस्लामिया से लेकर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी तक, नॉर्थ इंडिया से लेकर साउथ इंडिया तक, ईस्ट इंडिया से लेकर वेस्ट इंडिया तक, लद्दाख के पथरीले रास्तों से लेकर कश्मीर के सेब के बागानों तक। पंजाब के लहलाहाते खेतों से लेकर हिमाचल की पहाड़ियों तक, राजस्थान की सुनहरी रेत से लेकर गुजरात के साबरमती तक, उत्तर प्रदेश के शोर से लेकर बिहार की खुशबू तक, सिक्किम की खूबसूरती से लेकर आसाम की चाय तक, अरुणाचल की संस्कृति केंद्र से लेकर छत्तीसगढ़ के आदिवासी संरक्षक तक, हैदराबाद की बिरयानी से लेकर कर्नाटक के ज्वार तक तमिलनाडु के मीनाक्षी मंदिर से लेकर केरल के मशालों तक, गोवा के मौसम से लेकर महाराष्ट्र के गेटवे ऑफ इंडिया और मध्यप्रदेश के शांति स्तूप तक, बीजापुर के गोल गुंबज से लेकर दिल्ली के इंडिया गेट तक, हर जगह सिर्फ एक ही चर्चा है,
वी द पीपल ऑफ इंडिया - हम भारत के लोग -
एक बार फिर भारत की आजादी की रक्षा के लिए गांधी के अहिंसक मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए खड़े हुए हैं और हम तब तक खड़े रहेंगे जब तक इस बात का सत्ता में बैठे लोग वचन नहीं लेते कि वह भारत के संविधान की हर हाल में रक्षा करेंगे और नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 जैसे काले कानून को खत्म करके भारतीयों के बीच भेदभाव फैलाने की जगह मोहब्बत को परवान चढ़ाएंगे और सच में भारत को दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र बनाने के साथ-साथ विश्व गुरु भी बनाएंगे, क्यों की दुनिया कह रही है " The world's largest democracy is pushing back"
इन सबके बीच जब हम संविधान पर बात करते हैं और बाबा साहब पर बात करते हैं तो हम यह भूल जाते हैं क्या कि वह कौन लोग थे जिनकी वजह से बाबा साहब को राज्यसभा भेजा गया और जिसकी वजह से बाबासाहेब संविधान सभा के सदस्य बने, इतिहास के पन्ने चीख चीख कर जिस की गवाही दे रहे हैं, वरना तो यह कह दिया गया था कि बाबा साहब के लिए पार्लियामेंट के दरवाज़े ही नहीं रोशनदान और खिड़कियाँ भी बंद कर दी गई हैं।
ऐसे में शूद्रों और दलितों को उत्थान के लिए चिंतित बाबा साहब के सामने एक बड़ा चैलेंज था, कि कैसे उन की आवाज को संविधान में जगह मिलेगी? लेकिन उस वक्त बंगाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री हुसैन शहीद सहरवर्दी खड़े हुए, जिन्होंने 15 जुलाई 1946 को बाबा साहब को बंगाल से चुनकर राज्यसभा भेज दिया। यह कदम बहुत बड़ा था, जिस से आज तक लोगों को गाफिल रखा गया, लेकिन तारीख की परतें खुलने के साथ साथ यह भी साफ होने लगा कि उस वक्त मुसलमानों ने अछूत लीडर जोगिंदर नाथ मंडल को भी कैबिनेट में शामिल कराया, क्यों कि अछूतों कि आवाज़ भी मनुवादियों ने दबाने का फैसला कर लिया था।
साइमन कमीशन आने के बाद मनुवादियों की सफों में मातम मच गया था, जब भारत के मुसलमान साइमन कमीशन के हक़ में खड़े हुए और मनुवादियों के जरिए साइमन गो बैक के नारों का मुखर विरोध किया तो मनुवादी चिंतित, मनुवादियों का विरोध इतना मुखर था कि पुलिस को डंडे बरसाने पड़े। किसी को लखनऊ में पुलिस के डंडे पड़े तो किसी को लाहौर (अखंड भारत) में। इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है कि यह साइमन कमीशन ही था जिसने शूद्रों और अछूतों के भविष्य को अंधकार से निकालकर उजाले की ओर ला खड़ा किया, और अगर यह करना पाप था तो भारत के हर मुस्लिम को यह पाप बार बार करना चाहिए और हर उस आदमी के लिए लड़ना चाहिए जो बिना किसी वजह के सताया और मारा जाता है।
आज गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर हम बंगाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री हुसैन शहीद सहरवर्दी और उनके साथियों का आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने बंगाल से बाबा साहब को पार्लियामेंट भेजा और इस बात का दुख भी है और अफसोस भी करते हैं कि बाबा साहब लाख चाहने के बावजूद लोकसभा का सदस्य नहीं बन सके। उन को पहली बार 1952 के लोकसभा में हार का सामना करना पड़ा और दूसरे नंबर पर गए और दूसरी बार 1954 में भंडारा से बाई इलेक्शन लड़ा तो आपको हार का सामना करना पड़ा और तीसरे स्थान पर चले गए।
बाबा साहब लोकसभा जाते तो शायद दलितों का भविष्य कुछ और होता, लेकिन वह लोकसभा जाने की हसरत लिए हुए इस दुनिया से चले गए और 1957 के दुसरे जनरल इलेक्शन में हिस्सा नहीं ले सके। आज देश डॉक्टर बी आर अंबेडकर को याद करता है और उनका इस बात के लिए आभारी है कि उन्होंने देश को एक ऐसा संविधान दिया जो सेक्युलर भी है और सोशलिस्ट भी। हम सबको राष्ट्रवाद की प्रेरणा भी देता
जय हिन्द
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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