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वैशाली की मृतका गुलनाज के लिए मात्र बयान जारी करने में जमीयत ने लगा दिए एक महीने, आप सोचिये

वैशाली की मजलूम गुलनाज के साथ जो दरिंदगी हुई है, उसको लगभग 1 महीना गुजर चुका है. बिहार चुनाव के दौरान ही यह दरिंदगी हुई थी. देश के करोड़ों मुसलमानों के साथ जुड़ने का दावा करने वाली जमीयत उलेमा हिंद मौलाना महमूद मदनी ग्रुप को इसकी भनक भी नहीं लगी और बड़ी बात यह है कि इस मामले के लगभग एक महीना गुजर जाने और मीडिया के बड़े बड़े संस्थानों से इसकी रिपोर्टिंग होने और सोशल मीडिया पर आंदोलन चलने के बाद अब जाकर के जमीयत उलेमा हिंद जागी है.

By: वतन समाचार डेस्क

 

  • वैशाली की मृतका गुलनाज के लिए मात्र बयान जारी करने में जमीयत ने लगा दिए एक महीने, आप सोचिये 

 

 

वैशाली की मजलूम गुलनाज के साथ जो दरिंदगी हुई है, उसको लगभग 1 महीना गुजर चुका है. बिहार चुनाव के दौरान ही यह दरिंदगी हुई थी. देश के करोड़ों मुसलमानों के साथ जुड़ने का दावा करने वाली जमीयत उलेमा हिंद मौलाना महमूद मदनी ग्रुप को इसकी भनक भी नहीं लगी और बड़ी बात यह है कि इस मामले के लगभग एक महीना गुजर जाने और मीडिया के बड़े बड़े संस्थानों से इसकी रिपोर्टिंग होने और सोशल मीडिया पर आंदोलन चलने के बाद अब जाकर के जमीयत उलेमा हिंद जागी है.

वैशाली की मृतका युवती के हत्यारों को सख़्त सज़ा दी जाए।

 

 

 जमीयत उलमा हिंद के मुखिया मौलाना महमूद असद मदनी की तरफ से इस पूरे मामले में बयान आया है. उन्होंने वैशाली की मृतिका युवती के हत्यारों को सख्त सजा देने की बात कही है, लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि जब जमीयत जैसे संगठन जिनका आजादी के आंदोलन में इतिहास के पन्नों के अनुसार रोल अगर कांग्रेस से ज्यादा नहीं तो कांग्रेस से कम भी नहीं था, जिनके पूर्वजों ने रेशमी रुमाल आंदोलन के जरिए से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे, जो देश के सभी मुस्लिम सेक्ट की अगुवाई करती थी, जिस ने पाकिस्तान बनने का सख्त विरोध किया था.

 

 

आज उसी जमीयत उलमा हिंद से जुड़े मौलाना महमूद मदनी को एक युवती जिसके साथ जघन्य अपराध हुआ, जिस को जला दिया गया, जिसके साथ दरिंदगी हुई और और दरिंदगी की तमाम हदों को पार कर दिया गया, उन दरिंदों के विरुद्ध जमीयत को मात्र प्रेस बयान जारी करने में 1 महीने का समय लग गया.

 

 

ऐसे में आप खुद सोचिए कि जमीयत उलमा जैसे संगठन जो मुसलमानों के हितैषी होने का दावा करते हैं और कई बार वह ऐसा करते हुए नजर भी आते हैं. खासतौर से जब कोई आपदा हो, कई सारे केस की अदालतों में पैरवी भी हो रही है, लेकिन इसके बावजूद एक मृतिका को लेकर के मात्र बयान जारी करने में 1 महीने से भी ज्यादा का समय लग गया, वह भी मीडिया के तमाम बड़े संगठनों में रिपोर्टिंग होने और सोशल मीडिया पर आंदोलन चलने के बाद, जमीयत जागी और प्रेस बयान जारी किया.

 

 

ऐसे में समझा जा सकता है कि यह लोग अपने दावे में कितने सच्चे हैं. यह लोग क्या कर रहे हैं और मुस्लिम समस्याओं या मानवीय समस्याओं को लेकर के कितने ज्यादा चिंतित हैं? फैसला आप खुद

कीजिये. हालांकि मुस्लिम संगठों के बारे में यह बात कही जाती है कि इन की प्रेस रिलीज़ तैयार रहती है और फ़ौरन बयान जारी करने में विश्वास रखते हैं. वहीं आरएसएस जैसे संगठन हैं जिन की ओर से सालों में कभी कोई प्रेस रिलीज़ आती है. अब अगर जमीयत ने अपनी पालिसी बदली है, तो फिर प्रेस रिलीज़ का क्या मतलब है और अगर नहीं बदली है तो फिर प्रेस रिलीज़ में देरी से सवाल उठना लाज़मी है.

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