इल्यास आज़मी (पूर्व लोक सभा संसद, आज़ादी और गुलामी दोनों को अपनी आँख से देखने वाले बचे खुचे लोगों में से एक)
दोनों बीजेपी के प्रधानमंत्री रहे. दोनों RSS के प्रचारक भी रहे. आज जब अटल बिहारी वाजपेई अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान AIIMS में हैं और उनका इलाज चल रहा है, ऐसे में मैं चाहता हूं कि अटल जी के बारे में कुछ बातें बताऊं ताकि पाठक यह समझ सके कि पार्टी के साथ व्यक्ति की क्या अहमियत होती है. 77 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में अटल जी विदेश मंत्री बने. खाड़ी के देशों में रोजी रोटी का बहुत ज्यादा चांस था, लेकिन इंदिरा सरकार ने पासपोर्ट बनवाने का ऐसा तरीका शुरू किया था कि पासपोर्ट बनवाना एक जंग से कम नहीं था.
अटल जी के विदेश मंत्री बनने के बाद मैंने एक
इन दिनों मैं आजमगढ़ के लोगों के पासपोर्ट बनवाने के लिए हर सप्ताह लखनऊ का चक्कर लगाता था. अटल जी के विदेश मंत्री बनने के बाद मैंने एक 3 पन्नों का मेमोरेंडम लिखा कि सिर्फ सांसदों की पुष्टि पर पासपोर्ट दे दिया जाए तो हमारे लाखों बेरोजगारों को खाड़ी के देशों में रोजगार मिल सकता है. आजमगढ़ के सांसद राम नरेश यादव को साथ लेकर मैं अटल जी से मिला. बातचीत की और चला आया. 10 दिन के बाद कुछ व्यक्तियों के साथ लखनऊ गया तो पता चला कि अब पासपोर्ट फार्म पर सिर्फ सांसद की पुष्टि से 10 दिन में पासपोर्ट ना सिर्फ बन जाएगा बल्कि सारे पासपोर्ट इजरायल और साउथ अफ्रीका को छोड़कर पूरी दुनिया में वैलिड हो जाएंगे, इस तरह लाखों के पासपोर्ट बिना किसी खर्चे के बने और लोगों को वहां रोजगार मिला.
अटल जी को यह मालूम था कि गल्फ पूरा मुस्लिम है
अटल जी को यह मालूम था कि गल्फ पूरा मुस्लिम है और ज्यादातर फायदा मुसलमानों का होने वाला है. मैं 11 वीं लोकसभा का पहली बार सदस्य बना. अटल जी की 13 दिन की सरकार को विश्वास मत लेना था. BJP के एक सदस्य ने मेरी मुलाकात उन से कराई. मैंने कहा कि मैं पार्टी लाइन से नहीं हट सकता, आप काशीराम जी से बात करें, अगर उन्होंने हम लोगों से बात की तो यही कहूंगा कि अटल जी को समर्थन किया जाए. उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि आप पार्टी लाइन से हटकर मेरा साथ दें, ना ही यह बयान दिया कि कई सांसद मेरे संपर्क में है, जैसा कि कर्नाटक में हुआ.
लेकिन एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि
कांग्रेस के समर्थन से जो देवगौड़ा जी की बेहतरीन सरकार बनी, लेकिन एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि कांग्रेस ने बिना किसी वजह के अचानक समर्थन वापस ले लिया. वह दिन पार्लियामेंट के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. जब देवगौड़ा जी ने विश्वास मत के लिए प्रस्ताव पेश किया और कांग्रेस के ज्यादातर मेंबर हाउस के बजाय सेंट्रल हॉल में थे, स्पीकर संगमा बार-बार कांग्रेस को पुकारते थे लेकिन कोई कांग्रेसी बोलने को तैयार नहीं था. बीजेपी के सदस्य भी देवगौड़ा की तारीफ ही कर रहे थे और कहते रहे कि हम तो विपक्ष में है एक भी मेंबर ने यह नहीं कहा कि देवगौड़ा जी ने "फलां" फैसला गलत लिया है.
चंद्रशेखर ने अपनी स्पीच में कांग्रेस पर भड़ास निकाली.
चंद्रशेखर ने अपनी स्पीच में कांग्रेस पर भड़ास निकाली. अटल अटल जी से मुखातिब होकर कहा कि गुरु जी आप इस साजिश को नाकाम बना दें और सरकार गिरने से बचा लें, तब अटल जी ने कहा कि हमें देवगौड़ा जी से कोई शिकायत नहीं है, बल्कि हम उनकी तारीफ करते हैं, लेकिन हमें विपक्ष में होने का धर्म निभाना है. स्पीकर के बहुत बुरा भला कहने के बाद प्रियरंजन दासमुंशी आए और कांग्रेस की तरफ से सिर्फ इतना कहा कि देवगौड़ा जी हम आप की सरकार चला रहे हैं और आप ही हम को खत्म करने पर तुले हैं.
तो मैंने उनको लॉबी में पकड़ा और कहा
इतना कहकर वह बाहर जाने लगे, तो मैंने उनको लॉबी में पकड़ा और कहा आपका यह सिर्फ एक जुमला किसी की समझ में नहीं आया, तो उन्होंने कहा कि अगर यह 2 साल प्रधानमंत्री रह गया तो कांग्रेस को वोट देने वाला कोई नहीं मिलेगा. मैंने कहा देवगौड़ा का कुसूर यह है कि वह बहुत अच्छी सरकार चला रहे हैं.
मैं संविधान का रक्षक हूं
उन के बाद आई के गुजराल की सरकार बनी, उसे भी कांग्रेस ने 4 महीने बाद ही गिरा दिया, तब पार्लियामेंट में बेचैनी फैल गई. सभी पार्टियों के नए मेंबर जिनकी तादाद 182 थी एक साथ राष्ट्रपति भवन गए और कहा हम सब अटल बिहारी वाजपेई को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं. आप उन्हें प्रधानमंत्री का शपथ दिला दें. राष्ट्रपति नारायणन ने कहा कि मैं संविधान का रक्षक हूं. आप लोगों को मिलाकर अटल जी का बहुमत है लेकिन संविधान के दृष्टिकोण से आप लोग अपनी-अपनी पार्टियों को एक तिहाई या ज्यादा की तादाद में पहले तोड़कर पार्टी बनाएं फिर देखें कि अटल जी के साथ बहुमत होता है या नहीं. अगर उनको संविधानिक बहुमत मिल गया तो मैं सरकार बना दूंगा वरना पार्लियामेंट भांग हो जाएगी.
आज कुमार स्वामी की जगह बीजेपी का मुख्यमंत्री होता
अगर मोदी हैं कि अगर कर्नाटक में राज्य पाल के यहां कांग्रेस और जनता दल एस के आठ विधायक पहुंच जाते तो आज कुमार स्वामी की जगह बीजेपी का मुख्यमंत्री होता. इससे भी खास बात यह है कि 182 में से किसी एक से भी अटल जी नहीं मिले ना ही उन्होंने कोई कोशिश की यहां तक कि लोकसभा भंग हो गई.
जब अटल जी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया
लोकसभा भंग होते ही मायावती ने मुझे पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया. उसके बाद अटल जी ने मुझे फोन किया और कहा कि शनिवार को छुट्टी के दिन विपक्ष के कमरे में मुझसे मिलिए. मैं पहुंचा तो अटल जी तन्हा बैठे थे. कहने लगे कि आज चाय भी नहीं मिलेगी. यह मुल्क की भी जरूरत है और भाजपा की भी कि आप भाजपा में आजायें. मैंने कहा भाजपा की जरूरत हो सकती है लेकिन देश बहुत बड़ा है यहां लाखों इलियास आज़मी हैं. कहने लगे कि 40 साल से पार्लियामेंट में हूं इस दौरान आप पहले मुस्लिम सदस्य हैं कि मुसलमानों के मसले पर खुलकर बोलते हैं लेकिन उन्हें मुसलमानों के नहीं बल्कि देश के मसले बताते हैं.
आप का भाषण सुन कर हमारा कोई मेंबर उत्तेजित नहीं होता है. कॉमन सिविल कोड और बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे लिए उत्तेजना के स्रोत थे, लेकिन आप के भाषण ने उनका हल पेश कर दिया. शायद आपको मालूम ना हो कि आप के भाषण के बाद मुझसे भाजपा के 50 सदस्य मिले और सब ने कहा कि इस मसले को पार्टी के एजेंडे से निकाल दिया जाए क्योंकि इससे देश का कोई फायदा नहीं होने वाला है और हमें मुसलमानों से वोट मांगते हुए शर्म महसूस होती है जो इस मसले को छोड़ने के बाद नहीं होगी.
...मुसलमान चाहे तो एक सदी और संघर्ष कर ले: अटल जी
उन्होंने यह भी कहा कि मुझे लगता है कि अब यह मामला पार्लियामेंट में नहीं उठेंगे. यह एक सच्चाई है कि 30 साल बीत गए लेकिन कॉमन सिविल कोड और बांग्लादेशी घुसपैठियों दोनों पार्लियामेंट में फिर नहीं घुसे. उन्होंने कहा कि जो मुसलमानों के मसाइल हैं वह पार्लिमेंट से हल होंगे, जिस के लिए इल्यास आज़मी की जुबान चाहिए "बनात वाला" की नहीं. बनात वाला की जुबान और उनके लबो लहजे में हल नहीं होंगे. मुसलमान चाहे तो एक सदी और संघर्ष कर लें, लेकिन वह अपने विरोधियों पर काबू नहीं पा सकते हैं. उन्हें अपना बनाकर अपने मसले हल जरूर करा सकते हैं.
...तो बीजेपी वाले भी आप के पक्ष में हो जायें गे
आप जैसे लोग भाजपा में शामिल होकर भाजपाइयों को अपने पक्ष में कर सकते हैं और मुसलमानों के मसले हल हो जाएंगे जब आपने अपने भाषण के जरिए पूरी पार्लियामेंट को अपने पक्ष में कर लिया तो भाजपाइयों को अपने पक्ष में करना कोई मुश्किल काम नहीं है.
मैंने जवाब दिया मोहतरम मैं एक बुजदिल आदमी हूं मैं इसकी हिम्मत नहीं कर सकता. हां मैं आजाद लड़ूँ. भाजपा समर्थन दे और वहां अपना कोई उम्मीदवार ना खड़ा करे तो मैं हिमायत ले सकता हूं. उन्होंने कहा कि मैं यह बात अपनी पार्टी से नहीं मनवा सकता.
मेरी ज़िन्दगी की सब से बड़ी गलती: इल्यास आज़मी
जब तक उनकी जुबान बंद नहीं हुई वह मुझसे यही चाहते रहे लेकिन आज मैं यह महसूस करता हूं कि मैंने शायद उनकी बात ना मानकर मैंने अपना ही नहीं पूरी मिल्लत का नुकसान किया. अटल जी डॉक्टर फरीदी और उनके दो चलों मेरी और दिवंगत जावेद हबीब की बहुत इज्जत करते थे. जावेद हबीब को तो फुर्सत के लम्हात में बुला लिया करते थे. जब उन्हें जावेद हबीब की आर्थिक परेशानियों के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने किसी अमीर दोस्त से कह कर जाकिर नगर में उन्हें घर दिला दिया. जावेद हबीब साहब ने दोस्तों से मशवरा किया तो मैंने कहा कि इस आदमी की मदद को ठुकराना गलत होगा, जबकि उन्होंने जावेद साहब से जिक्र तक नहीं किया, कि "मैंने किसी को आपके पास भेजा था वह मिला या नहीं" जावेद हबीद गिनती सौ फीसद मुस्लिम नेताओं में ही होती थी.
उन्होंने मुझे और जावेद हबीब को बुलाया
जब भाजपा हारते हारते तंग आ गई तो एक दिन उन्होंने मुझे और जावेद हबीब को बुलाया और कहा कि हम फिर से हिंदू बनने जा रहे हैं. अगर आप लोग रोक सके तो मुल्क की बड़ी मदद होगी. उन्होंने कहा कि मुसलमान जिसे चाहें वोट दें लेकिन भाजपा से दुश्मनी खत्म कर दें, तो अपना भी भला करेंगे और देश का भी, लेकिन उन्हें पता था कि हम लोग इस मामले में बेबस हैं.
यह बात तो पाठकों को मालूम ही होगी कि अयोध्या के मामले में उनकी और जसवंत सिंह की राय RSS से अलग थी. अटल जी और नरेंद्र मोदी दोनों ही RSS के प्रचारक रहे हैं लेकिन दोनों में फर्क है वह सबके सामने है.
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