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एमजे खान सुनो ... अल्लाह आप को माफ़ नहीं करेगा!

भारत की आजादी के साथ ही भारत के मुसलमानों के विकास और उनकी उन्नति के लिए एक ऐसी संस्था की जरूरत थी जो सच में स्वतंत्र होकर सभी राजनीतिक दलों समुदायों समाज के सभी तबकों और उद्योग जगत के साथ संवाद करके मुसलमानों को एक ऐसे रास्ते की ओर लेकर जाए जिसमें न सिर्फ विकास हो बल्कि दूसरों की चीजों को बर्दाश्त करने और सहनशीलता के साथ उदारवादी हो कर अपने धर्म पर पूरी निष्ठा और इमानदारी के साथ चलने का संदेश व संकल्प हो. निसंदेह आजाद भारत में मौलाना अबुल कलाम आजाद से लेकर फखरुद्दीन अली अहमद तक ऐसे तमाम मुस्लिम नेताओं ने अपने अपने स्तर पर देश और समाज की उन्नति के लिए काम किया, लेकिन वह कहीं ना कहीं एक राजनीतिक दल से बंधे थे जिस से उनके रास्ते में बाधाएं थी.

By: Mohammad Ahmad
डॉ एमजे खान अध्यक्ष इम्पार (फाइल फोटो)
  • एमजे खान सुनों ... अल्लाह आप को माफ़ नहीं करेगा!

 

भारत की आजादी के साथ ही भारत के मुसलमानों के विकास और उनकी उन्नति के लिए एक ऐसी संस्था की जरूरत थी जो सच में स्वतंत्र होकर सभी राजनीतिक दलों समुदायों समाज के सभी तबकों और उद्योग जगत के साथ संवाद करके मुसलमानों को एक ऐसे रास्ते की ओर लेकर जाए जिसमें न सिर्फ विकास हो बल्कि दूसरों की चीजों को बर्दाश्त करने और सहनशीलता के साथ उदारवादी हो कर अपने धर्म पर पूरी निष्ठा और इमानदारी के साथ चलने का संदेश व संकल्प हो. निसंदेह आजाद भारत में मौलाना अबुल कलाम आजाद से लेकर फखरुद्दीन अली अहमद तक ऐसे तमाम मुस्लिम नेताओं ने अपने अपने स्तर पर देश और समाज की उन्नति के लिए काम किया, लेकिन वह कहीं ना कहीं एक राजनीतिक दल से बंधे थे जिस से उनके रास्ते में बाधाएं थी.

 

 

 

 

इसलिए यह और जरूरी था कि ऐसी संस्था बने या बनाई जाए जिस में उलेमा के साथ साथ एक प्रोग्रेसिव सोच के लोग हों. जो आईडी ऑफ इंडिया की रूह को समझते हों. आजाद भारत में इस संबंध में डॉक्टर अब्दुल जलील फरीदी का नाम लिया जा सकता है जिन्हों ने पूरी मेहनत लगन और निष्ठा के साथ काम किया. निसंदेह डॉक्टर फरीदी साहब ने 10 साल से भी कम समय में वह कर दिखाया जो पिछले 30 40 सालों में नहीं हुआ था, लेकिन कुदरत को क्या मंजूर था कि वह संसार छोड़कर के चले गए. अगर उनकी आयु कुछ और लंबी होती तो शायद भारत के मुसलमानों की दिशा और दशा कुछ और होती.

 

 

उनके बाद लगातार प्रयास होते रहे लेकिन प्रयासों में पूरी तरह सफलता इसलिए नहीं मिल सकी क्योंकि जो भी संगठन बने या बनाए गए उनमें कहीं ना कहीं व्यक्तिगत स्वार्थ शामिल था. इसलिए समय की मांग थी कि इन सब से ऊपर उठकर एक ऐसी संस्था बनाई जाए जो उपरोक्त उल्लेखों के हिसाब से काम करे. शायद इसी को ध्यान में रखते हुए 6 माह पूर्व इंडियन काउंसिल फॉर फूड एंड एग्रीकल्चर (ICFA) के संस्थापक डॉ एमजे खान ने इंडियन मुस्लिम्स फॉर प्रोग्रेस एंड रिफॉर्म्स (इम्पार/IMPAR) के नाम से एक संस्था बनाई.

 

 

पढ़ाई के दौरान ही पत्रकारिता से जुड़ने की वजह से कई सारे महानुभावों से मुझे मिलने का अवसर हुआ. उन्हीं में से डॉक्टर एमजे खान एक थे. लगभग 7 सालों से मैं लगातार डॉक्टर एम जे खान से यह सुनता आ रहा था कि वह "इंडियन माइनॉरिटीज़ इकोनामिक डेवलपमेंट एजेंसी" IMEDA की स्थापना करना चाहते हैं, ताकि मुस्लिम समाज के उत्थान पर फोकस किया जा सके, क्योंकि जब कांटा आप के पैर में है तो तकलीफ दूसरे को होगी इस की अपेक्षा करना ही खुद को उपेक्षित करने जैसा है.

 

 

 

इसकी स्थापना क्यों नहीं हुई इसका उत्तर तो डॉक्टर एमजे खान देंगे, लेकिन डॉक्टर एमजे खान जिस कार्यप्रणाली और जिस कार्यशैली व क्षमता के लिए जाने जाते हैं इस बुनियाद पर मैं यह कह सकता हूं कि यह काम डॉक्टर खान को लगभग 15 20 साल पहले शुरू करना चाहिए था. अगर डॉ एमजे खान ने उस समय इस काम को शुरू किया होता तो आज उसके परिणाम वह  अपनी जवान आंखों से ही देखते.

 

 

दुनिया के नक्शे पर शायद ही कोई ऐसा प्रमुख देश हो जिस में रहने वाले कुछ लोग डॉक्टर खान को ना जानते हों या डॉक्टर खान उनको ना जानते हों. यह डॉ खान का उत्कृष्टता का कार्य ही कहा जाएगा कि वह आज़ाद भारत के उन गिने-चुने व्यक्तियों में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय एग्रीकल्चर को अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म दिया और अपनी दूरदर्शी नीतियों से एग्रीकल्चर की दुनिया में भारत को एक नई पहचान दी.

 

 

 

डॉ खान एक ऐसे व्यक्ति हैं जो ब्यूरोक्रेसी से लेकर शिक्षा उद्दोग जगत सरकार किसी की भी हो मंत्री कोई भी हो सब के साथ वह बराबर संपर्क में रहते हैं. इसलिए अगर डॉक्टर एमजे खान ने यह काम और पहले शुरू किया होता तो निसंदेह परिणाम और बेहतर होते. अच्छी बात यह है कि मुसलमानों के एक धड़े ने इम्पार शुरू होने के बाद डॉक्टर खान की व्यक्तिगत छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिस से इम्पार को कम समय में दुनिया भर के लोग आसानी से जान गए. शायद इसी लिए गांधी जी ने कहा था कि जब आप का विरोध होने लगे तो समझ लीजिये आपका विकास हो रहा है.

 

 

 

कई बार खबरें आईं कि डॉक्टर खान के इरादे डगमगा रहे हैं. वह इस नोबल कॉज को छोड़कर के एग्रीकल्चर की दुनिया तक ही खुद को सीमित करना चाहते हैं, लेकिन खुशी की बात यह है कि तमाम टीका टिप्पणियों और कटाक्षों के बीच एमजे खान के इरादे डगमगाए नहीं. वह अडिग रहे.

 

 

 

डॉक्टर खान की दुर्दशिताका इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि इम्पार आजाद भारत की पहली ऐसी मुस्लिम संस्था बनी जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन भारतीय लोगों को जोड़ने का काम किया जो विभिन्न देशों में कार्यरत हैं और अपने देश की उन्नति के बारे में सोच रहे हैं. उनहोंने इम्पार के प्लेटफार्म से कारपोरेट सेक्टर के साथ संवाद करके मुस्लिम युवाओं की समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर संबोधित करने का सफल प्रयास किया और CSR फंड की बात की. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जो खाई थी उसको भी पाटने का सफल प्रयास कर रहे हैं. चाहे लेफ्ट पार्टियां हों या राइट या सेंटर की पॉलिटिक्स करने वाले राजनीतिक दल हों या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से जुड़े उलेमा सभी को उन्होंने इम्पार के प्लेटफार्म पर आमंत्रित किया या कर रहे हैं. उन्हें अपने विचारों के रखने का अवसर प्रदान कर रहे हैं, जिससे वह उनकी सोच से अवगत हो सकें और यह इनकी सोच से अवगत हो सकें.

 

 

इस संस्था के बारे में यह कहा जा सकता है कि अगले 15 सालों में इस के माध्यम से और डॉ खान के निरंतर प्रयास (sustained effort) से एक रचनात्मक बदलाव आ सकता है और भारतीय मुसलमानों की उन्नति में एक सकारात्मक योगदान वह अदा कर सकते हैं.

 

 

 

 

 अगर डॉक्टर खान ने इस काम को पहले शुरू किया होता तो और बेहतर होता. मेरी डॉक्टर खान से विनती है कि आप आरोपों और टीका टिप्पणियों पर ध्यान ना दें, बल्कि आप चलते रहें. क्योंकि पत्थर उसी पेड़ को मारे जाते हैं जिस पेड़ में फल होता है और याद रखें जब फल पक जाता है तो वह मीठा भी हो जाता है और नरम भी. इसलिए आप अपने आप को उसी तरह समझें. अगर आपने अपने इरादों को बदल लिया तो ईश्वर आपको कभी माफ नहीं करेगा.

 

 

याद रखें संसार में जो भी आया है चाहे वह किसी धर्म या शक्ति में विश्वास करे लेकिन प्रलय के दिन परमात्मा के समक्ष खड़ा हो कर के अपने उन तमाम किए धरे का उस को जवाब देना है जो उसने संसार में किया था. संसार एक खेती है जिसमें आप जो पौधा लगाएंगे प्रलय के दिन वही पेड़ आपके सामने खड़ा मिलेगा.

 

 

 

इसलिए जो लोग टीका टिप्पणी करते हैं उनको अपनी टिकट टिप्पणियों में व्यस्त रहने दें और उनके लिए अच्छाई की दुआ करें, क्योंकि उनको अपने ईश्वर परमेश्वर और पालनहार को जवाब देना है. इसलिए आप अडिग रहें. अल्लाह से डरते रहें, सच कहें अच्छे काम करें, और अपने अल्लाह को खुश करें. आप अटल रहें. हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

 

 

मैं अंत में फिर यही कहूंगा कि अगर आपने अपने इरादे बदल लिए, टीका टिप्पणी करने वालों से टकराने लगे तो यह आपका व्यक्तिगत नहीं बल्कि पूरे मुस्लिम समाज का नुकसान होगा. मैं अपने पिता के शब्दों में कुछ यूं कह सकता हूं कि जब हाथी को कुत्ते घेर लेते हैं तो हाथी उन कुत्तों को अपना बॉडीगार्ड बनाकर सफर करता है. एक गांव के कुत्ते दूसरे गांव की सरहद तक हाथी को छोड़ आते हैं और फिर दूसरे गांव के कुत्ते तीसरे गांव की सरहद तक हाथी को छोड़ आते हैं, हाथी का सफर भी जारी रहता है और कुत्तों के भोंकने का काम भी, तो आप इसको इसी तरह समझें.

 

 

जय हिंद जय भारत

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