नई दिल्ली । कोरोना से हो रही लाखों मौतों के साथ देश में भूख से भी मौतें हो रही है। इस दौर में होने वाली आत्महत्याएं इसका ज्वालन्त प्रमाण है। इसलिए सरकार पूरे देश में लॉक डाउन लगाने से पहले सुनिशित करे कि देश का एक व्यक्ति भी भूख से न मरे।
आल इंडिया माइनोरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष डॉ सैयद मोहम्मद आसिफ ने उक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना महामारी का संकट भयावह की सीमा पार कर गया है इसलिए लॉक डाउन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है लेकिन जहाँ भी लॉक डाउन मौजूद है,उसके चलते लोग भूख से बिलखने लगे है। साधनहीन और रोज़ कमाकर खाने वाले लोगों के लिए भोजन का संकट जान लेवा बन गया है। लॉक डाउन लगा तो कोरोना से बचाव भले हो जाये लेकिन अन्न अभाव में बड़े पैमाने पर मौते होने लगेंगी।
डॉ आसिफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का अनुरोध है कि लॉकडाउन लगाने पर सरकारें गंभीरता से विचार करें।अदालत ने कहा कि संक्रमण की चेन रोकने के लिए लॉकडाउन जरूरी है। इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को बड़ा उठाएं।
उन्होंने बताया कि बढ़ते मामलों को देखते हुए अदालत ने कहा है कि हम केंद्र एवं राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि वे संक्रमण रोकने के लिए उठाए गए अपने कदमों एवं उपायों को रिकॉर्ड पर रखें। सरकारें ये बताएं कि कोरोना से निपटने के लिए उनकी आगे की क्या तैयारी है।'
डॉ आसिफ ने बताया कि अदालत ने यह भी कहा है कि लॉकडाउन लगाएं तो हाशिए के लोगों को सुरक्षा दें'। यह सुरक्षा फिलहाल नाकाफी है।
डॉ आसिफ ने कहा कि देश में पिछले साल मार्च महीने में कोरोना संक्रमण की शुरुआत होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। लॉकडाउन लगाने का लक्ष्य वायरस की चेन को तोड़ना था। अब पहले से ज्यादा घातक है कोरोना की दूसरी लहर यह तेजी से लोगों को संक्रमित कर रही है। ऐसे में समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगाने का सुझाव दिया गया है लेकिन पीएम मोदी ने राज्य सरकारों से लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में लागू करने की सलाह दी है।
फ्रंट के नेता डॉ आसिफ ने कहा कि हाशिये पर बैठे लोगों के लिए भोजन, बिस्तर पर पड़े मरीज़ों के लिए ऑक्सिजन-दवाइयों का इंतेज़ाम सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। लॉक डाउन इनकी व्यवस्था के बाद लगाएं तब ही जन जीवन में सुरक्षा बढ़ेगी।
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