New Delhi: कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पत्रकारों से बात चीत में कहा कि 29 जुलाई, 2015 को सीबीआई financial irregularities and diversion of funds के लिए किंग फिशर पर एफआईआर दर्ज करती है।
10 अक्टूबर, 2015 को सीबीआई विजय माल्या और किंग फिशर के प्रिमिसेज पर रेड करती है। बहुत सारे कागजात, कम्प्यूटर, हार्ड डिस्क, सॉफ्ट डिस्क और पेन ड्राईव इत्यादि पकड़ती है और ये बयान देती है कि सारे कागजात पकड़े गए हैं।
5 दिन के बाद, 16 अक्टूबर, 2015 को सीबीआई Look out Notice’ to ‘Detain’ Vijay Mallya immigration authorities को जारी कर देती है। 23 नवंबर, 2015 को क्योंकि विजय माल्या तब तक विदेश चले जाते हैं। immigration authorities सीबीआई को बाकायदा लिखकर इन्फोर्म करती है कि विजय माल्या देश वापस 24 नवंबर, 2015 की रात को आ जाएगा।
24 नवंबर, 2015 की सुबह ही सीबीआई के ज्वाइंट डॉयरेक्टर ए.के.शर्मा सुप्रिटेंडेड ऑफ पुलिस Harshita Attaluri के माध्यम से immigration authorities को एक पत्र लिखते हैं और कहते हैं कि हमें एडवांस इन्फोर्मेशन चाहिए, विजय माल्या के आने की और हम विजय माल्या को गिरफ्तार करने का अपना लुक आउट नोटिस वापस लेते हैं, इसे मात्र एक इन्फोर्म नोटिस में तब्दील करते हैं।
सीबीआई का बार-बार बदलता रुख अब सार्वजनिक और जग जाहिर हो गया। प्रश्न सीधा यह है कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय और कौन प्रधानमंत्री कार्यालय में सीबीआई को ये कह रहा था कि विजय माल्या को भाग जाने दीजिए और इस संबंध में उनकी सार्वजनिक पटल पर तीन एक्सप्लेनेशन आ गई हैं।
पहली एक्सप्लेनेशन है, 24 नवंबर, 2015 का सीबीआई का वो पत्र जो उन्होंने immigration authorities को लिखा। उसमें कहा कि हमें विजय माल्या को गिरफ्तार नहीं करना। नवंबर, 2015 में सीबीआई का कहना है कि उन्हें immigration authorities की कार्यप्रणाली की जानकारी ही नहीं। जैसे सीबीआई कल बनी हो, कोई नई ऐजेंसी हो और पहली बार उन्होंने कोई लुक आउट नोटिस जारी किया हो।
फिर वो दूसरी एक्सप्लेनेशन देते हैं, वो है 12 मार्च, 2016 को जहाँ ये कहते हैं कि ‘Look Out Notice to Detain’ against Mallya was ‘an inadvertent error’. गलती से जारी हो गया।
13 सितंबर, 2018 को तीसरी एक्सप्लेनेशन देते हैं, Where they say ‘Look Out Notice to Detain’ Mallya was ‘an error of judgement’.
पहले 24 नवंबर, 2015 को कहते हैं कि हमें एडवांस इन्फोर्मेशन चाहिए थी, इस वजह से गलती से नोटिस जारी कर दिया गया। 12 मार्च, 2016 को कहते हैं ‘an inadvertent error’ की वजह से जारी कर दिया और 13 सितंबर, 2018 को कहते हैं कि‘an error of judgement’ की वजह से जारी कर दिया। ये तीन अलग-अलग stance पब्लिक डोमेन में लिखते हैं।
बात यहाँ भी खत्म नहीं होती। दूसरा पहलू एक ऐसा पहलू है, जो केन्द्रीय जांच ब्यूरो और प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़ा हुआ है। 17 बैंक का जो कन्सॉर्सियम है, भारत सरकार के लीड बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, उनको किसने कहा,क्योंकि वो तो वित्त मंत्रालय के नीचे आते हैं कि विजय माल्या के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करनी और उसमें मात्र तीन तारीखें महत्वपूर्ण हैं। 28 फरवरी, 2016 को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे जी, एसबीआई और दूसरे बैंकों को राय देते हैं कि विजय माल्या देश छोड़ कर भाग जाएगा, आप 24 घंटे में यानि अगले दिन सुबह 29 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर कर उसका पासपोर्ट जब्त करवा दीजिए। 29 फरवरी, 2016 को ये बैंक हामी भरकर जाते हैं और 29 फरवरी, 2016 को गायब हो जाते हैं। वापस आते ही नहीं और ना कोई मुकदमा दायर करते हैं। 5 मार्च, 2016 को माल्या का पासपोर्ट जब्त करने के लिए मुकदमा दर्ज करते हैं, तब, जब माल्या 2 मार्च, 2016 को रफू चक्कर हो चुका है। कौन है वो वित्त मंत्रालय में, कौन है वो इन बैंकों में, जो देश के पैसे की रक्षा की बजाए भगौड़ों की रक्षा और संरक्षण में खड़ा है।
तीसरा पहलू वो है, वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी की 9,091 करोड़ रुपए की रहस्यमयी चुप्पी। 9,091 Cr Conspiratorial Silence of FM, Sh Arun Jaitley.
1 मार्च 2016 को भगौड़ा विजय माल्या अरुण जेटली जी को संसद में मिलता है। वो उन्हें बाकायदा बताता है कि वो लंदन जा रहा है, यानि देश का पैसा लेकर भागने वाला है। ये हम नहीं कह रहे हैं, ये अरुण जेटली जी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है। जेटली जी को पहले से ही पता है कि उनके मंत्रालय में जो 17 बैंक हैं, वो 28 फरवरी यानि 3 दिन पहले विजय माल्या को रोकने के लिए अपना 9,000 करोड़ रुपए लेने के लिए कार्यवाही कर रहे हैं। परंतु अरुण जेटली जी चुप्पी साधे रहते हैं.
एक प्रश्न पर कि आप कौन सी ऐजेंसी से जांच की मांग करते हैं, सुरजेवाला ने कहा कि इस देश में मोदी सरकार से भी बड़ी संस्थाएं अभी बची हैं। क्योंकि संदेह के घेरे में कौन हैं - प्रधानमंत्री जी का कार्यालय, संदेह के घेरे में कौन है- खुद माननीय वित्त मंत्री और उनका कार्यालय, संदेह के घेरे में कौन है- सीबीआई, संदेह के घेरे में कौन है – एसबीआई और दूसरे बैंक। इसलिए एक हाई लेवल प्रोब की आवश्यकता है, सबसे पहले तो प्रधानमंत्री वक्तव्य दें, वित्त मंत्री को बर्खास्त करें। क्या इन सारे तथ्यों के सार्वजनिक हो जाने के बाद भी अब कोई गुंजाईश बची है? क्या वित्त मंत्री को एक मिनट भी अपने पद पर रहने का किसी प्रकार का कानूनी, नैतिक या सामाजिक अधिकार बचा है? इस प्रोब में जो-जो लोग जांच के घेरे में आएंगे, उनको पदमुक्त करना चाहिए, अधिकारी हैं तो उन्हें सस्पेंड करना चाहिए, जब तक प्रोब पूरी नहीं हो जाती, उसके बाद ही कोई निष्पक्ष प्रोब पूरी हो पाएगी।
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