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Maulana Azad National Urdu University के Vice Chancellor ने की Watan Samachar के साथ खास बातचीत, जानिए ज़रूरी बातें

मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति सैयद ऐनुल हसन ने वतन समाचार के साथ खास बातचीत की। उन्होंने यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे छात्र एवं छात्राओं पर कोरोना के प्रभाव पर चर्चा की।

By: Saima Parveen

Maulana Azad National Urdu University के Vice Chancellor ने की Watan Samachar के साथ खास बातचीत, जानिए ज़रूरी बातें

 

मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति सैयद ऐनुल हसन ने वतन समाचार के साथ खास बातचीत की। उन्होंने यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे छात्र एवं छात्राओं पर कोरोना के प्रभाव पर चर्चा की।

 

कोरोना काल में यूनीवर्सिटी के बच्चो पर प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए प्रोफेसर ऐनुल हसन का कहना है कि, “कोरोना के कम मामले देखते हुए हमने यूनिवर्सिटी को खोल दिया था। परंतु फिर ऑमिक्रोन की लहर आ गई, जिसके बाद हमें दोबारा यूनिवर्सिटी को बंद करना पड़ा, और मजबूरन बच्चो को घर भेजना पड़ा।”

 

जबकि प्रोफेसर हसन कहते हैं कि, “हम ने बच्चों से कोई जबरदस्ती नहीं की, लेकिन बाद में बच्चो की सेहत को ध्यान में रखते हुए हमने उनसे आग्रह किया कि वह अपने घर की ओर लौट जाए। क्योंकि हम नहीं चाहते थें की कोई भी बच्चा इसकी ज़द में आए।”

 

वहीं ऑनलाइन कक्षा पर अपना मत प्रकट करते हुए कुलपति कहते हैं कि, “ऑनलाइन कक्षा में वह बात नहीं जो ऑफलाइन में है।” दूसरी ओर जो बच्चे परीक्षा के समय यूनिवर्सिटी से नहीं जुड़ पा रहें थें उन के बारे में बताते हुए कहा गया कि, “हमने उन बच्चों को मौका दिया कि वह व्हाट्सएप के द्वारा प्रस्तुत करे।”

 

इतना ही नहीं वतन समाचार के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि किस प्रकार वह और उनकी यूनिवर्सिटी चाहती है कि, “बच्चों पर दवाब न डालें, और जितनी जल्द हो सके उन्हें स्कॉलरशिप भी प्रदान की जाए और आखिर में वह मात्र बोझ बनकर न रह जाएं।”

 

वतन समाचार के द्वारा कुलपति से उपलब्धियां पूछने पर उन्होंने बताया कि किस प्रकार अपना स्थान ग्रहण करते ही "ओपन" के छात्राओं और छात्रों से संबंधित "UGC" के साथ मीटिंग की और कोशिश की गई कि सफलतापूर्वक उनका परिणाम आए। जिसके लिए एक आयोजित सेल की स्थापना भी की गई। 

 

कुलपति ने बातचीत के दौरान पहले और अब के समय की तुलना करते हुए बताया कि, “कैसे बच्चे पहले बार बार Letter लिखते या कॉल करते, वह थक जाते थे, परंतु उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता था, लेकिन अब हालात दूसरे हैं। आज चाहे युनिवर्सिटी का रीजनल सेंटर हो या सब सेंटर – Sub Center हो या फिर यूनिवर्सिटी का ही ऑफिस क्यों न हो? कोई एक डेस्क ऐसा होना चाहिए जिस से सफलतापूर्वक बच्चो से राबता हो।”

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