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कांग्रेस के "हिंदुत्व मेंटर" को समझने में विफल रही मुस्लिम लीडरशिप

By: Mohammad Ahmad
Dr. Taslim Rahmani President MPCI

वतन समाचार से विशेष बातचीत में मुस्लिम पोलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर तस्लीम रहमानी ने ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (कांग्रेस पार्टी) पर कई गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के हिंदुत्व मेंटर को समझने में जिन्ना और सर सैयद जैसे लोग तो कामयाब रहे लेकिन पूरा (ज्यादातर हिस्सा) मुसलिम नेतृत्व उसे समझने में पूरी तरह विफल रहा.

 

RSS के कैंपों में आते जाते रहे हैं कांग्रेस के लोग

उन्होंने कहा कि मदन मोहन मालवीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी हेडगेवार यह कौन लोग हैं? उन्हों ने दवा किया कि RSS के कैंपों में कांग्रेस के लोग आते जाते रहे हैं, जिसे उस वक्त की मुस्लिम लीडरशिप समझने में विफल रही, और कांग्रेस पर अंधविश्वास किया.

 

कांग्रेस ने ख़तम की मुस्लिम लीडरशिप

 मुस्लिम नेतृत्व को पूरी तरह खत्म करने के लिए डॉक्टर रहमानी ने कांग्रेस पार्टी पर सीधा हमला बोला. उन्होंने कहा कि डॉक्टर सैयद महमूद ने जब मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत का गठन करने का इरादा किया उस वक्त पंडित नेहरू ने उनका विरोध किया. जब मुसलमानों ने यह सोचा कि आजादी के वक्त की हुई गलती को ठीक किया जाए और अपनी लीडरशिप पैदा की जाए, उस वक्त डॉक्टर सैयद महमूद ने मुशावरत के विभाजन को क़बूल कर लिया, लेकिन डॉक्टर फरीदी के मिशन को तस्लीम नहीं किया. यही वजह है कि डॉक्टर फरीदी ने मुस्लिम मजलिस का गठन किया.

 

सब से पहले डॉ फरीदी ने दिया कोएलिशन गवर्नमेंट का फार्मूला

 डॉ रहमानी ने आजाद भारत में पहली बार साझा सरकार चलाने और कोएलिशन गवर्नमेंट का फार्मूला पेश करने का क्रेडिट डॉक्टर फरीदी को देते हुए कहा कि आजाद भारत में चरण सिंह के साथ मिलकर डॉक्टर फरीदी ने कोएलिशन गवर्नमेंट का पहला फार्मूला पेश किया, जो पूरी तरह से सफल रहा. उन्होंने कहा कि जब डॉक्टर फरीदी का मिशन शबाब पर था उस वक्त कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के जरिए से मुस्लिम मजलिस को खत्म किया, इससे साफ है कि कांग्रेस मुस्लिम नेतृत्व को किसी सूरत में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी.

 

आम जन के मसले उठाने में मुस्लिम लीडरशिप विफल

डॉक्टर तस्लीम रहमानी ने कहा कि आजादी के वक्त ही मुस्लिम लीडरशिप ने सबसे बड़ी गलती की और मुसलमानों को सियासत से अलग कर दिया. उन्होंने कहा कि पहले खौफ, उसके बाद शर्मिंदगी का एहसास और दुख की बात यह है कि आज भी मुस्लिम नेतृत्व से सियासी और समाजी मसलों पर कोई बात करने को तैयार नहीं होता है. आज भी मुस्लिम लीडरशिप महंगाई बिजली किसान ओबीसी दलित आदिवासी पिछड़ा अति पिछड़ा और फ़ौज के मसले उठाने में पूरी तरह से विफल है.

 

आज़ाद की तक़रीर पर उठाये सवाल

दुख की बात यह है कि आज मीडिया मुस्लिम नेतृत्व से मुसलमानों के मसले पर बात तो करता है, और जब साल में एक बार बजट पेश होता है उस वक्त मुस्लिम लीडरशिप से सिर्फ अल्पसंख्यक बजट पर बात की जाती है, लेकिन पूरे बजट पर उस से कोई बात नहीं होती है. उन्होंने देश के पहले शिक्षा मंत्री भारत रत्न मौलाना आजाद की तकरीर का हवाला देते हुए कहा कि उस वक्त मौलाना आजाद ने अपनी तकरीर में खुलकर कहा कि कांग्रेस मुसलमानों के मफाद की हिफाजत के लिए काफी है, जिसने मुसलमानों को सियासत से अलग कर दिया गया और सियासत से अलग होते ही मुसलमान पॉलिसी से अलग हो गए. डॉ रहमानी ने कहा कि इस गलती की वजह आजादी की जंग में कांग्रेस का रोल था, इसलिए लोगों ने कांग्रेस पर अंधविश्वास किया जिसे सर सैयद और जिन्ना तो समझ सके लेकिन मुस्लिम नेतृत्व उसे समझने में विफल रहा.

 

 मुस्लिम लीडरशिप को मुफीद मशवरा

डॉ रहमानी ने कहा कि मुसलमानों ने मौलाना आजाद से लेकर डॉक्टर फरीदी और उससे पहले सर सैयद और बाद में सैयद शहाबुद्दीन के नेतृत्व को तस्लीम किया लेकिन इस नेतृत्व ने मुसलमानों के मसले को कितना उठाया और उस में वह कितना सफल रहे यह एक सवाल है जो बहर हाल पूछा जाना चाहिए. उन्होंने मुस्लिम लीडरशिप से अपील की कि वह मुल्क के दूसरे नागरिकों के जो मसाइल हैं जैसे पानी करप्शन खाने पीने की चीजों में मिलावट महंगाई फौज के मसले समेत तमाम मसले उठाएं तो उन्हें समर्थन जरूर मिलेगा.

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