अजमेर: सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर मनाए जाने वाले वसंतोत्सव को परंपरागत रूप से दरगाह दीवान साहब के पुत्र सैयद नसरुद्दीन की अध्यक्षता में सोमवार को दरगाह में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
दरगाह दीवान साहब के मीडिया प्रभारी गुलाम फारूकी ने बताया कि सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के दरबार में परंपरागत रूप से बसंत उत्सव विगत वर्षों से मनाया जा रहा है यह परंपरा चिश्तिया सूफी मत के संत हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन चिश्ती के समय में प्रारंभ हुई जिसे अजमेर में सूफी मत के संत शाह निहाज़ रहमतुल्लाह अलेह ने इसे परंपरागत रूप शुरू किया तब से अब तक परंपरागत रूप से बसंत उत्सव का यह त्यौहार चिश्तिया सूफी संतों की दरगाह पर परंपरा के अनुसार मनाया जा रहा है।
सांप्रदायिक सौहार्द के इस त्यौहार को उसी सिलसिले के तहत सोमवार को दरगाह में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया सरसों के फूल हाथ में लिए दरगाह की शाही चौकी के कव्वाल बसंती गीत गाते हुए दरगाह दीवान साहब के पुत्र सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती की सदारत में जुलूस के रूप में निजाम गेट से रवाना हुए जो शाहजहानी गेट बुलंद दरवाजा संदली गेट होते हुए अहाता नूर में पहुंचे जहां कव्वालों ने दरगाह के खादिम और आम जारीनों के बीच बसंती गीत प्रस्तुत किए यहां से दरगाह दीवान साहब के पुत्र के नेतृत्व में आस्ताने मैं बसंती फूल पेश किए गए और देश में सौहार्द के लिए अमन चैन की दुआ की इसके बाद सैयद नसीरुद्दीन मारुति अमले और दरगाह कमेटी के लवाजमें के साथ खानकाह शरीफ पहुंचे जहां बसंत की रस्म अदा की गई और तमाम मौरूसी अमले व् कव्वालों को बसंती पगड़ी बांधी गई इसके बाद यहीं रसम परंपरागत रूप से हवेली दीवान साहब में भी अदा की गई जहां पर अमले के सदस्यों को इनाम व् इकराम तक्सीम किए गए। बसंत उत्सव का यह त्यौहार हिंदुस्तान की गंगा जमनी तहजीब को कायम रखने के लिए एक बड़ी मिसाल है जिसमें नासिर्फ मुस्लिम बल्कि सभी धर्मों के लोग पूरी श्रद्धा और सौहार्द के साथ शामिल होते हैं।
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