नयी दिल्ली: मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटा दिया है. वहीं सरकार ने राज्यसभा में राज्य पुनर्गठन का भी संकल्प पेश किया. जिससे जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. वहीं इससे लद्दाख को अलग करते हुए अलग राज्य बनाने की बात कही गई है. आज तक डाट इन की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर के मसले पर अपनी नीतियों को लेकर आलोचनाओं का शिकार होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी जानते थे कि एक न एक दिन अनुच्छेद 370 को हटना ही है. उनकी इस भविष्यवाणी की झलक जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेता पं. प्रेमनाथ बजाज को लिखे पत्र में दिखती है.
क्या कहा था पं. नेहरू ने?
21 अगस्त, 1962 को अनुच्छेद 370 के संबंध में पं. प्रेमनाथ बजाज के पत्र का उत्तर देते हुए जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था,
"वास्तविकता यह है कि संविधान में इस धारा के रहते हुए भी, जो कि जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा देती है, बहुत कुछ किया जा चुका है और जो कुछ थोड़ी बहुत बाधा है, वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी. सवाल भावुकता का अधिक है, बजाए कुछ और होने के. कभी-कभी भावना महत्वपूर्ण होती है लेकिन हमें दोनों पक्षों को तौलना चाहिए और मैं सोचता हूं कि वर्तमान में हमें इस संबंध में और कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए."
जवाहर लाल नेहरू और पं. प्रेमनाथ बजाज के बीच हुए इस पत्र व्यवहार का जिक्र जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन ने अपनी किताब- दहकते अंगारे में किया है. जगमोहन अपनी किताब में लिखते हैं कि इस पत्र से पता चलता है कि नेहरू ने स्वयं धारा 370 में भावी परिवर्तन से इनकार नहीं किया था. 'बहुत कुछ किया जा चुका है'- माना जा रहा है कि इस कथन के पीछे नेहरू का आशय था कि धारा 370 में जरूरत पड़ने पर सरकार संशोधन करती रही है. ऐसे में समय आने पर धीरे-धीरे संशोधनों के जरिए अन्य प्रावधान भी खत्म हो जाएंगे.
सत्ताधारी कुलीनों की जेबें भरता है अनुच्छेद 370- जगमोहन
जगमोहन दो बार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे. पहली बार वह अप्रैल 1984 से जून 1989 तक और दूसरी बार जनवरी 1990 से मई 1990 के बीच राज्यपाल रहे. इस दौरान वह जम्मू-कश्मीर में हुई कई निर्णायक घटनाओं के गवाह भी रहे. जगमोहन की नजर में जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद और फूट की सबसे मजबूत जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में रहीं.
उन्होंने किताब में लिखा है- कश्मीर समस्या का वास्तविक हल कमजोरियों और नकारात्मक कारणों को दूर करके ही संभव है. नई दृष्टि और नया भारत का उत्साह लिए नए भारत की आवश्यकता है. कश्मीर में पाखंडी नीति अपनी सीमाएं तोड़ चुकी हैं. आज भारत के नेताओं ने सुलगती सच्चाईयों का सामना करने के बजाए भ्रमों की छाया में रहने की प्रवृत्ति अपना रखी है.
जगमोहन ने अपनी किताब दहकते अंगारे में लिखा है कि कश्मीरी अलगाववाद और फूट की सबसे मजबूत जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में हैं. जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता है. निहित स्वार्थों द्वारा इस धारा का दुरुपयोग होता है. जगमोहन ने 15 अगस्त 1986 को अपनी डायरी में लिखा- धारा 370 इस स्वर्ग रूपी राज्य में केवल शोषकों को समृद्ध करने का ही साधन है. यह गरीबों को लूटता है. यह मृगतृष्णा की तरह उन्हें भ्रम में डालता है. यह सत्ताधारी कुलीनों की जेबें भरता है. नए सुल्तानों के अहम को बढ़ाता है.
कैसे लागू हुआ था अनुच्छेद 370
देश को आजादी मिलने के बाद रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. 25 जुलाई 1952 का मुख्यमंत्रियों को लिखे पंडित जवाहर लाल नेहरू के पत्र से अनुच्छेद 370 के लागू होने की जानकारी मिलती है. इस पत्र में नेहरू ने लिखा है- जब नवंबर 1949 में हम भारत के संविधान को अंतिम रूप दे रहे थे. तब सरदार पटेल ने इस मामले को देखा. तब उन्होंने जम्मू और कश्मीर को हमारे संविधान में एक विशेष किंतु संक्रमणकालीन दर्जा दिया. इस दर्जे को संविधान में धारा 370 के रूप में दर्ज किया गया. इसके अलावा 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भी इसे दर्ज किया गया. इस अनुच्छेद के माध्यम से और इस आदेश के माध्यम से हमारे संविधान के कुछ ही हिस्से कश्मीर पर लागू होते हैं.’’
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