नोएडा - यहाँ के युवा समाजसेवी एवं दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री रंजन तोमर द्वारा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो में लगाई गई एक और आर टी आई से बेहद चौंकाने वाले एवं दुखद नतीजे सामने आये हैं , पिछले दस वर्षों में देश भर में 424 हाथियों को शिकारियों द्वारा मार दिया गया , जिसमें अबतक 624 शिकारियों को गिरफ्तार किआ गया है , गौरतलब है के रंजन तोमर ने ही हाल ही में पिछले दस वर्ष में मारे गए 384 शेरों की खबर आर टी आई के माध्यम से उजागर की थी जिसके बाद राष्ट्रीय एवं अंतररास्ट्रीय स्तर पर इस बात को लिया गया था एवं पर्यावरण एवं वन्यजीवों के प्रति जाग्रति आई थी साथ ही 280 प्रजातियों को विलुप्त होने की खबर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंची थी जहाँ से इसके प्रति कड़े कानून बनाने की बात भी कही गई थी।
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इस जानकारी के आने से हाथियों को भी न्याय की उम्मीद जगी है , हाथियों को ज़्यादातर उनके हाथी दांत के लिए मारा जाता है जो ब्लैक मार्किट में मेहेंगी रेटों पर बिकता है , श्री तोमर ने पहले सवाल में यह जानकारी मांगी थी के 2018 में हाथियों की कितनी आबादी है जिसके बारे में जानकारी संकलित न होने की बात ब्यूरो ने कही , साथ ही जितने हाथी दांत आदि इन शिकारियों से प्राप्त हुए उसकी ब्लैक मार्किट में कीमत का अंदाजा होने से भी ब्यरो ने इंकार किया , किन्तु राज्य वार किस साल कितने हाथी मारे गए इस बाबत जानकारी श्री तोमर को प्राप्त हुई जिसके आंकड़े इस प्रकार हैं।
सबसे ज़्यादा हाथी केरल में मारे गए , जिसमें सं 2008 से 2014 तक क्रमश 23 ,22 ,31 ,38 ,15 ,6 एवं 1 हाथी मारे गए जिसका कुल योग 136 बनता है जबकि उसके बाद 2018 के बाद एक भी हाथी नहीं मारा गया। जिसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है जिसमें इन दस सालों में 48 हाथी मार दिए गए , कर्णाटक 46 ,तमिल नाडु में 44 एवं उड़ीसा में 41 हाथी मार दिए गए।
उत्तर प्रदेश में इन दस वर्षों में 21 हाथी मारे गए जबकि उत्तराखंड में यह संख्या 20 रही।
राजनीतिक विश्लेषण - 2014 के बाद मात्र 71 हाथी मारे गए
यदि इन आंकड़ों को राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए , क्यूंकि सरकार की नीतियों के कारण भी हत्या दर बढ़ती और घटती रहती है तो इन आंकड़ों से स्पष्ट है के 2014 के बाद हाथियों की हत्या में कमी आई है , जिससे कुछ राहत ज़रूर मिलती है , अर्थात 2008 से 2014 तक 353 हाथी मारे गए जबकि 2014 के बाद 71.
पर्यावरण को बचाने के लिए जानवरों को बचाना अतिआवश्यक है , जितने हाथी या शेर मारे जा रहे हैं यह पर्यावरण के लिए घातक है क्यूंकि यह दोनों अपनी खाद्य श्रंखला के प्रधान प्राणी हैं और इसके टूटने से इंसान को भी खतरा है , क्यूंकि खाद्य श्रंखला की एक कड़ी टूटने से पूरी श्रंखला टूटने का खतरा पैदा हो जाता है जिससे खाद्य पदार्थों की कमी होनी लाज़मी है एवं पर्यावरण को भारी नुक्सान होना तय है।
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