हैदराबाद में अपनी एक पहचान रखने वाली ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव में काफी चर्चा रही. ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता और मुखिया व लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की रैलियों में एक बड़ी भीड़ भी देखने को मिले लेकिन जमीन पर वोटरों से बातचीत करने के बाद यह बात स्पष्ट होती नजर आई कि वह भीड़ वोट के लिए असदुद्दीन ओवैसी की रैलियों में नहीं आई है बल्कि वह उनको सुनने या उनको देखने के लिए आई है.
कई वोटरों ने बातचीत में कहा कि जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी का रुख दलितों और मुसलमानों या पिछड़ों के लिए है उससे वह काफी दुखी हैं. कई व्यापारी भी नोटबंदी और जीएसटी के फैसले से भी भारतीय जनता पार्टी से नाराज नजर आए. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं का यह कहना था कि वह किसी भी सूरत में ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को वोट नहीं करेंगे या ओवैसी गठबंधन को वोट ना करके वह सीधे-सीधे महागठबंधन को वोट करेंगे. जमीन पर यह बात भी सुनने को मिली कि कल को अगर बिहार के लोगों के साथ कुछ होता है तो ओवैसी हैदराबाद से उनकी मदद के लिए नहीं आएंगे, बल्कि वहां लोकल तौर पर ही लोग उनकी मदद करेंगे.
ऐसे में मतदाताओं में यह बात तेज़ी से फैली और वह महागठबंधन के साथ खड़े होते नजर आए. कई मतदाताओं ने बातचीत में कहा कि वह महागठबंधन को इसलिए वोट कर रहे हैं क्योंकि महागठबंधन के नेता युवा हैं और वह उनमें अपना भविष्य देख रहे हैं.
हालांकि असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले गठबंधन को महागठबंधन के लिए वोट कटवा के तौर पर बिहार में पेश किया गया, लेकिन जमीन पर वतन समाचार ने जब लोगों से बात चीत की तो यह बात स्पष्ट तौर पर नजर आई कि असदुद्दीन ओवैसी बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए ज्यादा खतरा है, हालांकि उनको महागठबंधन के लिए खतरे के तौर पर पेश किया गया.
सियासत पर बारीक नजर रखने वालों का स्पष्ट तौर पर यह मानना है कि जहां भी मुस्लिम पार्टियां या मुस्लिम नेताओं के नेतृत्व वाली पार्टियां चुनाव लड़ेंगी वहां बीजेपी के विरुद्ध लड़ने वाले दलों को ज्यादा फायदा हो सकता है, क्योंकि ऐसे में चुनाव के ध्रुवीकरण होने का खतरा कम हो जाता है और जो दल एक विशेष समुदाय पर अपनी पकड़ रखते हैं वह यह मैसेज देने में नाकाम हो जाते हैं कि नकाब वाली महिलाएं या दाढ़ी रखने वाले लोग या मुस्लिम मतदाता किस को वोट करेंगे, क्योंकि मुस्लिम नेतृत्व वाले गठबंधन के होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह सीधे सीधे उसी के वोटर हैं और उसी को वोट करेंगे.
पिछले कुछ चुनाव के अध्ययन के बाद यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गई है कि मुस्लिम नेतृत्व वाले गठबंधन या दल से सीधे-सीधे बीजेपी को भयंकर तौर पर नुकसान होता है और वोटरों के ध्रुवीकरण होने का खतरा कम से कम हो जाता है. महाराष्ट्र के चुनाव से लेकर झारखंड के चुनाव तक यही बात देखने को मिली है. इससे पहले उत्तर प्रदेश के 2012 के चुनाव को देख लें जहां पीस पार्टी पूरी ताकत से लड़ी लेकिन नतीजा बीजेपी के विरुद्ध और सपा के पक्ष में आया.
इसी तरह से 2009 के लोकसभा चुनाव में पीस पार्टी उस वक्त एक बड़े दल के तौर पर उभर रही थी. उसको लेकर के काफी जोश था वोटरों में लेकिन फायदा उसका सीधे-सीधे कांग्रेस को हुआ और कांग्रेस बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद सबसे ज्यादा सीटों को जीतने में सफल रही और लगभग दो दर्जन सीटें उनको मिलीं. ऐसे में जानकारों का यह मानना है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी गठबंधन से महागठबंधन को काफी फायदा हुआ है और बीजेपी को काफी नुकसान हुआ है, लेकिन होगा क्या इसके लिए कल तक का इंतजार करना ही होगा.
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