नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज (मंगलवार) इस बात पर फैसला देगा कि दागी सांसदों/ नेताओं को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए और क्या एक सांसद या विधायक जो वकील भी हैं, उन्हें दोहरी भूमिका निभाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
संविधान पीठ वाली पांच न्यायाधीशों की बेंच, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचुद और इंदु मल्होत्रा शामिल थे, ने पिछले महीने याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित कर दिया था।
अदालत एनजीओ पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन व् दिल्ली भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी।
केंद्र की ओर से हाजिर हुए , अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि न्यायपालिका कानून बनाने में नहीं आ सकती है, जो विधायिका के लिए आरक्षित है। अभी तक के कानून के मुताबिक, आपराधिक मामलों में दो साल से ज्यादा की सजा होने पर जेल से बाहर आने के बाद 6 साल की अयोग्यता का प्रावधान है जबकि करप्शन, एनडीपीएस में सिर्फ दोषी करार होना काफी है.
दरअसल, मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक NGO पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की याचिकाएं हैं. जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालत आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए.
सीजेआई दीपक मिश्रा ने केंद्र से कहा था कि हम अपने आदेश में ये जोड सकते हैं कि अगर अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया तो उसे चुनाव चिन्ह ना जारी करे. AG ने कहा कि अगर ऐसा किया गया तो राजनीतिक दलों में विरोधी एक- दूसरे पर आपराधिक केस करेंगे. कोर्ट को देश की वास्तविकता को देखना चाहिए. चुनाव खर्च की सीमा तय करना देश का सबसे बडा मजाक है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में करीब 30 करोड रुपये खर्च करता है. चुनाव के वक्त प्रत्याशियों के खिलाफ ज्यादा मामले दर्ज होंगे.
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