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कोई हमें लौटा दे हमारा पुराना भारत

आखिर क्या कारण है कि आज हम सभी भारतीय एक साथ उठने-बैठने के बावजूद, एक दूसरे के दुख-दर्द में काम आने के बावजूद और हर दुख-सुख में एक दूसरे को सहायता करने के बावजूद जब भी सामाजिक मामला सामने आता है या फिर देश-प्रेम की बात आती है तो हमारे बीच हिंदू-मुस्लिम की दीवार खड़ी कर दी जाती है, हम सबको इस विषय में सोचना होगा और हमारे बीच बनाई जा रही खाई को पाटने के साथ-साथ उन लोगों को भी सबक सिखाना होगा जो हम भारतीयों के बीच खाई बनाते रहते हैं और ऐसे लोगों को उनके मकसद में नाकाम करना होगा ताकि हमारे आपसी प्रेम और सद्भभाव को कोई हानि न पहुंचे। और ऐसा करते समय हमें यह नहीं देखना होगा कि हमारे देश और हमारे समाज को हानि पहुंचाने वाला किस गिरोह, किस जाति और किस धर्म से संबंध रखता है।

By: Guest Column
  • कोई हमें लौटा दे हमारा पुराना भारत

  • डॉक्टर जहांगीर हसन मिस्बाही

 

वह भी क्या जमाना था कि जब हमारे यहां कोई त्योहार या पर्व हुआ करता था तो हम सभी मिलजुल कर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया करते थे, चाहे वह ईद का त्योहार हो चाहे वह मोहर्रम हो या फिर होली हो या दिवाली हो या दुर्गा-पूजा जैसे त्योहार हों। ऐसे त्योहारों के अवसर पर कौन हिंदू है और कौन मुस्लिम है इस का एहसास तक नहीं होता था। इन त्योहारों में सभी हिंदू मुस्लिम भाई, बल्कि यह कहना उचित होगा की सभी भारतीय एक दूसरे को समर्थन करते थे और एक दूसरे की सहायता करते थे।

 

 

आज भी हमें वह जमाना याद है जब हम अपने ब्राह्मण दोस्तों के साथ उनके घरों में जाया करते थे, उनके साथ खाया-पिया करते थे, उनके साथ खेल-खुद किया करते थे, कभी-कभी हम दोस्तों में आपसी तकरार और तनाव भी हो जाया करता था लेकिन हम सब के माता-पिता और बड़े-बूढ़े बड़े ही प्यार से हमारे बीच हुए तकरार को और तनाव को खत्म कर दिया करते थे और जरूरत पड़ने पर हम सभी को एक-एक थप्पड़ भी जड़ दिया करते थे, लेकिन इसके बावजूद हमारे दरमियान न तो कोई नफरत का माहौल पैदा हो पाता था और न ही हमारे बीच कभी किसी मजहब की बुनियाद पर या जात-पात की बुनियाद पर कोई तनाव पैदा होता था, न ही किसी के दिल में किसी भी तरह का कोई सन्देह होता था और न ही किसी के मन में कोई गलत-विचार उत्पन्न होता था, लेकिन अफसोस कि आज सब कुछ उल्टा पुल्टा नजर आता है। हालांकि आज भी भारत वही है, भारत के लोग भी वही हैं और भारत में मनाये जाने वाले हिंदू-मुस्लिम एकता और आपसी सद्भाव के प्रतीक त्योहारें भी वही हैं। लेकिन हम भारत-वासियों के अंदर वह भाईचारा, आपसी प्रेम और वह तालमेल कहीं भी नजर नहीं आता है जो हम भारत-वासियों की संस्कृति का अटूट अंग है। इसका कारण क्या है और आज-कल क्यों ऐसा हो रहा है? इस विषय पर भारत के समूचे बुद्धिजीवियों को चिंतन मंथन करना होगा।

 

 

 

जहां तक हम समझते हैं कि आज भी हमारे भारतीय-समाज में और संपूर्ण देश में वही भाई-चारा और वही प्रेम-भाव और वही आपसी ताल-मेल फिर से बहाल हो सकता है लेकिन शर्त यह है कि समाज के दुश्मनों की पहचान कर ली जाये और उनकी सारी मक्कारी-अय्यारी और चालों को समझ लिया जाये जो हम भारतीयों को तोड़ना चाहते हैं, हमारे हृदय में नफरत पैदा करना चाहते हैं और हमारे बीच भ्रम और डर फैलाकर हम पर राज करना चाहते हैं और हम सब को हानि पहुंचाना चाहते हैं।

 

 

 

 

आखिर क्या कारण है कि आज हम सभी भारतीय एक साथ उठने-बैठने के बावजूद, एक दूसरे के दुख-दर्द में काम आने के बावजूद और हर दुख-सुख में एक दूसरे को सहायता करने के बावजूद जब भी सामाजिक मामला सामने आता है या फिर देश-प्रेम की बात आती है तो हमारे बीच हिंदू-मुस्लिम की दीवार खड़ी कर दी जाती है, हम सबको इस विषय में सोचना होगा और हमारे बीच बनाई जा रही खाई को पाटने के साथ-साथ उन लोगों को भी सबक सिखाना होगा जो हम भारतीयों के बीच खाई बनाते रहते हैं और ऐसे लोगों को उनके मकसद में नाकाम करना होगा ताकि हमारे आपसी प्रेम और सद्भभाव को कोई हानि न पहुंचे। और ऐसा करते समय हमें यह नहीं देखना होगा कि हमारे देश और हमारे समाज को हानि पहुंचाने वाला किस गिरोह, किस जाति और किस धर्म से संबंध रखता है।

 

 

 

 

इसी के साथ हम में का हर भारतीय अपना अपना आकलन करे कि वह अपने समाज और अपने देश के हित में क्या कुछ लाभदायक कार्य कर रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि वह किसी के बहकावे में आकर अपने समाज को और अपने देश को हानि पहुंचा रहा है? अगर ऐसा है तो उसे तुरंत अपने ऐसे बुरे कार्य से रुक जाना चाहिये और यह याद रखना चाहिए कि किसी भी धर्म या किसी भी समाज में किसी को हानि पहुंचाने की बात नहीं कही गई है। फिर वह यह भी सोचे कि एक न एक दिन उसे भी इस दुनिया से चले जाना है और फिर यह दुनिया और इसकी तमाम चीजें इसी दुनिया में छूट जानी है, अगर उसके साथ कोई चीज जायेगी तो वह उसके कर्तव्य होंगे, उसके अच्छे व्यवहार होंगे और उसके पुण्य होंगे, इस लिए हर तरह के भेदभाव को दरकिनार करते हुए हर  देशवासी को पहले की भांती आपसी प्रेम, और भाई-चारा को बनाये रखने पर जोर देना चाहिये और आपस में एक दूसरे के लिए बलिदान का जज्बा रखना चाहिये और इंसानियत की हिफाजत हर हाल में करनी चाहिये। तभी जाकर हर भारतीय अपने देश और अपने समाज को मजबूती प्रदान कर सकता है और अपने भारत को पूरी दुनिया में विश्व गुरु के तौर पर पेश कर सकता है वरना नहीं।

 

 

 

 

लिहाजा आज हर भारतीय एक साथ यह सौगंध खाये कि वह किसी के बहकावे में नहीं आयेगा और यह भी प्रतिज्ञा ले कि किसी भी तरह का मजहब-वाद अथवा जातिवाद या फिर नस्ली भेदभाव को पनपने नहीं देगा।

 

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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