New Delhi: आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने आज कहा है कि विवाहित महिला से उसकी संतुष्टी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने को उच्चतम न्यायालय द्वारा सही ठहराया जाना नैतिक मूल्यों और पूर्वी परम्पराओं के विरुद्ध है। कुछ दिनों पहले समलैंगिक संबंध की अनुमति दी गई है और अब यह वर्तमान फैसला हमारे सामने है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत पश्चिमी संस्कृति और मूल्यों की तरफ बढ़ रहा है, विवाहित महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति हक़ीक़त में हरामकारी को कानूनी मान्यता देने का न्यायिक प्रयास है, जिसे किसी भी तरह प्रशंसनीय नहीं कहा जा सकता है।
मौलाना मो0 वली रहमानी महासचिव ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वर्तमान फैसले पर अपने इन विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान फैसले पर अपने दुख: को व्यक्त करते हुए कहा कि "किसी विवाहित महिला के साथ शारीरिक संबंध या विवाहित पुरुषों का अपनी पत्नी के सिवा किसी दूसरी औरत के साथ शारीरिक संबंध हर धर्म में पाप माना जाता है, इस तरह के गंदे कार्य को सही ठहराने और उसे कानूनी मान्यता देना अनुचित है, इस से समाज में नैतिक बिगाड़ पैदा होगा, पारिवारिक प्रणाली का ताना बाना बिखर जाएगागा, नाजायज औलाद की संख्या बढ़ेगी, और कुछ वर्षों पश्चात पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहां भी ऐसे बच्चों की अच्छी खासी संख्या होगी जिन के लिए अपने पिता का नाम बताना मुश्किल होगा।
हमें यह तय करना है कि हम अपने देश में कौन सा समाज चाहते हैं, सभ्य व पाक दामन समाज या ऐसा समाज जो नग्नता और अवैध कृत्यों का पालन करता है।
मौलाना मो0 वली रहमानी ने हैरानी ज़ाहिर करते हुये आगे कहा कि यह अजीब बात है, कि लीव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक सेक्स और विवाहित पुरुषों और महिलाओं को उनकी सहमति से अवैध यौन संबंध रखने की अनुमति है, लेकिन एक से अधिक महिलाओं से विवाह करना, महिलाओं पर हिंसा के रूप में माना जाता है और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जाती है।
दूसरी महिला के साथ यौन संबंध रखना कानूनी जीवनसाथी की उपस्थिति में माननीय न्यायालय द्वारा न्यायसंगत है और अब कोई अपराध नहीं है, फिर महिलाओं पर विनम्रता और सम्मान के साथ महिलाओं को पत्नी का दर्जा देना महिलाओं पर ज्यादती कैसे है।
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