नयी दिल्ली: तलाक़ और दूसरे मामलों को लेकर जारी बहस के दरमियान सेंट्रल वक़्फ़ काउंसिल के सदस्य रईस खान पठान ने वतन समाचार से बात चीत में कहा है कि इस्लाम और मुसलमानों को संविधान में अधिकार मिले हुए हैं. उन्हों ने कहा कि हमारा संविधान सभी धर्मों और उन के प्रचार प्रसार के लिए सुरक्षा कवच के तौर पर काम करता है.
उन्हों ने कहा कि तलाक़ पर जो वाद विवाद की कैफियत बानी है, उस के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को खुद से सवाल करना चाहिए. बोर्ड को खुद से यह पूछना चाहिए कि आखिर इस के लिए ज़िम्मेदार कौन है? उन्हों ने कहा कि हर चीज़ के लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराना आसान काम है, लेकिन खुद बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य क़ासमी रसूल इलियास ने माना है कि अगर सभी मसलकों को लेकर चाला गया होता तो फैसला कुछ और आसकता था. मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी महासचिव मुशावरत ने भी माना है कि क़ासमी रसूल इलियास ने यह बात कही थी.
पठान ने कहा कि SQRI को जमात बोर्ड का प्रवक्ता बनाना चाहती है फिर ऐसे आदमी की बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया. पठान ने कहा कि बोर्ड के ही SQRI ने ही अपने एक लेख में 30 साल बाद स्वीकारा है कि शाहबानू वाले मामले में बोर्ड से चूक हुयी, आखिर बोर्ड को ३० साल और १३ माह बाद अकाल क्यों आती है?
वह कौन लोग हैं जो बोर्ड और मुसलमानों की रुस्वाई कराते हैं. ऐसे मसले पर बोर्ड को ध्यान देने की जरूरत है. कोई भी सरकार या कोर्ट इस्लाम या किसी धर्म ने मुदाख़लत नहीं कर सकती है. उस को संविधान का कवच हासिल है.
उन्हों ने कहा कि मुसलमानों को इस मसले को सियासी होने से बचाना चाहिए था. बोर्ड को अपनी ज़िम्मेदारी क़बूल करते हुए सरकार बोर्ड और अवाम के बीच एक रास्ता निकालना चाहिए था ताकि सरकार और मुसलमोनों के बीच ताल-मेल बने. उन्हों ने कहा कि आज भी तलाक़ मुसलमानों में दूसरे लोगों के मुक़ाबले काफी कम है, लेकिन बोर्ड इस का प्रचार करने में पूरी तरह विफल रहा.
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