मोहम्मद अहमद
नयी दिल्ली: दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के "वार्षिक सम्मेलन" का आयोजन आज दिल्ली के विज्ञान भवन में किया गया. इस मौके पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन डॉक्टर जफरुल इस्लाम खान ने आयोग की उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि अल्पसंख्यक बच्चों के लिए स्कॉलरशिप का मामला काफी गंभीर है. उन्होंने कहा कि सौ फीसद कोचिंग फीस वापसी के लिए वार्षिक इनकम 60,000 है जबकि 60 फीसद ट्यूशन फीस की वापसी की वार्षिक लिमिट 200000 है जोकि गलत क्योंकि कि दिल्ली सरकार ने अनस्किल्ड लेबर के लिए जो मिनिमम वेज तय किया है वो 13896 है जो वार्षिक 166852 होता है. इसलिए हमने सरकार को पत्र लिखा है कि इसे 300000 तक किया जाए.
delhi minority commission chairman members and secretary
यही वजह है कि आज अगर सब कोई स्कॉलरशिप मिल जाए तो वह 8000 होगी जबकि हमारी कोशिश 80000 बच्चों को दिलाने की है.
उन्होंने कहा कि इस साल दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने जागरूकता के लिए 52 कैंप लगाए हैं और हमने एनजीओज की जिम्मेदारियों को बढ़ाते हुए उनके फंड को भी बढ़ाने का फैसला किया है. हमारी कोशिश है कि कॉन्फ्रेंस सेमिनार और अल्पसंख्यकों पर किताब लिखने वाले लोगों को भी हम आर्थिक तौर पर मदद दे.
उन्होंने कहा कि दिल्ली में अल्पसंख्यकों की आबादी 20 फीसद है जबकि कई ऐसे सरकारी विभाग हैं जिसमें उन की नुमाइंदगी ज़ीरो से कुछ ज्यादा है, इसके लिए भी हम सरकार से बातचीत कर रहे हैं.
डॉक्टर ज़फरुल इस्लाम ने मदरसा बोर्ड का मुद्दा एक बार फिर उठाते हुए कहा कि हमने सरकार से पूछा है कि एसपीक्यूईएम स्कीम की क्या स्थिति है. अगर हम दिल्ली के मदरसों का रजिस्ट्रेशन शुरू कर दे तो क्या इसके अंतर्गत उनको ले लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि हमने जामिया के अल्पसंख्यक चरित्र को लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया के मैनेजमेंट को नोटिस जारी करके जब जवाब मांगा तो उन्होंने कहा कि हम मजबूती से जामिया के अल्पसंख्यक चरित्र की लड़ाई लड़ रहे हैं.
उन्होंने कहा कि हमें जब जामिया स्कूल के सीबीएसई के साथ जुड़ने की खबर आई उस पर भी हमने जामिया को नोटिस दिया जिस पर उन्होंने कहा कि जामिया स्कूल का अपना एक बोर्ड है इसे सीबीएसई से एफिलिएट नहीं किया जा सकता. उन्होंने पारसी समुदाय को पहली बार आयोग से जोड़ने का दावा करते हुए कहा कि हमें खुशी है कि पारसी समुदाय हमारे साथ पूरा सहयोग कर रहा है. उन्होंने पारसी अंजुमन की चीजों से भी फायदा उठाने की हम से अपील की है.
उन्होंने कहा कि अभी कमिशन में 52 NGO इम्पैनल है. हमारी कोशिश है कि इसे और बढ़ाया जाए. डॉ खान ने कहा कि आयोग को एक शिकायत मिली कि आए बुज़ुर्ग को पेंशन इसलिए नहीं मिल रहा है क्योंकि उसका अंगूठा आधार कार्ड से लिंक नहीं कर रहा है. इस के बाद जब हमने इस पर आधार अथॉरिटी को नोटिस दिया तो उन्होंने हमें जवाब देकर कहा कि इसके लिए हमने एक जनरल ऑर्डर इशू कर दिया है कि ऐसी परिस्थितियों में कोई दूसरी आईडी लेकर काम चलाया जाए.
उन्होंने कहा कि सिक्योरिटी जरूरी है लेकिन किसी को इस की आड़ में हाफ स्लीव पहनने या कृपाल ले जाने से रोका नहीं जा सकता है. इसलिए हमने इसके लिए एक आर्डर जारी किया जिस पर अमल शुरू हो गया है. हमने सभी विभागों को कहा जो अपने धर्म पर चलना चाहता है ऐसे इंसान को 30 मिनट 40 मिनट पहले बुला लिया जाए ताकि सिक्योरिटी में किसी तरह की बाधा ना आए.
उन्होंने कहा कि एमसीडी ने 704 फैमिलीज जो डेंगू वगैरा की दवाई डालते हैं उनसे कहा कि आप 4 महीने बाद आइएगा. उनकी रोजी-रोटी का मामला आ गया, जिस पर हमने तत्काल नोटिस लिया उसके बाद एक दिन छोड़कर के एक दिन उनको बुलाया जाने लगा. उन्होंने कहा कि वैलिड ओबीसी सर्टिफिकेट होल्डर्स को भी नया सर्टिफिकेट लेने का डीयू ने फरमान जारी किया, जिसके बाद हमने एक्शन लिया और फिर 14000 बच्चों को पुराने वैलिड सर्टिफिकेट पर ही एडमिशन मिला. उन्होंने कहा कि पहली बार हमने शिक्षा सेवा सौहार्द पत्रकारिता समेत सभी विभागों में काम करने वाले लोगों को अवार्ड देने का फैसला किया.
उन्होंने कहा कि हमें दुख है कि जैन और बौद्ध समाज के लोगों को आज सही तरीके से आबादी के अनुपात उनका हक नहीं मिल पाया है, जिसके जिम्मेदार वह खुद हैं, क्योंकि हमने कई बार उनके जिम्मेदारों से बातचीत की लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया.
उन्होंने कहा कि भविष्य में नार्थ ईस्ट में मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक सामाजिक स्थिति 1984 के दंगों में मारे गए परिवारों की स्थिति और दिल्ली की जेलों में बंद अल्पसंख्यकों की सूरते हाल पर हम ने स्टडी का फैसला लिया है और इसके लिए टेंडर जल्द ही जारी कर दिया जाएगा.
डॉ खान ने कहा कि आयोग ने रोहनी की जेल देखने के बाद महसूस किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपनी आबादी का 3 गुना जेलों में हैं तो फिर हमें महसूस हुआ इसकी वजह कहीं पक्षपात या पैसे की कमी की वजह से अच्छे वकीलों का ना रख पाना या पुलिस का लचर रवैया तो नहीं है.
उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि दिल्ली के सभी डीएम ऑफिस में अल्पसंख्यक आयोग का एक कमरा हो और उसके बाद सभी एसडीएम ऑफिस में अल्पसंख्यक आयोग का एक कमरा हो ताकि जो लोग आईटीओ तक नहीं पहुंच सकते हैं वह वहां अपने काम करा सकें और उन को कोई परेशानी ना हो.
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