जब बढ़वाना हो निदेशकों का कार्यकाल, तब कैसे पूछ सकेंगी एजेंसियां भाजपा से सवाल
कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि दोस्तों, “जब बढ़वाना हो निदेशकों का कार्यकाल, तब कैसे पूछ सकेंगी एजेंसियां भाजपा से सवाल?” ये उद्देश्य है, जो कारनामे आप देख रहे हैं कल से और पहले से भी। क्योंकि, घोटालों और जुर्मों से बचाने खुद की नाक, भाजपा तेजी से गिरा रही है सभी संस्थाओं की साख।
मैं आपसे तकनीकी बातें नहीं करने वाला हूं। मूल शब्द ऑर्डिनेंस का, अध्यादेश का महत्वपूर्ण है वो है– एक्सटेंशन, समय बढ़ाना। इसका मतलब क्या है– इसका मतलब है कि आप अपने आपके लिए कानून द्वारा अपने आप यानी सरकार, मंत्रालय, मंत्री, मोदी सरकार अपने लिए अध्यादेश द्वारा ये अधिकार क्षेत्र प्राप्त कर रही है कि जो चल रहा है, जो पदासीन व्यक्ति है, उसको हर वर्ष, प्रतिवर्ष एक वर्ष के लिए उसका कार्यकाल बढ़ा सके और एक वर्ष के बाद एक वर्ष और, जब वो वर्ष आएगा चौथा, तब उसको फिर बढ़ा सके और जब एक और पांचवा वर्ष आएगा, तब उसको फिर बढ़ा सके पांचवे वर्ष के लिए। ये अधिकार क्षेत्र दिया है इस अध्यादेश ने। इसका सीधा उद्देश्य, प्रमाण, इसका गन्तव्य, इसका जो मूल तत्व क्या है, वो है- लटकाना, झुलाना, इंतजार करना, नियंत्रण करना, कंट्रोल फ्रीक सरकार।
क्या मतलब होता है लटकाना, झुलाना, इंतजार करना, नियंत्रण करना, कंट्रोल फ्रीक सरकार का- मैं आज पदासीन व्यक्ति हूं, मुझ से जो काम चाहिए, वो करवाते रहेंगे। जो गलत, गैर कानूनी, द्वेषपूर्ण या कोई उस प्रकार का काम है, वो करवाते रहेंगे और इस सरकार के सात साल के इतिहास इससे प्रज्जवलित है ऐसे कई उदाहरणों से और अगर आपने काम पर्याप्त रुप से, सेवा पूर्वक, पूरे सही एफिशियेंसी के साथ कर डाला, तो इस अध्यादेश के जरिए आपको एक साल और मिलेगा। 3 साल नहीं, 5 साल नहीं, एक साल और मिलेगा। आप प्रोबेशन में हैं हर वर्ष अगले वर्ष के लिए और आपके अगले वर्ष का प्रोबेशन इस वर्ष के निर्धारित काम को कार्यांवित करने पर निर्भर करता है। वही काम जो आप इस द्वेष से बड़ी सरकार के अलग-अलग एजेंसियों द्वारा देख रहे हैं 7 वर्ष से।
अंग्रेजी में इसको कह सकते हैं Keeping you on a leash, watching you and giving you incremental, partial, piecemeal extensions, because that allows me to be a control freak over you, that allows me to control, because I will say, next time please watch out, your provision in coming again after one year. You better behave into everything I tell you because then only you will get an extension. मैं ये समझ सकता हूं कि आपने स्वतंत्रता और निष्पक्षता के नाम पर एक बहुत बड़ा अध्यादेश पास किया है, जिसके अंतर्गत आप 5 वर्ष का कार्यकाल, समूचा फिक्स्ड जो बदलाव नहीं कर सके कोई, वैसा कार्यकाल एक कानून द्वारा लाए हैं, जो अगले नए पदासीन व्यक्ति को दिया जाएगा। उसको कहा जा सकता है कि आप इस अध्यादेश द्वारा किसी निष्पक्षता, स्वतंत्रता, एक स्वतंत्रता के स्तंभ को बना रहे हैं, लेकिन इसका विपरीत कर रहे हैं। आप कह रहे हैं कि मैं नोर्मली आपको 2 साल के लिए फिक्स्ड नियुक्त दिया है सरकार ने। 2 साल के बाद मैं हर साल आपको 6 महीने या 1 साल की बढ़ोतरी दूंगा। एक साथ नहीं दूंगा, पहले से नहीं बताउंगा, फिक्स्ड नहीं दूंगा, आपको अपने ऊपर निर्भर करुंगा। ये आत्मनिर्भर सरकार है, हम सब जानते हैं। ये आत्मनिर्भर सरकार के स्लोगन माननीय प्रधानमंत्री स्लोगन की एक नई परिभाषा है कि मैं आपको अपने ऊपर निर्भर करुंगा और आपको अपने ऊपर निर्भर करवाकर मैं काम करवाऊंगा, वही जो मैंने कहा आपको- लटकाना, झुलाना, इंतजार करना, कंट्रोल करना।
ये चाहे आप सीबीआई के विषय में देख लीजिए, चाहे आप ईडी के विषय में देख लीजिए। अलग-अलग नई-नई चीजें हो रही हैं सीबीआई के लिए। मैंने और सोचा कि शायद इसको आप Credibility Bereft Institution (CBI) भी कह सकते हैं, अंग्रेजी में सीबीआई, Credibility Bereft Institution. ईडी के लिए भी कई शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन मूल बात ये है कि जब अभी उस कागज पर शायद स्याही भी सूखी नहीं होगी, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आप बस और नहीं। आप जो बढ़ावा देते हैं इस टर्म को, उसका अंत अब होना चाहिए। ये आपको मालूम है कि ये दो साल का और उसके बाद माननीय खंडपीठ उच्चतम न्यायालय की, जिसके अंतर्गत उन्होंने कहा कि आगे नहीं बढ़ सकता और वो कार्यकाल एक केस में 18 नवंबर को अंतर हो रहा था या 17 की रात को। दूसरे कार्यकाल में जो भी कार्यकाल था, तब अंत होता। ऐसी चीजें कहने का फायदा क्या, अगर उच्चतम न्यायालय अभी कहती या दो हप्तों बाद। उसको पूरा आप बाहर फैंकते हुए अनादर के साथ बिना उसको सुने, समझे, आत्मसात किए, उसका उल्लघंन करते हैं कानून द्वारा और कानून कब– संसद के 15 दिन पहले।
आपको संसद की अवहेलना करनी है, आपको उच्चतम न्यायालय का बायपास करना है। आप किस संस्था को छोड़ने वाले हैं?
मैं याद दिलाना चाहता हूं, हम सब जानते हैं, आप भी जानते हैं, लेकिन संस्थापित स्मृति जगाने की आवश्यकता पड़ती है बार-बार। ये पीसमिल एक्सटेंशन, यही मूल बात थी जिसको 1997 में जैन हवाला केस में उच्चतम न्यायालय ने कड़ी निंदा की थी। कुछ पंक्तियां मैं आपको याद दिला दूं-
“[a]n in-depth consideration of the matter leaves us with no doubt that the clear legislative intent in bringing the aforesaid provisions to the statute book are for the purpose of ensuring complete insulation of the office of the Director, CBI from all kinds of extraneous influences, as may be, as well as for upholding the integrity and independence of the institution of the CBI as a whole.”
ये 97 का नहीं है, ये 97 के बारे में 2019 में आलोक वर्मा अस्थाना केस में लिखा गया है, लेकिन 1997 के बारे में है। बड़े सही शब्द हैं, बड़े स्पष्ट शब्द हैं, बड़े परिपक्व शब्द हैं, बड़े मजबूत शब्द हैं। मैं पूछना चाहता हूं आपके जरिए कि “purpose of ensuring complete insulation of the office of CBI from all kinds of extraneous influences and for upholding the integrity and independence” इससे होता है कि हर वर्ष मैं बोलूं इनको कि आपका अगला साल आ रहा है प्रमोशन का, आप बिहेव करते हैं अपने आपको, तो मैं देता हूं आपको बढ़ोतरी, एक्सटेंशन और नहीं करते हैं, तो नहीं देता हूं। ये उद्देशय परिपूर्ण होता है उससे?
दूसरा देखिए आप “The long history of evolution has shown that the institution of the CBI has been perceived to be necessarily kept away from all kinds of extraneous influences so that it can perform its role as the premier investigating and prosecuting agency without any fear and favour. The head of the institution has to be the role model of independence and integrity which can only be ensured by freedom from all kinds of control and interference.” तो आप सोचिए, पहलू नंबर एक– आपने पीसमिल लटकाने, झुलाने और इंतजार कराने वाली प्रवृत्ति का इस्तेमाल किया है कानून बनाकर।
नंबर दो- आपने अध्यादेश 15 दिन पहले किया है। बड़ा स्पष्ट है संसद को बायपास करने के लिए।
नंबर तीन- आपने उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्णय को, जो कुछ ही महीनों पुराना है, उसका उल्लंघन किया है। उसको खिड़की के बाहर फैंक दिया है, उसकी अवमानना की है, उसका अनादर किया है।
नंबर चार- आपने ये किया है, सभी एजेंसी का दुरुपयोग करने के लिए, जो कि 7 साल से आपने भारत की इतिहास में लिख दिया है और अब आपने घोषित कर दिया है, आपका इरादा अगले कुछ सालों के लिए भी ये करने का और सिर्फ इसलिए कि किसी का एक दिन तारीख जा रही है, किसी का एक दिन कार्यकाल खत्म हो रहा है।
तो मैं अंत में ये कहूंगा कि इसमें जनहित क्या है, पब्लिक इंट्रस्ट क्या है? – स्वहित है, बीजेपी हित है, सरकार हित है। 5 साल तो बहाना है, साहेब को बहुत छुपाना है, आखिर अपने दोस्तों को बचाना है और विपक्ष को भी तो दबाना है। ये 5 साल ये हैं- लटकाना, झुलाना ये हैं और अगर आपको इतना शोक था अध्यादेश पास करने का और 5 साल के स्वतंत्र, निष्पक्ष, मजबूत कार्यकाल को देने का, तो आपने बड़ा स्पष्ट एक कानून क्यों नहीं पास कर दिया कि ये टेन्योर बिना किसी इंटरफेयरेंस के, बिना किसी हस्तक्षेप के, बिना किसी के चिक-चिक के, सब व्यक्ति जो हैं और आगे आने वाले हैं, उनका 5 साल होगा फिक्स्ड। ये नहीं कहा आपने। आपने कहा हम आपको देंगे एक्सटेंशन। एक प्रकार से जैसे आप बांटते हैं फायदे, रिवोर्ड्स, फायदे। 15 दिन पहले क्यों किया – चुप्पी। उत्तर ये है कि संसद के 15 दिन पहले इसलिए किया कि हम तो हमेशा से ऐसे करते चले आ रहे हैं। 7 वर्ष में हमने सैंकड़ों बार संसद के महीने, 15 दिन पहले अध्यादेश, ऑर्डिनेंस पास किया, आप क्या कर पाए? कोर्ट ने कुछ किया? विपक्ष ने कुछ किया? हम और करेंगे। हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हमारा संवैधानिक अधिकार है, आप तो रोक नहीं पाए इसको।
नंबर तीन– क्या आप समझते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जिसको हर 6 महीने में बोलते हैं कि आपका प्रमोशन आने वाला है कुछ महीनों में। वो स्पष्टता, निष्पक्षता, स्वतंत्रता से काम कर सकता है? क्या ये आपको कॉमन सैंस लगता है? कोई भी हो।
नंबर चार- ये विशेष कृपा जो की है दो एजेंसियों की। उन दो एजेंसियों का ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है पिछले 7 साल में। जो लॉन्ड्री मशीन है, उसमें से किसको डाल कर, निकाल कर सफेद किया जाता है और किसको दबा कर, क्रश करके काला किया जाता है और किन लॉन्ड्री मशीन के द्वारा किन एजेंसी का दुरुपयोग हुआ है, ये पूरा देश जानता है 7 साल से।
नंबर पांच– क्या पब्लिक इंट्रस्ट, क्या जनहित है?
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