जवाबदेही तय ना होने की वजह से कांग्रेस के नेता जिस तरह से हार के बाद भी दनदनाते रहते हैं वह सिर्फ कांग्रेस में ही संभव है, बाकी किसी दूसरी पार्टी में ऐसा देखने को नहीं मिलता है. कांग्रेस पार्टी में नेताओं को इतनी आजादी है कि वह हार के बाद भी हार पर चिंतन मंथन करने के बजाय अगर उसके लिए उनको कोई समझाने की कोशिश करता है या बताना चाहता है तो वह उसे समझने और स्वीकार करने के बजाय अपनी गलती का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ने में ज्यादा बेहतरी समझते हैं.
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और मौजूदा सांसद ने बिहार में एक बैठक के दौरान जिस तरह से हार स्वीकार करने उस पर चिंतन मंथन करने और आगे की प्लानिंग को लेकर के जो बातें कही थीं वह बिहार चुनाव का ज़िम्मेदार व्यक्ति नहीं कह सकता. उसके बावजूद उस नेता पर आज तक कोई एक्शन नहीं हुआ और उनको इनाम पर इनाम मिलता चला गया और वह आज भी पार्टी की ओर से राज्यसभा में पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन उन साहब को पार्टी के एक और दिग्गज नेता पूरे चुनाव में इस लिए लेकर घुमते रहे और बाक़ी नेताओं को अहमियत तक नहीं दी तकि उनको डिप्टी CM बनवा दें, जिस से उनकी सीट खली हो जाएगी और वह उस सीट से राज्यसभा चले जायेंगे.
कहा जाता है की इन्ही साहब को राहुल जी ने बिहार जिताने की कमान सौंपी थी, जो विधानसभा का अपना चुनाव तक नहीं जीत सके और उनकी सोच सिर्फ अपने लिए एक अदद राज्य सभा की कुर्सी हथियाने की थी -ना खुदा ही मिला न विसाले सनम-.
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि जिस तरह से बिहार विधानसभा चुनाव में पैराशूट कैंडिडेट उतारे गए और फिर पैराशूट प्रचारक लाए गए वह अत्यंत दुख था. एक गाने वाले गायक जो लोकसभा चुनाव में अपनी ज़मानत भी ढंग से नहीं बचा पाए उनको जिस तरह की छूट दी गई और जिस तरह से उनकी नाज़ बरदारी की गई उस से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को न सिर्फ दुख हुआ बल्कि उन लोगों को भी काफी दुख हुआ जो पार्टी में जमीन पर काम कर रहे थे और पार्टी में उनकी पूछ तक नहीं हुई.
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने अपने मुस्लिम नेताओं को पूरी तरह से अलग थलग कर दिया था और गुलाम नबी आजाद से लेकर डॉक्टर शकील अहमद जो केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं, और तारिक़ अनवर जो खुद पार्टी में इस समय महासचिव हैं, उनको इस्तेमाल करना तो दूर की बात ऐसे लोगों से ढंग से बात तक नहीं की गयी और उनको उनके हाल पर छोड़ दिया गया. कुछ को चुनाव प्रचार में उतारा तक नहीं गया और कुछ के साथ Fill in the blank वाला मामला किया. ऐसा लगता था कि वह पार्टी के सदस्य ही ना हो.
कांग्रेस जनों से बातचीत करने के बाद पता चला कि दिल्ली से आए कांग्रेस के कुछ नेता जो जमीन से ज्यादा हवा हवाई बातें करने में विश्वास रखते हैं और जो कभी बिहार आए तक नहीं थे, उन्हें बिहार की कमान दे दी गई और पटना के एक फाइव स्टार होटल में जिस तरह से उन्होंने चुनाव की प्लानिंग की और जमीनी नेताओं को जिस तरह से दरकिनार किया वह अत्यंत दुख था, और उनके इसी कल्चर ने ही पार्टी की हार उसी वक़्त लिख दी थी.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक फाइव स्टार होटल में बैठे नेताओं ने जमीनी नेताओं से बात करने की जरूरत ही महसूस नहीं की और वह पैराशूट प्रचारक पर ही भरोसा करके रह गए और उनको लगा कि कोई बहुत बड़ा इंकलाब आ जाएगा. कांग्रेस पार्टी के सूत्रों ने बताया कि जिस तरह से टिकटों में घालमेल हुआ और जनरल सेक्रेटरी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष, चुनाव मैनेजमेंट और समन्वय समिति के अध्यक्ष, और उसके बाद कैंपेन कमेटी के इंचार्ज और चुनाव इंचार्ज पर जिस तरह से उंगलियां उठीं उससे स्पष्ट था कि पार्टी में सब कुछ बेहतर नहीं है उसके बावजूद फाइव स्टार में बैठे इन नेताओं की निगरानी नहीं की गई और उन तमाम दिग्गज नेताओं को इस्तेमाल नहीं किया गया, जो जनता का विश्वास जीत सकते थे या जनता से सीधे संपर्क में थे.
कांग्रे सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक पराजय झेलने के बाद उप-चुनाव (किशनगंज) में हारने के बाद भी पार्टी ने होश के नाखून नहीं लिए और एम आई एम का काट करने के लिए अपने किसी सीनियर नेता का इस्तेमाल नहीं किया जो जनता में यह विश्वास दिला सके कि एम आई एम बी जे पी की "बी विंग" के तौर पर काम कर रही है, बल्कि ऐसे लोगों को इस्तेमाल किया गया जो बीजेपी के लिए ध्रुवीकरण कर रहे थे और जिन से मुसलमान भी बेहद दुखी थे.
कांग्रेस पार्टी के सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वह ऐसे तमाम नेता जो दिल्ली से जाकर के फाइव स्टार होटल में बैठकर के चुनाव लड़ा रहे थे, उन्होंने क्या कुछ गुल खिलाए हैं पार्टी नेतृत्व उसका नोटिस ले और उनकी जवाबदेही तय करे, क्योंकि जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी तब तक इसी तरह से कांग्रेस पार्टी हारती रहेगी. ऐसे में कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि आत्म चिंतन की पॉलिसी पर अमल करे और उन लोगों से सवाल करे जो शीर्ष नेतृत्व को यह बता रहे थे कि पार्टी 30 से 40 सीटों पर विजई होगी, जबकि कांग्रेस पार्टी 70 सीट पाने के बाद भी अपने पुराने 27 के आंकड़े को भी बरकरार नहीं रख सकी और 20 से भी नीच 19 सीटों पर सीमित हो गई.
जानकारों का मानना है कि अगर ओवैसी पर हार का ठीकरा फोड़ा गया तो यह कांग्रेस पार्टी को और पीछे धकेल देगा, क्योंकि दरभंगा जहां ओवैसी नहीं थे वहां गठबंधन क्यों हारा? इसी तरह कटिहार लोकसभा छेत्र में ओवैसी की ज़मानत कैसे ज़ब्त हो गयी और प्राणपुर सीट कांग्रेस इस लिए हारी क्यों कि प्रदेश इंचार्ज और चुनाव प्रभारी ने कभी इस सीट को अहमियत ही नहीं दी और सब मस्त रहे, जब कि यह सीट इशरत से बात करने के बाद आसानी से जीती जा सकती थी, जो आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर लगभग 20 हज़ार वोट ले आईं और कांग्रेस मात्र 2 हज़ार वोट से हार गयी. यही हाल कटिहार की दो और विधान सभा सीटों का रहा और कटिहार एक ऐसा लोकसभा छेत्र है जहां गठबंधन ने छे में से तीन सीट जीती और तीन मामूली फ़र्क़ से हारी, जो पार्टी की गलती से हुआ.
पार्टी को चुनाव के ज़िम्मेदारों की जवाबदेही तय करनी ही होगी. आप यह कह कर नहीं निकल सकते कि आप को कमज़ोर सीटें मिलीं थीं, क्योंकि अगर यही तर्क आप देते रहे हैं तो कभी आप सत्ता में आने वाले नहीं हैं, जो सीट आज आप के लिए कमज़ोर है आप की कोशिश उसको पलट सकती है. एक समय था बीजेपी दो सीटों पर सीमित थी और आज उस के पास तीन सो सीटें हैं, तो यह प्रयास से ही संभव है. एक्सक्यूज़ पेश करने वाले कभी बाज़ी नहीं जीतते.
बाजी संघर्ष करने वाले ही जीतते हैं और वैसे भी बीजेपी ने अभी से 2024 की तैयारी शुरू कर दी है और कांग्रेस क्या कर रही है, यह उसे सोचना ही होगा.
जानकारों का यह भी मानना है कि कांग्रेस के कुछ नेता यह भी सोचते हैं कि यह एक फेज है जो गुज़र जाएगा जबकि यह उनकी भूल है. अभी से बीजेपी ने 2024 की तैयारी शुरू कर दी है. आप को सड़क पर उतर कर लड़ना ही होगा, तभी कुछ होने वाला है. क्यों कि सत्ते के नशे में कांग्रेस ने कभी संगठन पर ध्यान ही नहीं दिया और आज कांग्रेस का संगठन लगभग खत्म हो चुका है.
इस लिए कांग्रेस को सब से पहले सड़क पर उतर कर लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह उनके लिए लड़ना चाहती है तभी लोग कांग्रेस के साथ जुड़ेंगे और कांग्रेस के अच्छे दिन आएंगे. अब आप यह नहीं सोच सकते कि किसी सरकार की गलती की वजह से किसी दूसरी पार्टी को संघर्ष के बिना सत्ता मिल जाएगी, जो संघर्ष करेगा सत्ता उसी को मिलेगी.
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