नई दिल्ली, 05 दिसम्बर, वतन समाचार डेस्क:
लगातार एक वर्ष से तीन तलाक़ को लेकर देश जिस सियासी खेल का सामना कर रहा है उसको संसद सत्र के आखरी दिन 05.01.2018 को चौधरी मुनव्वर सलीम ने बेनकाब कर दिया| मुस्लिम महिलाओं के प्रति अतिप्रेम और न्याय देने की सरकारी इच्छा और दीगर महिलाओं को ज़ालिम दुनिया में सिसकता पड़ा रहने देने कि सरकार की अनदेखी दोनों पर टिपण्णी करते हुए सपा सांसद सलीम ने वोह गाना सार्थक कर दिया कि-
"अपनों पे सितम, ग़ैरों पे करम
ऐ जान-ए-वफ़ा यह ज़ुल्म न कर .... "
भारत के उच्च सदन में धारा 180 (क) के तहत सपा सांसद सलीम ने समझदारी से आर्टिकल 14 और आर्टिकल 25 या सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई बहस न चलाते हुए एक आर.टी.आई. एक्टिविस्ट को सलाम करते हुए देश के 4 राज्यों के 8 मुस्लिम बहुल जिलों केरल के जिला कैमूर,मल्लपुरम,एर्नाकुलम और पलक्कड़,महाराष्ट्र राज्य के जिला नासिक, तेलंगाना के जिला करीमनगर, आंध्रप्रदेश के गुंटूर और सिकंदराबाद की 16 फैमली कोर्ट्स की अदालती अथेंटिक रिपोर्ट के आधार पर जब यह आँकड़ा पेश किया तब मुस्लिम औरतों के तथाकथित राजनैतिक हमदर्द कोई जवाब नहीं दे सके इन आंकड़ों के तहत हिन्दू समाज के 16505 ईसाई समाज के 4827 और मुस्लिम समाज के 1307 तलाक़ सम्बन्धी प्रकरणों को सामने रख कर चौधरी मुनव्वर सलीम ने सरकार से मतालबा किया है कि सरकार सभी धर्मों की औरतों के साथ इन्साफ क्यूँ नहीं करना चाहती?
सपा सांसद सलीम के ऑफिस से
वतन समाचर को भेजे ईमेल में कहा गया है कि धर्म के आधार पर इंसाफ का आईना दिखाकर मुस्लिम औरतों और मर्दों को ट्रिपल तलाक कानून के ज़रिए आहत करना सरकार की मंशा है| चौधरी मुनव्वर सलीम ने सिविल लॉ के तहत तलाक़ सम्बन्धी मामलों पर अदालतों के ज़रिए फैसला दिए जाने की कानूनी परम्परा का हवाला देते हुए कहा कि ट्रिपल तलाक़ के मामले में सरकार का बिल अंतरद्वंधी अपने आपसे से सवाल कर रहा है एक ओर क्रिमिनल केस मानकर तीन साल की सजा का प्रावधान है वहीं दूसरी जानिब भरण-पोषण का मतालबा है यानि कैदी को असहाय बनाने का एक अमानवीय फैसला दिखाई देता है | इसीलिए बिना संशोधन इस बिल को लाने पर सारे विपक्ष ने अपना एतराज़ दर्ज कराया है जो भारतीय इतिहास और संवेदना की मिलीजुली संस्क्रती का बेहतरीन उदहारण है | सलीम ने कहा कि सरकार को हठधर्मि के बजाये तमाम महिलाओं के संदर्भ में संवेदनशील हो कर सोचना चाहिए |
पेश है सलीम के शब्दों में ही उनके द्वारा दिनांक 05 जनवरी 2018 को संसद में उठाई गई मांग -
"आज जब देश में तीन तलाक को लेकर धर्म के आधार पर एक सख्त कानून बनने जा रहा है तब इस सदन को यह बताना लाज़मी हो जाता है कि एक ऐसा मज़हब जिसने महिला के सम्मान के रूप में दुनियाँ में सबसे पहले बाप की जायदाद का बेटी को हकदार बनाया जिस धर्म की मान्यता यह है कि जब अल्लाह ताला खुश होता है तो आसमान से बारिश और घर में बेटी देता है |
लेकिन आंकड़ों के आईने में मैं कुछ जानकारी इस सदन को देते हुए भारत सरकार से कुछ जानकारी चाहता हूँ एक आर.टी.आई. एक्टिविस्ट ने देश के अलग राज्यों के 8 मुस्लिम जिलों की फैमिली कोर्ट्स से तलाक़ सम्बन्धी मामलों की जानकारी जब इकठ्ठा की तो अधिकारिक रूप से केरल के जिला कैमूर,मल्लपुरम,एर्नाकुलम और पलक्कड़,महाराष्ट्र राज्य के जिला नासिक, तेलंगाना के जिला करीमनगर, आंध्रप्रदेश के गुंटूर और सिकंदराबाद की 16 फैमली कोर्ट्स ने जो आंकड़े दिए वोह इस प्रकार हैं मुसलमानों में तलाक सम्बन्धी प्रकरण 1307, हिन्दुओं में 16505 तथा ईसाईयों में 4827 पाए गए हैं|
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विशेष प्रावधान[/caption]
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विशेष उल्लेख[/caption]
मान्यवर मैं पूरे देश की फैमिली कोर्ट्स से इसी तरह की तलाक सम्बन्धी जानकारी चाहता हूँ जिससे सिर्फ मुस्लिम महिलाओं को नहीं अगर सरकार की मंशा इन्साफ देने की है तो सभी धर्म के लोगों को तलाक सम्बन्धी क्रिमिनल क़नून के तहत शामिल कर इन्साफ दिलाया जा सके|"