दरअसल, ख्वाजा की दरगाह पर मीठी खिचड़ी (खिचड़ा भी कहते है) के डेग की परंपरा 450 साल पुरानी है। इसके गवाह उर्स पर लाखों जायरीन बनते हैं।दरगाह में दो डेग हैं। बड़ा डेग 120 मन (4500Kg से ज्यादा) की क्षमता है तो दूसरे डेग में 60 मन खिचड़ी बनती है। दरगाह में गद्दीनशीं सैयद कुतुबुद्दीन सखी का कहना है,
"आज रामदेव के छौंक वाली खिचड़ी की खूब चर्चा हो रही है लेकिन बहुत सारे लोगों को बता नहीं है कि हजारों किलो मीठी खिचड़ी के डेग का सिलसिला अजमेर में अरसे से चला आ रहा है।"वह कहते हैं, "एक डेग 120 मन और दूसरा 60 मन का है। यहां हजारों-लाखों जायरीन खाते है। यह ख्वाजा की दरगाह का तबर्रुक है जिसमें बड़ी बरकत होती है।" उन्होंने कहा की जायरीन खुद इसे बनवाते हैं। सखी ने कहा कि दरगाह के इन डेग की चर्चा भी मीडिया में होनी चाहिए।
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