नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 7 राज्यों और एक UT में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई से आज (शुक्रवार) इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस मामले के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से संपर्क करें। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली। ज्ञात रहे की इस मुद्दे पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन गयूरुल हसन रिज़वी ने कहा था की मामला अदालत में है इस लिए इस मुद्दे पर वह कुछ नहीं कह सकते, वह अदालत के फैसले पर नज़र रखे हुए हैं.
क्या था मामला
अधिवकता और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम में अर्जी दाखिल कर देश के 7 राज्यों और एक UT में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की थी। इन राज्यों में लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं। याचिकाकर्ता ने 1993 में केंद्र सरकार की तरफ से जारी नोटिफिकेशन को भी असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता उपाध्याय ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 23 अक्टूबर 1993 में नोटिफिकेशन जारी कर मुस्लिम समेत अन्य समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया था। उपाध्याय ने कहा कि 2011 के जनगणना के आंकड़ों की मानें तो देश के 8 राज्यों (लक्षद्वीप, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब) में हिंदू अल्पसंख्यक है।
मांग के पीछे का तर्क
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2002 में फैसला दिया था कि अल्पसंख्यक का दर्जा राज्य स्तर पर दिया जाना चाहिए। 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक- लक्षद्वीप में 2.5%, मिजोरम 2.75%, नगालैंड में 8.75%, मेघालय में 11.53%, जम्मू कश्मीर में 28.44%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, मणिपुर में 31.39% और पंजाब में 38.4% हिंदू हैं। इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिलने से उन्हें सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।'