पिछले महीने खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर का आंकड़ा 1.54 फीसदी रहा. यानी यह भारतीय रिजर्व बैंक के दीर्घकालिक लक्ष्य की न्यूनतम सीमा दो फीसदी से भी नीचे आ गया. उधर, शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई की दर 0.9 फीसदी रही.
देश की खुदरा और थोक महंगाई को मापने वाले इन दोनों सूचकांकों के आंकड़े हर महीने जारी होते हैं. लेकिन इन दोनों सूचकांकों की आधारभूत चीजों के बारे में ज्यादा जानकारी न होने से अक्सर बहुत से लोगों को इन्हें समझने में दिक्कत होती है. आइये जानते हैं महंगाई दर और इन्हें मापने वाले दोनों मुख्य सूचकांकों से जुड़ी कुछ बुनियादी चीजों के बारे में.
महंगाई और महंगाई दर
सबसे पहले महंगाई और महंगाई दर के बारे में जानते हैं. महंगाई किसी वस्तु और सेवा की कीमत में समय के साथ होने वाली वृद्धि को कहते हैं. इसे हम किसी महीने या साल के सापेक्ष प्रतिशत में मापते हैं जिसे महंगाई दर कहा जाता है. उदाहरण के लिए यदि कोई चीज साल भर पहले 100 रुपये में मिल रही थी लेकिन अब 105 रुपये में मिल रही है तो इस वस्तु के लिए वार्षिक महंगाई दर पांच फीसदी कही जाएगी.
महंगाई का नुकसान यह है कि इससे मुद्रा का महत्व समय के साथ कम हो जाता है. लेकिन इसकी सीमित मात्रा बहुत जरूरी होती है, नहीं तो लोग कारोबार करने में दिलचस्पी नहीं लेंगे. हालांकि ज्यादा महंगाई अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होती है इसलिए सरकार और केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों के जरिए इसे हद से ज्यादा या कम नहीं होने देते.
महंगाई को मापने वाले दो प्रमुख सूचकांक
सरकार अपनी विभिन्न एजेंसियों और सूचकांकों के जरिए महंगाई मापती है और निश्चित अंतराल पर इनके आंकड़े जारी करती है. आम जन-जीवन में महंगाई जहां खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई) से मापी जाती है, वहीं कारोबारी क्षेत्र की महंगाई को मापने के लिए थोक महंगाई सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का सहारा लिया जाता है. किसी महीने के सीपीआई और डब्ल्यूपीआई के आंकड़ों को उससे अगले महीने की क्रमश: 12 और 14 तारीख को जारी किया जाता है.
सीपीआई का प्रकाशन केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) करता है जो केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सांख्यिकी विभाग के तहत काम करता है. सांख्यिकी विभाग में सीएसओ के अलावा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) भी आता है. देश के लिए कई जरूरी आंकड़े एकत्रित करने में इन दोनों का योगदान अतुलनीय माना जाता है. खुदरा महंगाई के आंकड़ों का विश्लेषण और उसका प्रकाशन भले ही सीएसओ करता है, पर आंकड़ों को इकट्ठा करने का काम एनएसएसओ करता है. वह शहरों में अपनी फील्ड आॅपरेशन डिवीजन और 1,200 चुनिंदा गांवों में डाक विभाग से हर महीने निश्चित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों का संकलन करता है. यही नहीं, उसके अधिकारी बाजार जाकर अलग-अलग चीजों की कीमतों का मिलान भी करते हैं ताकि आंकड़ों में गलती न रहे.
केंद्र सरकार हर महीने औद्योगिक, कृषि और ग्रामीण श्रमिकों के लिए भी खुदरा महंगाई के आंकड़े जारी करती है. लेकिन इन सूचकांकों का प्रकाशन केंद्रीय श्रम ब्यूरो द्वारा किया जाता है. हालांकि इनका उपयोग बेहद सीमित है क्योंकि इनसे महंगाई की पूरी तस्वीर नहीं मिल पाती.
उधर, डब्ल्यूपीआई का प्रकाशन औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) के आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा किया जाता है. यह संस्था केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत आती है. विभाग डब्ल्यूपीआई में आने वाली वस्तुओं के मूल्यों के आंकड़े केंद्र सरकार के मंत्रालयों, राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और प्रमुख विनिर्माण इकाइयों से इकट्ठा करता है. कई बार सभी मदों के मूल्य तय समय पर नहीं उपलब्ध हो पाते. तब उसे इसके लिए एनएसएसओ की मदद लेनी पड़ती है.
सीएसओ हर महीने सीपीआई के आंकड़ों को दो हिस्सों में बांटकर प्रकाशित करता है. पहला सामान्य और दूसरा खाद्य (सीएफपीआई) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक. ये दोनों ही सूचकांक तीन खंडों शहरी, ग्रामीण और संयुक्त नाम के वर्गों में बंटे होते हैं. सीएसओ इसके अलावा राज्यवार सामान्य सीपीआई का आंकड़ा भी प्रकाशित करता है. इन आंकड़ों को कई भागों में तोड़कर पेश करने का उद्देश्य सिर्फ यह होता है कि महंगाई की तस्वीर ज्यादा से ज्यादा साफ हो. दूसरी ओर नए डब्ल्यूपीआई के आंकड़े भी दो भागों सामान्य और खाद्य में बंटे होते हैं. हालांकि इसे शहरी और ग्रामीण या अलग-अलग राज्यों जैसी श्रेणियों में बांटकर प्रकाशित नहीं किया जाता.
जनवरी 2015 से सीपीआई का आधार वर्ष ‘2012 का कैलेंडर वर्ष’ है. वहीं अप्रैल 2017 से डब्ल्यूपीआई का आधार वर्ष 2011-12 का वित्त वर्ष माना गया है. आधार वर्ष का निर्धारण महंगाई का मौजूदा स्तर मापने के लिए किया जाता है. असल में आधार वर्ष में किसी चीज की कीमत से मौजूदा कीमत की तुलना करने से ही महंगाई का पता चला पाता है. सामान्यत: आधार वर्ष में कीमतों को 100 मानकर गणना की जाती है.
महंगाई के सही और सटीक आकलन के लिए सूचकांक में समय-समय पर बदलाव किए जाते हैं. आधार वर्ष को भी बदला जाता है. इसके अलावा इनके मदों में बदलाव किया जाता है. आम उपयोग से बाहर हो गई वस्तुओं और सेवाओं को हटाकर उन चीजों को जोड़ा जाता है जो समय के साथ ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं. इन चीजों के आवंटित भार में भी समय के साथ बदलाव लाए जाते हैं.
दोनों सूचकांकों को बनाने वाले अलग-अलग हिस्से
खुदरा मूल्य सूचकांक में पहले के पांच के बजाय अब छह समूह हैं. पान और तंबाकू पहले खाद्य समूह का ही हिस्सा था, पर 2015 से लागू नए सीपीआई में यह अलग समूह बन गया है. नए सीपीआई में आधार वर्ष के साथ वस्तुओं और सेवाओं का भार भी बदल गया है. अब सीपीआई में खाने-पीने के सामान वाले समूह का भार करीब 46 फीसदी है तो पान और तंबाकू का लगभग दो फीसदी. कपड़े और फुटवियर का हिस्सा बढ़कर 6.5 फीसदी हो गया है. आवास का शेयर अब करीब 10 फीसदी है. ईंधन का हिस्सा लगभग सात तो सेवाओं का 28 फीसदी है. सीपीआई में शामिल उत्पादों का निर्धारण 2011-12 में एनएसस के 68वें दौर के ‘उपभोक्ता क्रय सर्वेक्षण’ के आधार पर किया गया.
वहीं थोक मूल्य सूचकांक में तीन समूह हैं - विनिर्माण, प्राथमिक और ईंधन. इसे तैयार करने के लिए कुल 697 वस्तुओं से जुड़ा आंकड़ा जुटाया जाता है. डब्ल्यूपीआई में सबसे बड़ी भागीदारी विनिर्माण क्षेत्र (64 फीसदी) की है. वहीं प्राथमिक वस्तुओं का भार 23 फीसदी और ईंधन का करीब 13 फीसदी है. विनिर्माण समूह के 564 उत्पादों में रसायन, धातु और खाने-पीने के सामान हैं. प्राथमिक समूह में खाद्य, अखाद्य और खनिज उत्पादों से जुड़ी 117 चीजें हैं जबकि ईंधन वाले समूह में तेल, बिजली और कोयला क्षेत्र के 16 उत्पाद रखे गए हैं.
डब्ल्यूपीआई में हुए हालिया संशोधन के बाद आंकड़ा संकलन केंद्रों में पहले की तुलना में 1.5 गुनी बढ़ोतरी कर दी गई है. अब 8,300 जगहों से आंकड़े जुटाए जा रहे हैं. सौमित्र चौधरी कार्यसमूह की सिफारिश पर हुए ताजा बदलाव के बाद वस्तुओं पर लगने वाले अप्रत्यक्ष कर को हटाकर आंकड़े लिए जाते हैं.
इन सूचकांकों का महत्व
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के जरिए सरकार को महंगाई की मौजूदा हालत का पता चलता है. इससे वह मूल्य स्थिरता के लिए नीतियां और कार्यक्रम बना पाती है. वहीं भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल 2014 से अपनी मौद्रिक नीति का मुख्य निर्धारक सीपीआई को ही बना लिया है. वह इन्हीं आंकड़ों के आधार पर तय करता है कि ब्याज दरों में बदलाव लाया जाए या नहीं. दूसरी ओर हर छह महीने में घोषित होने वाले महंगाई भत्ते का निर्धारण सीपीआई के आंकड़ों से ही होता है.
थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़ों का विश्लेषण कर सरकार अपनी कारोबारी, वित्तीय और अन्य आर्थिक नीतियां तय करती है. वहीं व्यापारी इन आंकड़ों का इस्तेमाल कर अंदाजा लगा पाते हैं कि हाल में मूल्य में कितना अंतर आया. इससे उन्हें अपने व्यापारिक सौदों को अंजाम देने में मदद मिलती है.
महंगाई दर मापने का लैसपीयर फॉर्म्यूला
इन दोनों ही सूचकांकों की गणना जर्मन विद्वान लैसपीयर के सूत्र से की जाती है. इसके लिए सूचकांक में शामिल विभिन्न मदों के मौजूदा और आधार वर्ष की कीमतों की जानकारी अलग-अलग जुटाई जाती है. हर मद के मौजूदा मूल्य में आधार वर्ष के मूल्य से भाग दे दिया जाता है. इससे पता चलता है कि किसी चीज का मौजूदा मूल्य आधार वर्ष की तुलना में कितना गुना हो गया है. अब हासिल हुए इन अनुपातों को हर मद के लिए पहले से तय ‘भार’ से गुणा कर दिया जाता है. इसके बाद आंकड़ों को जोड़ दिया जाता है. इस तरह प्राप्त राशि ही मौजूदा वर्ष का मूल्य सूचकांक होती है. इसी तरह ठीक पिछले महीने या साल का मूल्य सूचकांक निकाल लिया जाता है. इसके बाद पिछले महीने या साल की तुलना में मौजूदा महंगाई में हुआ प्रतिशत बदलाव आसानी से मालूम हो जाता है.
उलझाव पैदा करने वाले कुछ और शब्द
आम प्रयोग में अक्सर हेडलाइन सीपीआई या हेडलाइन डब्ल्यूपीआई का जिक्र होता है. यह इन दोनों की मुख्य महंगाई दर का ही दूसरा नाम है. वहीं कोर सीपीआई का मतलब होता है खाद्य और ईंधन को छोड़कर शेष मदों की खुदरा महंगाई को आंकने वाला सूचकांक. उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) सीपीआई में शामिल केवल खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई दर को मापता है.
दूसरी ओर कोर डब्ल्यूपीआई केवल और केवल ‘अखाद्य विनिर्मित वस्तुओं’ की महंगाई से संबंधित है. यानी डब्ल्यूपीआई के तीन समूहों में से दो (प्राथमिक और ईंधन) का इससे कोई लेना-देना नहीं होता. इतना ही नहीं तीसरे समूह ‘विनिर्माण’ में शामिल खाद्य विनिर्माण से जुड़े उत्पादों को भी इसकी गणना में शामिल नहीं किया जाता.