दिल्ली पुलिस ने फरवरी के आखरी हफ्ते में हुए दिल्ली दंगों के संदर्भ में लोगों को दोषी ठहराते हुए पिछले सप्ताह आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल कर दिया है। अब तक आरोपित या गिरफ्तार किए गए सभी लोग मुस्लिम हैं। दिल्ली पुलिस का कथन है कि यह जिहादी समूह थे, जिन्होंने उस दिन भारत के निष्पक्ष नाम को गलत बताने के उद्देश्य से दंगों की योजना बनाई थी, जिस दिन डोनाल्ड ट्रम्प के दिल्ली में होने की उम्मीद थी। आरोप पत्र में कहा गया है कि यह जामिया मिल्लिया इस्लामिया में साजिश रची गई थी, और शाहीन बाग की मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपनी नागरिकता खोने के डर से विरोध नहीं था, यह इस जिहादी साजिश का हिस्सा था। तो फिर हम कैसे इस बात की व्याख्या कर सकते हैं कि मारे गए 53 लोगों में से अधिकांश मुस्लिम थे? या नष्ट की गई अधिकांश संपत्ति मुसलमानों की ही क्यों थी? या मस्जिदों पर हमला क्यों किया गया, जबकि एक भी मंदिर पर हमला नहीं हुआ?
ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब पुलिस को अदालत में देना होगा। लेकिन, जैसा कि तब जो दिल्ली में था, और जैसा कि अधिकांश पत्रकारों ने हिंदू-मुस्लिम दंगों को कवर किया है, मैं आज अपने संस्करण में उस पर बात करुंगी। यह आप पर निर्भर है कि हम न्याय होता देख रहे हैं या न्याय का बदला हुआ रूप। लेख में, पिछले साल 15 दिसंबर को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के साथ शुरू हुई घटनाओं को एक बड़े संदर्भ में देखने की ज़रुरत है। जब से PM नरेंद्र मोदी ने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया है, तब से उन्होंने जाने या अनजाने में एक एजेंडे का पालन किया है, कि "न्यू इंडिया" में भारतीय मुसलमानों "हीन नागरिक" कमतर शहरी हैं।
मोदी के पहले कार्यकाल में शुरू हुई मुसलमानों की लिंचिंग अब गो मांस और गायों तक ही सीमित नहीं है। उनका दूसरा कार्यकाल शुरू होने के दो हफ्ते बाद, 24 वर्षीय, तबरेज़ अंसारी, जिन पर चोरी का छोटा आरोप था, झारखंड के एक गाँव में एक खंभे से बाँध कर भीड़ ने घंटों तक पीटा, भीड़ हर हमले के साथ उसने 'जय श्री राम' कहने का आदेश दे रही थी। जब पुलिस द्वारा उन को अंततः 'बचा लिया गया', तो उन्होंने (पुलिस) उसे अस्पताल के बजाय चोरी करने के आरोप में हिरासत में ले लिया। चार दिन बाद आंतरिक चोटों से उनकी मृत्यु हो गई। उनके हत्यारों को अपने किये पर गर्व था और उन्हों ने सोशल मीडिया पर उनकी मौत के संदर्भ में धीरे-धीरे पीटे जाने वाले वीडियो पोस्ट किए, लेकिन पुलिस ने हत्या का आरोप नहीं दर्ज किया। अंसारी की लिंचिंग भारत में ज़िन्दगी का सच बयान करती है और वह यह बताती है की भारत में वहशत कहां तक फ़ैल गयी है, लेकिन इस तरह की हरकत सार्वजनिक तौर पर इस तरह फ़ैल चुकी है कि इस में लोगों को कोई हैरत नहीं होता है।
यह तब था जब संसद ने हमारे इतिहास में एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में पहला भेदभावपूर्ण कानून पारित किया था, कि मुसलमानों को महसूस होने लगा कि मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल उनके लिए एक नई वास्तविकता लेकर आया है। अगर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) बनाने की दिशा में CAB पहला कदम है तो नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को उनके खिलाफ एक नए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता सकता है। गृह मंत्री ने इस से पहले CAA और NRC की कोरोनॉल्जी को कई बार समझाया था, लेकिन जब हजारों मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने देश भर के शहरों की सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना शुरू किया तो प्रधानमंत्री ने यह कहने की आवश्यकता महसूस की कि उनकी सरकार का NRC के लिए अभी तक कोई प्लान नहीं। मुसलमानों को इस पर विशवास नहीं हुआ क्योंकि अगले ही दिन एक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर NRP की घोषणा की गई थी जिसे अशुभ माना गया।
मुसलमानों ने राष्ट्रीय ध्वज और संविधान के साथ शहरों और विश्वविद्यालय परिसरों में विरोध जारी रखा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया परिसर में पुलिस के घुसने और पुस्तकालयों और छात्रावासों में छात्रों के साथ मारपीट करने के बाद, शाहीन बाग का विरोध शुरू हुआ। जिन महिलाओं ने लंबी सर्दियों की रातों और ठंड के दिनों में विरोध किया, उन्होंने कहा कि वे अपनी नागरिकता खोने से चिंतित हैं। उन्होंने मुझे बताया कि लाखों ऐसे मुसलमान हैं जिनके पास यह साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं हैं कि वे हमेशा भारतीय नागरिक रहे हैं। CAA से उनको कोई डर नहीं लेकिन संभावित NRC खतरनाक है।
वह गृह मंत्री से बात करना चाहते थे और उन को अपने डर से अवगत कराना चाहते थे। इसी बीच, दिल्ली में चुनाव थे और चुनावी स्पीचों में उनको जिहादी देशद्रोही के रूप में निशाना बनाया गया और चुनावी भाषण में इस पर ज़ोर दिया गया। एक अन्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपनी स्पीच में सार्वजनिक बैठक के दौरान इस बात पर बल दिया कि "देश के गद्दारों को ... भीड़ ने जवाब में कहा ...गोली मारो ... को। यह पूछना सही होगा कि कौन यह तय करेगा कि कौन देशद्रोही है और कौन नहीं, लेकिन मोदी के मंत्रियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि देशद्रोही वे थे जिन्होंने CAA के खिलाफ विरोध किया था। हिंसा भड़कने से ठीक पहले, बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने विरोध प्रदर्शन करते हुए मुस्लिम महिलाओं को चेतावनी दी कि वे अपना विरोध समाप्त करें या ट्रम्प के जाने के बाद गंभीर कार्रवाई का सामना करने के लिए तय्यार रहें।'
इस में कोई दो मत नहीं कि एक बार जब हिंसा शुरू हुई, जिहादी शामिल हो गए। आम आदमी पार्टी के एक पार्षद को अपनी छत पर पत्थर और आग के गोले के लिए आरोपित किया गया। मरने वालों में हिंदू भी थे। लेकिन, असली पीड़ित मुसलमान थे। दिल्ली में माहौल उनके खिलाफ नफरत से भरा गया था। कोरोना के लिए मुस्लिम प्रचारकों (तब्लीगी जमाअत) को दोष देने का प्रयास किया गया। महामारी ने घृणा के अभियान में एक अस्थायी ज़हर डालने का काम किया, बाक़ी का काम हमारे समाचार चैनलों ने किया। यह ऐसी मुहीम है जो नफरत के प्रचारकों को उनके शैतानी कामों के लिए सहारा देगी और उस की हिमायत करेगी।। दिल्ली में जो हुआ वह अन्य भारतीय शहरों में बार-बार होगा। (What happened in Delhi will happen again and again in other Indian cities.)
-डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है. -(इंडियन एक्सप्रेस के शुक्रिये के साथ)
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