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मौजूदा दौर में मुशावरत 'AIMMM' का वजूद बेमाना

पूर्व नौकरशाह लोजपा के प्रधान महासचिव और ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरात के वरिष्ठ सदस्य

मोहम्मद अहमद नई दिल्ली, 24 दिसम्बर वतन समाचार न्यूज़: ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिसे मुशावरत (AIMMM) के वरिष्ठ सदस्य, एक राजनेता और नौकरशाह होने के बावजूद सामाजिक खिदमतगार के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले अब्दुल खालिक ने वतन समाचार से बातचीत में AIMMM की मौजूदा सूरत-ए-हाल पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा है कि AIMMM जिन उद्देश्यों के लिए बनाई गई थी अब वह धीरे-धीरे खत्म हो चुके हैं, इसलिए मौजूदा दौर में AIMMM का वजूद ही बे माना नजर आ रहा है. अब्दुल खालिक ने वतन समाचार से बातचीत में कहा कि AIMMM एक ऐसी जमात थी जो क़ौमी और और मिल्ली मसाइल पर बात करती थी. इन मामलों पर वह देश भर की जमाअतों और संस्थाओं से मशवरा करके एक स्टैंड लेती थी, इसके बाद जनता और देश को यह बताया जाता था कि मिल्लत को यह मसले दर पेश हैं. AIMMM का मकसद आपस में बातचीत और डायलॉग करके एक स्टैंड लेना था. अब्दुल खालिक ने कहा कि जिस वक्त AIMMM बनी थी उस वक्त जो इश्यूज थे और आज जो इश्यूज हैं उन में उस की रेलिवेंस खत्म हो चुकी है, इसलिए AIMMM का मकसद फौत हो गया है. उन्होंने कहा कि आज देश की जो जमाअतें हैं वह खुद इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि वह खुद हर मसले पर अपना स्टैंड लेती हैं और मीडिया व सरकारों से डायरेक्ट बातचीत करती हैं, जबकि पहले ऐसा नहीं था, इसलिए AIMMM को बनाया गया था ताकि बात चीत के बाद एक स्टैंड लिया जा सके. अब्दुल खालिक ने कहा कि AIMMM में अब कोई ऐसी बड़ी पर्सनालिटी नहीं बची है, जो इशू की समझ रखती हो, जिसके बुलाने पर देश के वह लोग जो मिल्ली और क़ौमी इशू पर एक राय रखते हैं आजायें, इस लिए इसकी रेलिवेंस अब नहीं रही है. अब्दुल खालिक ने कहा कि पर्सनल लॉ बोर्ड जमात-ए-इस्लामी जमीयत उलमा समेत दूसरी जमाअतें आज खुद इतनी बड़ी हो चुकी हैं, कि उन के मुखिया अब AIMMM की मीटिंग में नजर नहीं आते. उन्होंने कहा कि मरहूम सैयद शहाबुद्दीन तक यह बात थी कि वह हर मसले पर स्टैंड लेते थे. उनकी एक एक समझ थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा कि तीन तलाक का मामला हो या फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड बाबरी मस्जिद का मामला हो या कोई और इशू कोई ऐसा नहीं है जो इस पर बात कर सके. AIMMM ने इन इशू पर बात करने के लिए कोई ऐसा ग्रुप या कमेटी नहीं बनाई जो इश्यूज की समझ रखती हो. मिडिल ईस्ट सीरियल फिलिस्तीन क़तर और दूसरे आलमी इश्यूज पर अब कोई स्टैंड नहीं लिया जाता है और न ही ऐसी लीडरशिप है जो इस की सलाहियत रखती हो इसलिए मौजूदा दौर में AIMMM की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि जब आपस में मिम्बरान ही लड़ रहे हैं तो और मजीद बेहतरी की बात कैसे की जा सकती है. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर मुशावरात सियासत का ही अड्डा है तो हम लोग फुलटाइम सियासत में हैं, हमें AIMMM की क्या जरुरत है.

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