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गुरु एवं शिष्य का संबंध धर्म व दर्शनशास्त्र के सन्दर्भ में

भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और भारतीय दर्शनशास्त्र के प्रखर विद्वान डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 ई० को तमिलनाडु के तिरुतनी गांव में हुआ था. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन पर प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को हम भारतवासी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है. असल में हम शिक्षक दिवस क्यों मनाते है? गुरु का दिन क्यों कहा गया है ? गुरु एवं शिष्य के बीच क्या संबंध है ? उन संबंध के रहस्य को जानना जरुरी है. गुरु शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है. गुरु शब्द दो व्यंजन (अक्षर) गु और रु से मिलकर बना है. गु का अर्थ अज्ञान और रु का अर्थ मिटाना है अर्थात गुरु 'अज्ञानता को मिटाता' है. गुरु शब्द का विकल्प अरबी भाषा को छोड़कर किसी भाषा में नहीं है. अरबी में इसके लिए 'मुअल्लिम' शब्द का प्रयोग किया जाता है. अंग्रेजी में 'टीचर' गुरु शब्द का विकल्प नहीं है. टीचर वह है जो क्लास में आएं और पढ़ाकर चले गए. टीचर का मिलन विद्यार्थी ( शिष्य ) से आत्मा के स्तर पर नहीं होता है. शिष्य और गुरु आत्मा के स्तर पर मिलते है.

By: Guest Column
  • गुरु एवं शिष्य का संबंध धर्म व दर्शनशास्त्र के सन्दर्भ में

  • अफ्फान नोमानी 

 

भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और भारतीय दर्शनशास्त्र के प्रखर विद्वान डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 ई० को तमिलनाडु के तिरुतनी गांव में हुआ था. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन पर प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को हम भारतवासी शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है. असल में हम शिक्षक दिवस क्यों मनाते है?  गुरु का दिन क्यों कहा गया है ?  गुरु एवं शिष्य के बीच क्या संबंध है ? उन संबंध के रहस्य को जानना जरुरी है. गुरु शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है. गुरु शब्द दो व्यंजन (अक्षर) गु और रु से मिलकर बना है. गु का अर्थ अज्ञान और रु का अर्थ मिटाना है अर्थात गुरु 'अज्ञानता को मिटाता' है. गुरु शब्द का विकल्प अरबी भाषा को छोड़कर किसी भाषा में नहीं है. अरबी में इसके लिए 'मुअल्लिम' शब्द का प्रयोग किया जाता है. अंग्रेजी में 'टीचर' गुरु शब्द का विकल्प नहीं है. टीचर वह है जो क्लास में आएं और पढ़ाकर चले गए. टीचर का मिलन विद्यार्थी ( शिष्य ) से आत्मा के स्तर पर नहीं होता है. शिष्य और गुरु आत्मा के स्तर पर मिलते है. 

गुरु उसको कहते है जो शिष्य की भलाई चाहते हुए शिक्षा प्रदान करते है. भलाई चाहने का संबंध हृदय ओर आत्मा से होता है. एक प्रकार से गुरु, प्रमात्मा का प्रतिनिधि होता है. जो तेल ओर बाती का काम करता है. ओर वो ऐसा तेल ओर बाती है जो दिन ओर रात्री का अंतर किए बिना दीपक को प्रकाशमय करता है. जबकि दुसरी ओर शिष्य और गुरु आशा की किरण और दीपक के समान होता है. इस तरह दोनों समाज के लिए आशा और प्रकाश है. इस्लामी दृष्टिकोण से एक हदीश में आया है की अंतिम ईश्वरीय दुत अर्थात अंतिम पैगम्बर मुहम्मद साहब ने फ़रमाया है की दुनिया लानत (अभिशाप ) और उसकी प्रेतक वस्तु भी अभिशाप है. लेकिन मुअल्लिम ( गुरु ) और शिष्य और उन दोनों से प्रेम करने वाले इस संसार के लिए करुणा और लाभदायक है. हजरत मुहम्मद साहब ने स्वंय को मुअल्लिम ( गुरु ) ही कहा है. 

अरबी में पैगंबर मुहम्मद साहब का कथन इस प्रकार है 'इन्नामा बोईस्तो मुअल्लेमन ' अर्थात मुझको खुदा ने मोअल्लिम ( गुरु ) बना कर ही भेजा है. जबकि शिष्य के लिए कहा गया है कि जब कोई छात्र ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होता है तो उसके लिए हर वस्तु प्रार्थना ( दुआ ) करती है. यहाँ तक कि आसमान व जमीन के बीच में उड़ने वाले परिन्दे और जल में रहने वाली मछलियां भी. सनातन धर्म में भी गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस में गुरु कि वंदना करते हुए लिखते है कि "मैं उस गुरु महाराज के चरण कमलों को प्रणाम कराता हूँ जो शिष्यों के अंदर पुरे संसार के मख़लूक़ात ( मानव से लेकर चरिंदो परिंदो तक ) से प्रेम उत्पन्न करने कि भाव एवं संस्कारिक गुण का सृजन कराता है". इस तरह संस्कृत के एक श्लोक में गुरु कि वंदना करते हुए कहा गया है कि

 '' आज्ञानद्यस्य लोकस्य ज्ञान यज्न शालाकाया,

 चक्षुरुन्मिलित येन तस्मे श्री गुरुवे नमः ".

 अर्थ - " उस सज्जन गुरु को नमस्कार जो अपने शिष्य को अंधकार मयी रूपी कोठरी अर्थात अज्ञानता से निकालकर प्रकाश रूपी ज्ञान का सृजन करें वही सच्चा गुरु है." भारतीय संस्कृति और परंपरा में भी गुरु शिष्य का अति महत्व है. इस परंपरा को बचाने के लिए हर प्रकार का प्रयास करना चाहिए. आज देखा जा रहा है की ये परंपरा दिन प्रतिदिन लुप्त होती जा रही है. आज हम 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है. लेकिन यह लाभदायक और स्वच्छ क्रांति उसी वक़्त बरपा कर पाएगा जब हम उसे जीवन का अभिन्न अंग बनाएंगे. कोई भी दिन जो खाना-पूर्ति के लिए कर्मकांड व रस्म-रिवाज के रूप में मनाएंगे तो उसका लाभदायक और प्रभावी परिणाम सामने नहीं आ सकता है. कर्मकांड व रस्म-रिवाज के बजाय हम सही तरीके से इस परंपरा को व्यवहार में लाएँगे तभी उसका समाज व देश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. आज हमें समाज में जो बिखराव और आपसी दुरी नज़र आती है. यदि हम राधाकृष्णन के मार्ग दर्शन में और उनकी दृष्टि से देखें तो तो दूरियाँ निकटता में परिवर्तित होती नज़र आती है.  इसका प्रमाण व्यवहारिक रूप से उनकी पुस्तक भारतीय दर्शन,  गीता का हिंदी व्यख्या और अनुवाद, उपनिषद और हमारी विरासत जैसी पुस्तकों से मिलता है. हमें आगे बढ़ने के लिए कुछ पीछे चलकर महात्मा गाँधी, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पंडित सुंदरलाल और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से भी मिलने की जरुरत है. अतीत से जुड़े बिना उज्जवल भविष्य की बात बेअर्थ है. हम और हमारा समाज उसी वक़्त सही दिशा में जा सकते है जब वर्तमान में खड़े होकर अतीत और भविष्य पर एक समान दृष्टि रखें. 

आज का शिक्षक दिवस हमारे लिए ये मार्गदर्शन करता है की हमारी दशा उस वक़्त तक ठीक नहीं होगी जब तक की हम शिक्षा प्राप्त करके अपनी दिशा सही नहीं कर लेते है. शिक्षा के बिना समाज गूँगा, बहरा होकर अंधयारी में भटकता रहेगा. इसका ईलाज केवल ये है कि हम शिक्षा, शिक्षक और विद्यार्थी के महत्त्व को समझें. 

 

लेखक अफ्फान नोमानी लेक्चरर व स्तंभकार है.

-डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है. लेखक अफ्फान नोमानी, रिसर्च स्कॉलर स्तंभकार व लेक्चरर है .

 

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