सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के मुखिया मौलाना सैयद अरशद मदनी (जो इन दिनों विदेशी यात्रा पर हैं) ने अपनी प्रतिकिर्या देते हुए कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों महत्वपूर्ण फैसलों का स्वागत करते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बधाई देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को सामने रखते हुए कानून का निष्पक्ष और सटीक विवरण दिया है।उन्होंने कहा कि असम में लॉ एंड आर्डर की बुरी सूरते हाल को देखते हुए जो डर था वह अब ख़त्म हो गया है. मौलाना मदनी ने कहा कि अदालत के इस निर्णय का लाभ समाज में रहने वाले हर व्यक्ति के मिलेगा।
मौलाना मदनी ने कहा कि उन्हें अपने जीवन में इतनी खुशी कभी नहीं हुई थी, जितनी सर्वोच्च न्यायालय के फैसला से मिली है। उन्हों ने कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द और उसके सेवक "ख़ुद्दाम" समाज की 27 लाख बेसहारा महिलाओं के लिये सहारा बन गए हैं, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बताता है कि आग पर पानी डालने वाले लोग आज भी मौजूद हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला वास्तव में न्याय की जीत है. मौलाना मदनी ने कहा कि इस फैसले से आम लोगों का न्यायपालिका में विश्वास और गहरा हुआ है.उन्हों ने इसके लिये जमीयत उलेमा-ए- हिन्द के वकीलों को भी बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने इस मामले की मुश्किल और कठिन प्र्स्तिथियों ने कामयाब पैरवी की. मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अदालत के फैसले से सांप्रदायिक शक्तियों की साजिश नाकाम हो गयी है. ज्ञात रहे कि न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और जस्टिस रोहिंटन नरीमन की दो सदस्यीय पीठ ने आज असम से संबंधित (सुरक्षित) दो महत्वपूर्ण मुकदमों का फैसला सुनाया. सर्वोच्च न्यायालय ने आज असम हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिस में अदालत ने शादीशुदा महिलाओं की नागरिकता के लिए पंचायत प्रमाणपत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने दूसरे सबसे महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि एनआरसी का उपयोग केवल घरेलू और विदेशी लोगों को चिन्हित करने के लिए है. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि एनआरसी घरेलु और विदेशी पहचानने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ज्ञात रहे कि जमीयत उलामा हिंद भी इन दोनों मामलों में हस्तक्षेप का हिस्सा थी। ज्ञात रहे कि पहला मुकदमा पंचायत सर्टिफिकेट और दूसरा Original in Habitant से संबंधित था। सर्वोच्च न्यायालय ने पंचायत प्रमाणपत्र को नागरिकता प्रमाण पत्र ना मानने वाले असम हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पंचायत सर्टिफिकेट में जो चीजें हैं अगर उस पर शक है तो उसे जांच लिया जाये, लेकिन यह वैलिड है. गौरतलब है कि असम हाईकोर्ट का यह कहना था कि ग्राम पंचायत का सर्टिफिकेट एनआरसी के लिए स्वीकार्य नहीं है। फज़ल अय्यूबी एडवोकेट के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द,आम्सू और महिला संगठनों ने अपील दायर की थी। दाखिल अपील में कहा गया था, कि पंचायत सर्टिफिकेट के कानूनी पहलूवों पर गौर करने के बाद ही असम सरकार ने इसे स्वीकारा था और केंद्र सरकार की सहमति भी इसे प्राप्त थी. इसे रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने लागू किया था। इस सर्टिफिकेट को हाईकोर्ट को नष्ट नहीं करना चाहिए था, क्यों कि वह लागू हो चुका था और 47 लाख महिलाओं ने सरकार पर भरोसा कर के इस पंचायत प्रमाणपत्र को प्राप्त किया था. सुप्रीम कोर्ट में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से बहस में वरिष्ठ वकीलों में कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, संजय हेगड़े, विवेक कुमार शामिल हुए थे. पीठ ने दुसरे महत्वपूर्ण निर्णय (दो दिन पहले ही सुरक्षित किया था) में कहा कि NRC घरेलू और विदेशी की पहचान के लिए बनाया गया है. इस का मूल निवासी से कोई संबंध नहीं है. इस से यह बहस ख़तम हो गयी है कि मूल निवासी और आम नागरिक बराबर नहीं हैं, बल्कि दोनों एक जैसे हैं। फैसले ने सारे डर खत्म कर दिए हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द असम के मुखिया मुश्ताक अन्फर ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, कि यह असम के लोगों और न्याय की जीत है। Contact number +91-9971837315
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