अम्मान: जिंदगी में मुश्किल चुनौतियों का सामना कर कामयाबी हासिल करने वाले बहुत लोग हैं, लेकिन 17 वर्षीय सीरियाई लड़के मोहम्मद अल जून्द की कामयाबी औरों से काफी जुदा है।
शरणार्थी के तौर पर कभी दाखिले के लिए स्कूल दर स्कूल भटकने वाले जुन्द ने लेबनान के शरणार्थी शिविर में ही स्कूल की तामीर कर डाली। अब इस स्कूल में करीब 300 बच्चे तालीम ले रहे हैं।
हाल ही में ‘लॉरेट्स एंड लीडर्स फ़ॉर चिल्ड्रन’ में बतौर ‘यूथ लीडर’ शामिल हुए जून्द ने इस मंच से अतीत के चुनौतीपूर्ण अनुभवों को भी साझा किया।
इंटरनेशनल चिल्ड्रेन्स पीस प्राइज विजेता और सीरिया से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद अल-जून्द ने कहा, ” 12 साल की उम्र में मुझे परिवार के साथ लेबनान भागना पड़ा। मैं और मेरा परिवार बहुत लंबे समय तक इस बात की जद्दोजहद करते रहे कि मुझे किसी स्कूल में दाखिला मिल जाये।”
उन्होंने कहा, ”मैं हर हाल में पढ़ना चाहता था। इसलिए खुद स्कूल की तामीर कर दी। मैं यह सुनिश्चित करना चाहता था कि कोई भी सीरियाई बच्चा शिक्षा से उपेक्षित नहीं रहे।”
सीरियाई शरणार्थियों के शिविर में मोहम्मद द्वारा बनाये गए स्कूल आज करीब 300 बच्चे तालीम हासिल कर रहे हैं और वह इस स्कूल का विस्तार करना चाहते हैं।
इस मंच से भारत के शुभम राठौर ने भी अपनी संघर्ष भरी कहानी बयां की। कभी बाल मजदूर रहे शुभम अब इंजीनियर हैं और एक बड़ी निजी कम्पनी में नौकरी करते हैं।
शुभम (21) ने कहा, ”मैंने 13 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था क्योंकि मेरा परिवार गरीब था। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की मदद से मैं बाल मजदूरी के दलदल से बाहर आया।”
उन्होंने कहा, ”आज मैं इंजीनियर हूं, लेकिन आज भी उन करोड़ो बच्चों का दर्द महसूस कर रहा हूं जो इस दलदल में फंसे हुए हैं। हमारी सबसे यही अपील है कि सभी लोग बचपन को बचाने और संवारने में योगदान दें।”
पेरू की कियाबेत सलाजर (25) की कहानी भी संघर्षों से भरी है और वह अपने देश मे महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बारे आवाज बुलंद कर रही हैं और बच्चों से जुड़े ‘100 मिलियन’ अभियान का भी हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा, ”मेरा माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे। बड़ी मुश्किलों का सामना करने के बाद मैंने स्नातक किया और सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनी। मेरे देश में महिलाओं पर बहुत जुल्म हो रहा है। मैं इसके खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ना चाहती हूं।”
‘लॉरेट्स एंड लीडर्स’ शिखर बैठक में भारत, जॉर्डन, पेरू, अमेरिका और दुनिया के कई ‘यूथ लीडर्स’ शामिल हुए।
इनपुट- भाषा
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