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दुआओं के लिए शुक्रिया, अब मैं पहले से बेहतर हूँ

By: Administrators

दुआओं के लिए शुक्रिया, अब मैं पहले से बेहतर हूँ जिस वक्त मैं यह तहरीर आप तक पहुँचाने की कोशिश कर रहा हूं उस वक़्त मै ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के न्यू प्राइवेट वार्ड के कमरा नंबर 3017 में दाखिले इलाज हूँ. सबसे पहले मै उन तमाम हिंदुस्तान और हिंदुस्तान से बाहर रह रहे लोगों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मेरी सेहत के लिए अल्लाह और ईश्वर से दुआ की, और उनकी दुआओं ही का नतीजा है कि आज मैं पहले से काफी बेहतर महसूस कर रहा हूं. यकीनन हिंदुस्तान और हिंदुस्तान से बाहर रह रहे वह तमाम लोग जो मेरे खैरखाह हैं वह यह जानना चाहते होंगे कि मुझे अचानक क्या हुआ कि इमरजेंसी में मुझे मेरे गृहराज्य बिहार से एयर एंबुलेंस के जरिये दिल्ली लाया गया फिर मुझे ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में इलाज के लिए भर्ती कराया गया. दरअसल ब्लीडिंग की वजह से अचानक मेरी तबीयत काफी खराब हो गयी. उसके बाद मुझे मेरे गृहराज्य बिहार के पुरनिया रेलवे अस्पताल में इलाज के लिए एडमिट कराया गया, वहां तबीयत बेहतर ना होने की वजह से मुझे सीधे एयर एंबुलेंस के जरिए दिल्ली लाया गया. अब मैं पहले से काफी बेहतर हूं. कुछ घंटों पहले इंडोस्कोपी किए जाने के बाद मुझे आईसीयू (इंतिहाई निगह दाश्त यूनिट) में दाखिल करा दिया गया है. अगले 24 से 48 घंटे मेरा इलाज यहीं पर होने की संभावना है. उसके बाद मुझे फिर न्यूज़ प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा. बरहाल सेहत और बीमारी जिंदगी का एक लाजमी हिस्सा है, लेकिन बीमार होने के बाद आदमी को सेहत का अंदाजा हो ही जाता है. इसीलिए कहते हैं कि दुनिया में सेहत से बढ़कर कोई भी चीज़ नहीं है. अगर इंसान बीमार है तो उसकी शोहरत उसकी दौल उसके किसी काम नहीं आती है, बल्कि सेहत मंद आदमी अगर कमजोर भी है तो वह जिंदगी गुजार सकता है. मैं दुआ करता हूं कि पूरा हिंदुस्तान सेहतमंद रहे, पूरी दुनिया के लोग सेहत मंद रहें. समाज की पंक्ति में खड़ा आखरी व्यक्ति कभी बीमार ना हो, क्योंकि एक आदमी को बीमारी के बाद किन-किन दिक्कतों का अंदाजा करना पड़ता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. हम में से हर इंसान को इस का अंदाजा होगा, ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है. बहरहाल आज मैं अपने इस लेख में सियासत पर बात ना करके समाज के उन मुद्दों पर बात करने की कोशिश करुंगा जिसे हम और आप जानबूझकर या अनजाने में नजरअंदाज कर रहे हैं. हमारा देश 125 करोड़ लोगों का देश है. यहां हर आदमी अमीर नहीं है या हर आदमी के पास पैसा नहीं है. हम नार्थ इंडिया में रहते हैं हमारे भाई साउथ इंडिया में भी रहते हैं. नार्थ इंडिया और साउथ इंडिया के लोगों में कई बार बड़े फर्क देखने को मिलते हैं. अख्बारात और सोशल मीडिया पर यह पढ़ने को मिलता है कि वहां के लोग खिदमत-ए-खल्क के जज्बे से लोगों के लिए कोई काम करते हैं, जबकि इसके विपरीत नॉर्थ के लोगों में ऐसा जज्बा नहीं है. ना मैं इस की पुष्टि करता हूँ और ना ही इस को नकारता हूँ:,

लेकिन हां इतना जरूर कहूंगा कि हम में से हर इंसान की जिम्मेदारी है कि वह अपने आसपास को देखे, सड़क पर पार्किंग कर के लोगों को परेशान ना करे, अपनी दूकान के सामने वाले हिस्से पर दूसरी दूकान लगा कर सड़क को तंग ना करे. सभी धर्म सडक को कब्जों से मुक्ति की बात करते हैं, मगर उन के मानने वाले ... हमारी यह ज़िम्मेदारी है कि हम में से जो लोग परेशान हैं उनकी मदद करें क्योंकि अगर हम समाज को आगे ले जाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें समाज के उन लोगों को आगे लाना होगा जो समाज में कमजोर, दबे कुचले बीमार अनपढ़ और जाहिल हैं.

आज हमारा भविष्य रेल की पटरियों के बीच कचरा चुन रहा है. हमें यह कहते और लिखते हुए शर्म आ रही है लेकिन सच्चाई यही है. आज हमारे बच्चे सड़क के चौराहे और फुटपाथ पर भीख मांगते हुए नजर आ रहे हैं. यह अफसोस की बात है और गौर करने का मुक़ाम है. 2014 के बाद जिस तरह से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट में कटौती की गई है वह इंतिहाई निंदनीय और अफ़सोसनाक है. आज हमारे शिक्षा का स्वास्थ का बजट घटा दिया गया है. हमारे बच्चे स्कूलों के बजाय चाय खानों और इधर-उधर ओबशों की महफ़िल में नज़र आते हैं. ऐसा नहीं है कि समाज में सब लोग गलत हैं, लेकिन जो लोग अच्छे हैं उन की ज़िम्मेदारी है कि वह इस सिम्त में हमें संजीदगी से गौर करें, क्योंकि अगर हमारा नौजवान और हमारा मुस्तक़बिल इसी तरह से तबाह और बर्बाद होता रहा तो हमारा आने वाला वक्त इन्तेहाई दर्दनाक होगा. हमारे लिए जरूरी है कि हम मोहल्ला वाइज़ ऐसी कमेटियां बनाएं जो इमानदारी के साथ गरीब बच्चों की तालीम के लिए न सिर्फ काम करें बल्कि बच्चों की अख्लाकी तरबियत पर भी ध्यान दें, क्योंकि अगर हमने अपने बच्चों की अख्लाकी तरबीयत ना की तो बड़े होने के बाद यही बच्चे जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमें आश्रम भेज देंगे, जबकि सभी धर्मों का अध्ययन करने के बाद जो चीज सामने आती है वह यह कि सभी धर्म अपने मानने वालों को अपने माता-पिताओं को आश्रम भेजने के बजाय उनकी सेवा करने के बदले में ही स्वर्ग की ज़मानत देते हैं. इसी तरह अगर हम मोहल्ला वॉइस कुछ पैसे जमा करके गरीब बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम करें,

सड़कों से नाजायज़ कब्जों को ख़तम करने के लिए मुहीम चलायें और गरीबों के स्वास्थ्य का इंतेजाम करें तो शायद हम बहुत कुछ कर सकते हैं, क्योंकि पिछले चंद सालों में सरकारों का जो रवैया है वह निंदनीय है.

इसलिए सरकारों पर निर्भर ना रह कर हमें खुद इसके लिए आगे आना होगा और सरकारों से अपने हुकूक मांगने के लिए संविधानिक विरोध प्रदर्शन करते रहना होगा. बहुत बहुत शुक्रिया email:- tariqanwarindia@gmail.com (तारिक़ अनवर वरिष्ठ पत्रकार, सांसद और भारत सरकार के पूर्व मंत्री हैं, यह लेखक का व्यक्तिगत विचार है, लेखक के विचारों से ‘वतन समाचार’ की सहमती जरूरी नहीं है।)

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