वतन समाचार डेस्क
आखिर क्यों हो रहा है योगी सरकार के UPCOCA का विरोध?
योगी सरकार के प्रस्तावित UPCOCA के तहत अंडरवर्ल्ड, जबरन वसूली, जमीनों पर कब्जा, वेश्यावृत्ति, अपहरण, फिरौती, धमकी और तस्करी जैसे अपराधों को शामिल किया गया है. हालाँकि इस एक्ट को मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है है.
मौजूदा कानून को लेकर इस तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं. आतंकवाद के नाम पर बेकसूर मुस्लिमों की लड़ाई लड़ने वाले रिहाई मंच ने योगी सरकार के प्रस्तावित कानून को सांप्रदायिक राजनीतिक का पर्याय बताते हुए कहा कि इसका इस्तेमाल मुस्लिम के खिलाफ होगा.
ज्ञात रहे कि योगी सरकार ने संगठित अपराध पर लगाम लगाने के लिए सूबे में यूपीकोका की शकल में सख्त कानून लाने का फैसला किया है. महाराष्ट्र के बाद UP दूसरा ऐसा प्रदेश है जो इतना सख्त कानून लागू करने जा रहा है.
इस से पहले बसपा सुप्रीमो मायवाती ऐसा कानून लाने की कोशिश कर चुकी हैं, लेकिन उन्हें विरोध के बाद बैकफुट पर जाना पड़ा था. योगी सरकार के कानून का भी विरोध किया रहा है. मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी समेत दूसरे दलों ने योगी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. जबकि मुस्लिम संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि एक खास समुदाय को टारगेट करने के लिए यह कड़ा कानून लाया जा रहा है.
आज तक डॉट इन की रिपोर्ट के अनुसार बसपा सरकार ने जब यह क़ानून वापस लिया तब यूपी के पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह थे. विक्रम सिंह का कहना है कि उस वक्त इस कानून का दुरुपयोग देखा गया, जिसके बाद उसे वापस लेने का निर्णय लिया गया. योगी सरकार द्वारा लाए जा रहे यूपीकोका पर उन्हों ने कहा कि अपराध खत्म करने के लिए पहले से ही कानून मौजूद है. ऐसे में यूपीकोका लाने की आवश्यता नहीं थी, क्योंकि इसका गलत इस्तेमाल होने की आशंका है. आतंक और राष्ट्रविरोधी अपराधों के लिए ऐसे कानून लाए जा सकते हैं, बाकी जमीन विवाद या रंगदारी जैसे अपराध पर मौजूदा कानून से ही लगाम लगाई जा सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा कानून के तहत सीनियर पुलिस ऑफिसर की संस्तुति के बाद ही केस दर्ज किए जा सकेंगे, जो इसे सही मायनों में प्रभावी रूप से लागू कराने में अहम साबित होगा.
राज्य स्तर पर ऐसे मामलों की मॉनिटरिंग खुद गृह सचिव करेंगे और मंडल के स्तर पर आईजी रैंक के अधिकारी की संस्तुति के बाद ही मामला दर्ज किया जाएगा. जिला स्तर पर अगर कोई संगठित अपराध करने वाला अपराधी है तो उसकी रिपोर्ट कमिश्नर, जिलाधिकारी को देंगे जिसके बाद फ़ैसला किया जाएगा कि आरोपी के ख़िलाफ़ यूपीकोका लगे या नहीं.
क्या यह क़ानून मुस्लिमों के खिलाफ है?
यूपीकोका (उत्तरप्रदेश कंट्रोल ऑफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) इस के तहत गिरफ़्तार व्यक्ति को 6 महीने से पहले ज़मानत नहीं मिल सकेगी. आरोपी की पुलिस रिमांड 30 दिन के लिए ली जा सकती है, जबकि बाकी क़ानूनों के तहत 15 दिन की रिमांड ही मिलती है. आज तक डाट इन की रिपोर्ट के अनुसार अपराधी को पांच साल की सजा और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान होगा.
यूपी में कानून का राज कायम करने के नारे के साथ सत्ता में आई योगी सरकार यूपीकोका को अपराध के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बता रही है. लेकिन विरोधी इसे मुस्लिमों को टारगेट करने वाला बता रहे हैं.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस कानून का विरोध किया है. उन्होंने कहा है कि यूपीकोका का इस्तेमाल दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के दमन के लिए होगा. इसलिए व्यापक जनहित में इसे वापस लिया जाए.
आज तक डाट इन के अनुसार प्रस्तावित मसौदे में गुंडागर्दी और संगठित अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई पर जोर दिया गया है. साथ ही गैरकानूनी तरीके से कमाई गई संपत्ति भी इस कानून के दायरे में शामिल होगी.
इसके अलावा यूपीकोका से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएंगी. जिससे ये सुनिश्चित किया जाएगा कि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा दिलाई जा सके.