पटना में सीबीआई के छापे के बाद पहली बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का आमना-सामना हुआ. बुधवार को नीतीश ने कैबिनेट की बैठक बुलाई थी. इसमें लालू के दोनों बेटे भी पहुंचे. उपमुख्यमंत्री होने के नाते तेजस्वी यादव नीतीश के बगल में ही बैठे दिखे, लेकिन जेडीयू के एक मंत्री ने बताया कि कैबिनेट बैठक के दौरान नीतीश और तेजस्वी के बीच एक बार भी बात नहीं हुई. मीटिंग खत्म होने के बाद नीतीश तेजी से निकल गए और तेजस्वी को मीडिया ने घेर लिया. तेजस्वी ने वही कहा जो वे कहते आए हैं कि ये मामला तब का है जब वे 14-15 साल के नाबालिग बच्चे थे. उनकी मूंछ भी नहीं आई थी. उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है.
लेकिन सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी की इस सफाई को नामंजूर कर दिया है. नीतीश ने जब लालू यादव के पास संदेश भिजवाया था कि उन्हें अपने परिवार पर लग रहे आरोपों पर सफाई देनी चाहिए तो इसका मतलब यह नहीं था कि लालू या तेजस्वी आरोपों को साजिश बताकर बच जाएंगे और नीतीश सरकार चलाते रहेंगे. नीतीश लालू परिवार से बयान नहीं तथ्यों के आधार पर सफाई चाहते हैं.
उधर लालू यादव और उनके बेटे अब तक किसी बड़े आरोपों से इंकार नहीं कर पाए हैं. वे अब तक सिर्फ षडयंत्र बताकर ही अपना बचाव करते रहे हैं. सुनी-सुनाई ही है कि रविवार तक का वक्त लालू यादव की पार्टी के पास है. वैसे लालू यह साफ कर चुके हैं कि किसी भी सूरत में तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देंगे. हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि उनकी तरफ से महागठबंधन पर कोई आंच नहीं आएगी लेकिन उनके बयान से साफ है कि वे नीतीश की मांग भी पूरी नहीं कर रहे हैं.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि उनका अगला कदम क्या हो सकता है? सुनी-सुनाई है कि अगर तेजस्वी को मंत्रिमंडल से हटाने जैसी नौबत आई तो लालू की पार्टी के 12 और मंत्री भी नीतीश मंत्रिमंडल से सामूहिक इस्तीफा दे देंगे. ऐसे में लालू की पार्टी महागठबंधन में रहकर नीतीश सरकार को बाहर से समर्थन करती रहेगी लेकिन उसके 80 में से एक भी विधायक बिहार सरकार में शामिल नहीं होगा. अगर ऐसा हुआ तो नीतीश और भाजपा के साथ आने का रास्ता रुक जाएगा.
कांग्रेस भी फिलहाल इसी प्लान पर काम कर रही है. राहुल गांधी का मन अभी भी नीतीश कुमार के साथ ही है. उपराष्ट्रपति चुनाव में नीतीश की पार्टी ने विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन किया है. इसके बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ने नीतीश कुमार से फोन पर बात की और उन्हें कांग्रेस के समर्थन का भरोसा दिलाया. कांग्रेस की इसी नरमी की वजह से लालू भी इससे ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं.
जदयू खेमे में खबर फैली है कि नीतीश भी एक फैसला करने वाले हैं. एक ऐसा फैसला जो सभी को चौंकाकर लालू यादव की पार्टी को चारों खाने चित्त कर सकता है. नीतीश की पार्टी के कुछ विधायकों को कहा गया है कि वे अपने क्षेत्र की तरफ रुख करें. जनता का मूड भांपकर जल्दी पटना में रिपोर्ट दें. नीतीश को करीब से जानने वाले एक पत्रकार बताते हैं कि अगर नीतीश कुमार अचानक विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव कराने की सिफारिश कर दें तो ये बहुत ज्यादा हैरानी की बात नहीं होगी. इससे नीतीश कुमार एक झटके में लालू की बैसाखी से मुक्त हो सकते हैं और उनकी साख भी बढ़ जाएगी.
लालू अपने बेटे की कुर्सी बचाने का हिसाब लगा रहे हैं और नीतीश अपनी कुर्सी छोड़ने का. शायद यही फर्क है दोनों में जो उन्हें एक-दूसरे के साथ होते हुए भी बहुत दूर कर देता है.