उदित राज से लेकर कई दलित नेताओं ने शुरू क्या EWS आरक्षण पर सुप्रीम फैसले का विरोध
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद उदित राज ने EWS-आरक्षण के फैसले पर ट्वीट कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट जातिवादी है, अब भी कोई शक! EWS आरक्षण की बात आई तो कैसे पलटी मारी कि 50% की सीमा संवैधानिक बाध्यता नही है, लेकिन जब भी SC/ST/OBC को आरक्षण देने की बात आती थी तो इंदिरा साहनी मामले में लगी 50% की सीमा का हवाला दिया जाता रहा"।
सुप्रीम कोर्ट जातिवादी है, अब भी कोई शक! EWS आरक्षण की बात आई तो कैसे पलटी मारी कि 50% की सीमा संवैधानिक बाध्यता नही है लेकिन जब भी SC/ST/OBC को आरक्षण देने की बात आती थी तो इंदिरा साहनी मामले में लगी 50% की सीमा का हवाला दिया जाता रहा।
— Dr. Udit Raj (@Dr_Uditraj) November 7, 2022
वहीं इस पूरे मामले में सोशल एक्टविस्ट हंस राज मना ने लिखा है कि "SC,ST,OBC के आरक्षण बढ़ाने की मांग के वक्त इंदिरा साहनी मामले की 50%सीमा की वैधता की दुहाई देने वाले सुप्रीमकोर्ट ने आज, 8लाख सालाना कमाने वाले को सवर्ण को गरीब मानते हुए 10% EWS आरक्षण जारी रखने का फैसला दिया है। बैंच में सभी 5सवर्ण जज थे। यह फैसला है या फरमान? #casteist_collegium
ज्ञात रहे कि देश में गरीब तबके के लोगों को उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में मिलने वाले 10 फीसदी EWS कोटे को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 3-2 से इस कोटे के पक्ष में फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट ने इस कोटे को गलत करार दिया है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। जस्टिस भट्ट ने इस पर विस्तार से बात करते हुए कहा आरक्षण के लिए 50 फीसदी की तय सीमा का उल्लंघन करना गलत है। यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि OBC और एससी-एसटी वर्ग में गरीबों की सब से ज्यादा संख्या है। ऐसे में आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण से उन्हें बाहर रखना भेदभावपूर्ण है।
SC,ST,OBC के आरक्षण बढ़ाने की मांग के वक्त इंदिरा साहनी मामले की 50%सीमा की वैधता की दुहाई देने वाले सुप्रीमकोर्ट ने आज,8लाख सालाना कमाने वाले को सवर्ण को गरीब मानते हुए 10% EWS आरक्षण जारी रखने का फैसला दिया है। बैंच में सभी 5सवर्ण जज थे।ये फैसला है या फरमान? #casteist_collegium
— Hansraj Meena (@HansrajMeena) November 7, 2022
जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि संविधान में सामाजिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की बात कही गई है। आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात नहीं कही गई है। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़ों की सबसे ज्यादा संख्या ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय के लोगों में ही हैं। ऐसे में इसके लिए अलग से आरक्षण दिए जाने की क्या जरूरत है। जस्टिस रविंद्र ने EWS कोटे को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह आरक्षण कुछ वर्गों को बाहर करता है, जो भेदभावूर्ण है। उन्होंने 50 फीसदी की लिमिट पार करने को गलत बताते हुए कहा कि इस तरह तो समानता के अधिकार का अर्थ आरक्षण का अधिकार हो जाएगा।
EWS कोटे का समर्थन करने वाले जस्टिस जेपी पारदीवाला की टिप्पणियां भी चर्चा का विषय बनी हैं। उन्होंने EWS आरक्षण को सही करार दिया, लेकिन आरक्षण को लेकर नसीहत वाले अंदाज में भी दिखे। उन्होंने कहा कि आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता है। उन्होंने कहा कि आरक्षण किसी भी मसले का आखिरी समाधान नहीं हो सकता। यह किसी भी समस्या की समाप्ति की एक शुरुआत भर है। गौरतलब है कि 2019 में संसद से संविधान में 103वें संशोधन का प्रस्ताव पारित हुआ था। इसी के तहत सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी के आरक्षण का फैसला लिया गया था।
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