वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 23, हसरत मोहानी
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 23वां नाम हसरत मोहानी का है-
हसरत मोहानी -23
सैयद फजल उल हसन जिन्हें हसरत मोहानी के नाम से प्रसिद्धि हासिल हुई, इनका जन्म 14 अक्टूबर 1875 को उन्नाव के एक गांव मोहन में हुआ था। वह एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और उर्दू भाषा के मशहूर शायर थे।
हसरत मोहानी ने ही इंकिलाब ज़िंदाबाद का नारा दिया था, जिसे बाद में भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा और ज़्यादा प्रसिद्धि मिली। हसरत मोहानी ही वह स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने सबसे पहले सन 1921 में अहमदाबाद में आयोजित कांग्रेस की एक सभा के दौरान पूर्ण स्वराज, संपूर्ण स्वतंत्रता या मुकम्मल आज़ादी की मांग उठाई थी। मोहानी जो कि कई सालों तक कांग्रेस के सदस्य रहे थे उन्होंने मुस्लिम लीग की भी सदस्यता ले ली थी, परन्तु उन्होंने मोहम्मद अली जिन्नाह की दो राष्ट्र थ्योरी का कट्टरता से विरोध किया। 3 जून 1947 को विभाजन की घोषणा के साथ ही उन्होंने मुस्लिम लीग से अपना इस्तीफा दे दिया और भारत में ही रहने का फैसला किया था। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्के समर्थक थे उन्हें "MOLANA WHO LOVES KRISHNA'' के ख़िताब से भी नवाज़ा गया था।
बाद में हसन को संविधान सभा का सदस्य भी चुना गया, इसी सभा ने संविधान का ढ़ांचा डॉ. भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में तैयार किया था। मोहानी ने संविधान में संघवाद, प्रस्तावना, धार्मिक आरक्षण और जमींदारी उन्मूलन अदि मुद्दों का ढांचा तैयार करने में काफी अहम रोल निभाया था।
मोहानी ने सवतंत्रता संग्राम में काफी संघर्ष किया, और ब्रिटिश विरोधी विचारों के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। जेल जाने की खास वहज उनके द्वारा उनकी पत्रिका 'उर्दू ए मुअल्ला' में मिस्र में ब्रिटिश नीतियों के वोरोध में एक आर्टिकल छापना थी। हसरत मोहानी ने स्वदेशी आंदोलन के समर्थन में अलीगढ़ में स्वदेशी स्टोर भी खोला था।
निस्वार्थ भारतीय सवतंत्रता के लिए लड़ने वाले हसरत मोहनी की मृत्यु 13 मई 1951 को लखनऊ में हुई थी।
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