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सरकार को कांग्रेस की दो टूक, बिना JPC कुछ भी नहीं

आज आप जानते हैं कि ये 5 फरवरी से रोज हम तीन सवाल प्रधानमंत्री से पूछते आ रहे हैं। आज सौ सवाल पूरे हो गए हैं। ये सवाल हम अडानी से नहीं पूछ रहे हैं, ये सवाल हम प्रधानमंत्री जी से पूछ रहे हैं, सरकार से पूछ रहे हैं। इन सौ सवालों के बारे में जो संदर्भ है, कैसे तैयार किया गया, मेरे साथी अमिताभ दुबे इस पर आपको जानकारी देंगे, क्योंकि ये पिछले डेढ़ महीने से सुबह, दोपहर, शाम, रात इन सवालों में लगे हुए हैं।

By: वतन समाचार डेस्क

श्री जयराम रमेश ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि 1961 में एक हिट फिल्म बनाई गई थी, उस फिल्म का नाम था - जब प्यार किसी से होता है। देवानंद और आशा पारेख और उस फिल्म का एक हिट गाना था, आपको भी याद होगा - सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है, कल भी रहेगा। आज मुझे वो गाना याद आता है - सौ सवाल पहले, जेपीसी की मांग थी, आज भी है और कल भी रहेगी।

आज आप जानते हैं कि ये 5 फरवरी से रोज हम तीन सवाल प्रधानमंत्री से पूछते आ रहे हैं। आज सौ सवाल पूरे हो गए हैं।  ये सवाल हम अडानी से नहीं पूछ रहे हैं, ये सवाल हम प्रधानमंत्री जी से पूछ रहे हैं, सरकार से पूछ रहे हैं। इन सौ सवालों के बारे में जो संदर्भ है, कैसे तैयार किया गया, मेरे साथी अमिताभ दुबे इस पर आपको जानकारी देंगे, क्योंकि ये पिछले डेढ़ महीने से सुबह, दोपहर, शाम, रात इन सवालों में लगे हुए हैं।

मैं कहना चाहता हूं सुप्रीम कोर्ट ने जो समिति बैठाई है, विशेषज्ञों की समिति, जाने-माने विशेषज्ञ हैं। ये समिति अडानी केन्द्रीत समिति है, ये अडानी से सवाल पूछंगे। हम जो सवाल कर रहे हैं, अडानी से नहीं कर रहे हैं, हम प्रधानमंत्री जी से कर रहे हैं, सरकार से कर रहे हैं। ये सवाल सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा नहीं किए जा सकते हैं। ये सिर्फ जेपीसी में ही उठाए जा सकते हैं। जेपीसी में अध्यक्ष बीजेपी के होंगे, बहुमत बीजेपी का होगा, पर उसके बावजूद विपक्ष को एक मौका मिलेगा इन सवालों को उठाने के लिए, जवाब आएगा सरकार की ओर से और ये सब रिकॉर्ड में जाएगा।

1992 में हर्षद मेहता घोटाले के समय जेपीसी की मांग उठी थी विपक्ष की ओर से। सरकार ने पहले हिचकिचाई, उसका समर्थन नहीं किया। पर दो-तीन महीने बाद आपको याद होगा प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी, वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी ने मंजूरी दे दी और हर्षद मेहता घोटाले में 1992 में एक जेपीसी का गठन हुआ। रिपोर्ट आई, उस पर कार्यवाही हुई, सभी को और अधिकार दिए गए, कैपिटल मार्केट को और मजबूत किया गया। 2001 में एक और घोटाला हुआ, केतन पारेख घोटाला। कांग्रेस विपक्ष में थी। अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे। तब प्रणव मुखर्जी जी, डॉ मनमोहन सिंह जी, सभी ने मिलकर जेपीसी की मांग की। वाजपेयी जी ने नहीं मानी, पर बातचीत के बाद जेपीसी का गठन हुआ। तो जेपीसी का गठन हुआ, 1992 में, जब कांग्रेस की सरकार थी। जेपीसी का गठन हुआ 2001 में तब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी और दोनों स्टॉक मार्केट घोटाले थे।  

ये जो घोटाला है, महाघोटाला, ये सिर्फ स्टॉक मार्केट तक सीमित नहीं है, ये सरकार की नीयत और सरकार की नीतियों से संबंधित है। ये सवाल इसीलिए हम कर रहे हैं। हम ये नहीं कह रहे हैं चुप्पी तोड़िए गौतम अडानी जी, हम कह रहे हैं चुप्पी तोड़िए प्रधानमंत्री जी और यही मौलिक अंतर है सुप्रीम कोर्ट समिति और जेपीसी के बीच में। ये सुप्रीम कोर्ट समिति सरकार से कोई सवाल नहीं करेगी। सरकार को क्लीन चिट दे देगी और हम समझते हैं, मैंने 15 फरवरी को आपको संबोधित किया था और मैंने कहा था आपको, आपको याद होगा कि ये समिति सरकार को, प्रधानमंत्री को दोषमुक्त करने की कवायद के अलावा और कुछ नहीं है। सरकार और प्रधानमंत्री को दोषमुक्त करने की कवायद के अलाना ये समिति और कुछ नहीं है। ये क्लीन चिट समिति होगी सरकार को। तो इसलिए जेपीसी की मांग हम बार-बार कर रहे हैं।

इसके पहले अमिताभ दुबे जी आपको इन सवालों के बारे में और कुछ जानकारी दें, आज का सौवां सवाल हमने निकाल दिया है। आपको मिल गया होगा, अंग्रेजी में और हिंदी में।

मैं एक चीज और कहना चाहता हूं, उसके बाद अमिताभ जी आपको संबोधित करेंगे। ये जो प्रयास किया जा रहा है पिछले 3-4 दिनों से कि एक फॉर्मूला ढूंढ़ा जाए, एक बीच का रास्ता ढूंढा जाए, एक मिडिल पाथ ढूंढ़ा जाए कि विपक्ष जेपीसी की मांग वापस ले ले तो बीजेपी राहुल गांधी जी की माफी की मांग वापस ले लेंगे। ये हमारे लिए बिल्कुल हम मंजूर नहीं है। इन दोनों के बीच में कोई ताल्लुकात नहीं है, कोई रिश्ता नहीं है। जो सवाल हम पूछ रहे हैं, मौलिक सवाल हैं, बुनियादी सवाल हैं, ये हकीकत है, ये हुआ है। जो माफी मांगने की बात बीजेपी कर रही है, वो बिल्कुल बेबुनियादी है, झूठे आरोप हैं। तो इन दोनों के बीच में कोई बराबरी नहीं हो सकती है। ये कहना कि आप ये वापस लीजिए, तो हम माफी मांगने की बात वापस लेंगे, हम सौदा करने के लिए तैयार नहीं हैं। इन दोनों के बीच में कोई रिश्ता नहीं है।

राहुल गांधी जी ने स्पीकर को लिखा है, लोकसभा के रूल 357 के तहत उन्होंने मांग की है कि उनको बोलने का एक मौका दिया जाए, जो उनका लोकतांत्रिक हक बनता है। स्पीकर उस पर क्या निर्णय लेंगे, वक्त ही बता पाएगा, पर ये कहना कि एक फॉर्मुला है, ये फॉर्मुला हम पहचानते नहीं हैं, हम स्वीकारते नहीं हैं। हम इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं क्योंकि ये बिल्कुल जमीन-आसमां का फर्क है। जेपीसी की मांग और माफी की मांग के बीच में। ये माफी की मांग जो बात आ रही है बार-बार, ये इसलिए कहा जा रहा है ताकि ध्यान अडानी घोटाले से हटाया जाए ताकि जो प्रधानमंत्री की प्राथमिक जिम्मेदारी है, नीयत है, नीतियां हैं, जिसकी वजह से ये घोटाला हुआ है, उससे ध्यान हटाया जाए।

डिस्टॉर्ट, डीफेम, डायवर्ट, प्रधानमंत्री की भाषा ये मैं इस्तेमाल कर रहा हूं, 3 डी प्रधानमंत्री, 5 डी, 4 एस, ऐसे बोलते रहते हैं, मैं प्रधानमंत्री को कहना चाहता हूं, 3 डी हैं -  डिस्टॉर्ट, डीफेम, डायवर्ट। उन्होंने राहुल गांधी जी के बयानों को डिस्टॉर्ट किया, राहुल गांधी जी को डीफेम किया, बदनाम किया और अभी डायवर्ट करना चाहते हैं, अडानी के मामले से।

तो मैं अमिताभ दुबे जी से निवेदन करूंगा कि आपको कुछ जानकारी दें इन 100 सवालों के बारे में और आगे क्या रास्ता होगा इन 100 सवालों को लेकर।

श्री अमिताभ दुबे ने कहा कि जैसा जयराम जी ने कहा हमने आज 99 वें सवाल प्रधानमंत्री जी से पूछ रखे हैं और आज 100 नंबर का सवाल है और हमारा उद्देश्य आज ये है कि हम प्रधानमंत्री जी से पूछें कि जो अनेक जांच एजेंसियां हमारे देश में हैं, जिनका दुरुपयोग लगातार हुआ है विपक्ष के खिलाफ, सिविल सोसायटी के खिलाफ, इंडिपेंडेड माइंडेड बिजनेसेज के खिलाफ, उनका सही उपयोग कब करने वाले हैं? आपको मैं याद दिलाऊंगा कि 5 सितंबर, 2016 में, चीन में जी-20, आजकल जी-20 की मिटिंग चल रही है यहाँ पर। चीन में जी-20 की मीटिंग के समय मोदी जी ने क्या कहा था - "We need to act to eliminiate safe havens for economic offenders, track down and unconditionally extradite money launderers and break down the web of complex international regulations and excessive banking secrecy that hide the corrupt and their deeds".

अब आप सब जानते हैं कि क्या-क्या इसके बाद निकला है अडानी ग्रुप के बारे में हिंडनबर्ग रिवेलेशन के बाद कई पत्रकारों ने लगातार इसकी कवरेज की है और काफी कुछ निकल कर आया है।

पहली एजेंसी है सेबी, उनकी अन्य जांच चल रही हैं, लेकिन मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि 2007 में ये जो जयराम जी ने केतन पारेख घोटाले के बारे में जो जेपीसी के बारे में कहा था, 2007 में सेबी ने कहा था उस घोटाले के संदर्भ में, "Promoters of Adani group aided and abetted Ketan Parekh entities in manipulating the stock market."  अब आप जानते हैं कि 2019 और 2022 के बीच अडानी ग्रुप की स्टॉक मार्केट कैपिलाइजेशन 1000 प्रतिशत बढ़ी। ये एक बड़े ग्रुप के लिए बहुत हाई स्पीड है, ये छोटे स्टार्टअप कर सकते हैं, लेकिन इतना बड़ा ग्रुप जब होता है, तो रेड फ्लैग आने चाहिए थे। अब ये कैसे हो सकता है कि सेबी ने इसके बारे में कुछ किया नहीं। जबकि केतन पारेख मामले में यही पैटर्न दिखाई दे रहा है।

तो हम प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहते हैं हालांकि सेबी एक क्वासी ज्यूडिशियल बॉडी है, लेकिन क्या उस पर कोई दबाव आया कि ये जांच लॉजिकल कनक्लूजन तक नहीं पहुंची?

दूसरी बात जो है, हम सब जानते हैं कि अन्य शैल कंपनी जो हैं, अडानी ग्रुप से जिनका रिश्ता है, मानटोरेजा है, एलारा इंडिया अपोर्चुनिटी फंड है, मॉन्टेरोसा का 37 हजार करोड़ इनवेस्टमेंट था अडानी ग्रुप में। एलारा का 24 हजार करोड़ इनवेस्टमेंट था अडानी ग्रुप में। ये जो राउंड ट्रिपिंग मनी लॉड्रिंग के आरोप हैं, ये क्लीयरली दिखाई देता है कि इसमें ये सारी रिलेटेड़ पार्टी थी। जिसकी मॉन्टेरोसा की सीईओ का अडानी फैमिली से रिश्ता है, जो एलारा ग्रुप है, उसका क्लीयर रिश्ता है विनोद अडानी जी से और अडानी ग्रुप से। तो इसकी जांच कब होगी, कैसे होगी, ये हम जानना चाहते हैं?

अब एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट को लीजिए। जैसे कि मैंने कहा एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट ने कई केस लगा रखे हैं विपक्ष के खिलाफ। ईडी का लक्ष्य है मनी लॉड्रिंग, फॉरेन एक्सचेंज वायलेशन और आर्थिक भगौड़ों पर जांच करना। मैं आपको एक-दो उदाहरण देता हूं। एक चीनी नागरिक हैं चांग चुंग-लिंग, इनका अडानी ग्रुप से लंबा रिश्ता है। 2005 में इन्होंने बताया था कि इनका रेजिडेंशियल एड्रैस और विनोद अडानी का रेजिडेंशियल एड्रेस सिंगापुर में एक ही था। उनके खिलाफ आरोप लगाया गया है कि नोर्थ कोरिया पर जो यूएन सेंक्शन लगे हुए थे, इसका वायलेशन उन्होंने एक अडानी फंडिड शिपिंग कंपनी के साथ किया था। आप सब जानते हैं नॉर्थ कोरिया का ताल्लुक चीन और पाकिस्तान के साथ किस प्रकार का है। इनकी एक फर्म है गुडामी इंटरनेशनल। कुछ साल पहले एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट ने अपने आरोप पत्र में अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले, जो हैलीकाप्टर का घोटाला था कुछ साल पहले, इस कंपनी का नाम उस घोटाले का नाम दो आरोप पत्रों में था, तीसरे आरोप पत्र में ये आरोप गायब हो गया। तो हम जानना चाहते हैं कि ऐसे रिश्ते अडानी ग्रुप के, इनकी जांच हो रही है, इनके बारे में कोई कार्यवाही होगी कि नहीं?

एक और कंपनी है एक्रोपोलिस ट्रेड एंड इनवेस्टमेंट। आप जानते हैं कि अंबुजा सिमेंट का टेक ओवर पिछले साल हुआ था और हमें पता चला, आप सबको पता है कि विनोद अडानी इनके अल्टीमेट बैनिफिशियट ऑनर हैं, काफी सारी शैल कंपनी हैं लेकिन ये पता चल गया, मतलब उन्होंने डिक्लेयर किया, उन्होंने ये बात छुपाई नहीं कि वो अल्टिमेट बैनिफिशियल ऑनर हैं। एक शैल कंपनी एक्रोपोलिस 2020-21 में उसके रेवेन्यू 7 बिलियन डॉलर थे, प्रोफिट भी 7 बिलियन डॉलर थे, यानी कि 51 हजार करोड़ रुपए, अगले साल उनके प्रोफिट और इंकम जीरो थे, वैसे इनका थोड़ा सा नेगेटिव में था प्रोफिट। तो ये कैसे हो सकता है कि एक शैल कंपनी एक साल में 7 बिलियन डॉलर कमा रही है, अगले साल शून्य कमा रही है? एक बड़ी महत्वपूर्ण कंपनी का ऑनरशिप है, भारत की एक महत्वपूर्ण कंपनी का सिमेंट सेक्टर में और ये सारी हरकतें हो रही हैं और इसकी कोई जांच नहीं और इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा रहा है, तो ईडी इस मामले की जांब कब करेगी और कैसे करेगी, ये हम जानना चाहते हैं?

एक और एजेंसी है सिरियस फ्रॉड इनवेस्टिगेशन ऑफिस मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर में। वाइट कॉलर क्राइम में इनका इनवेस्टिगेशन होता है और 2012 में उन्होंने अडानी ग्रुप और केतन पारेख जिनका जिक्र जयराम जी ने किया था, उनके खिलाफ एक आरोप पत्र डाला था, जिसमें 500-600 करोड़ का मुनाफा, इल्लीगल मुनाफा स्टॉक मैन्युपुलेशन से हुआ था, उसका आरोप लगाया था। चीटिंग और कॉन्सपिरेसी के केस थे गौतम और राजेश अडानी के खिलाफ। लेकिन इसके बाद एसएफआईओ ने कुछ नहीं किया और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के एक महीने बाद वो केस फिर से शुरु हो गया और बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनसे पूछा 22 फरवरी को कि आप अचानक यहाँ कैसे जाग गए, क्या बाहर के एक्सटर्नल फैक्टर के कारण आप इस जांच को आगे फिर से ले रहे हैं?

तो ये एक बड़ा महत्वपूर्ण केस है और एक और उदाहरण है, किसी कारण ये लोग सो गए थे काफी समय के लिए और अब थोड़े दबाव में आकर थोड़ा प्रेशर बढ़ रहा है तो केस आगे चलने लगा है। अब सीबीआई, एक और एजेंसी है। आप सबको पता है कि ईडी की तरह सीबीआई ने कुछ साल पहले 2019 में मुंबई एयरपोर्ट के प्रीवियस ऑनर के खिलाफ केस किए थे और उसके कुछ ही महीने बाद अडानी ग्रुप को मुंबई एयरपोर्ट मिल गया था। लेकिन हम ये भी कहना चाहते हैं कि सीबीआई सिर्फ दुरुपयोग के लिए नहीं है, सीबीआई का उपय़ोग भी किया जा सकता है। एक उदाहरण है झारखंड का केस, कि झारखंड में अडानी ग्रुप के गोड्डा एक प्लांट बना है, वो बांग्लादेश के लिए। आप सब जानते हैं कि बांग्लादेश के ऑफिसर ने कहा है कि मोदी जी का बहुत दबाव पड़ा था शेख हसीना पर ताकि अडानी के पावर प्लांट से बांग्लादेश से एग्रीमेंट हो जाए पावर सप्लाई प्लांट के लिए। उसी प्लांट के संदर्भ में झारखंड की पॉलिसी होती थी कि जो भी प्लांट हमारे राज्य में बनेगा उसका 25 प्रतिशत पॉवर सब्सिडाइज्ड रेट पर स्टेट ले पाएगा। इस पॉलिसी को बदला गया, एक ही कंपनी का फायदा हुआ और वो था अडानी ग्रुप और फायदा एक कैल्क्यूलेशन है कि 25 साल जो पावर प्लांट का लाइसेंस प्लान है 7,500 करोड़ का फायदा होगा अडानी ग्रुप का। अब ये पॉलिसी जो कई सालों से चल रही थी, बदली कैसे, किसने इस पर दबाव डाला? इसकी जांच जरूर होनी चाहिए क्योंकि ये पैसा सीधे कंज्य़ूमर की जेब से आ रहा है।

एक और उदाहरण देता हूं, सीबीआई की एक जांच हुई थी कि दुबई बेस्ड एक कंपनी ने साउथ कोरिया और चीन से 9 हजार करोड़ का पावर इक्विपमेंट खरीदा था। लेकिन उनकी एक्चुअल वैल्यू  3,600 करोड़ निकला। तो ये ऑवर इनवाइसिंग का केस था और डीआरआए रेवेन्यू इंटिलिजेंस और सीबीआई ने इसकी जांच की थी और ये कांटिफाई भी किया था कि 5,500 करोड़ रुपए साइफन आउट हुआ है इंडिया के और सीधे विनोद अडानी से लिंक्ड कंपनी को फायदा हुआ है। अब सीबीआई ने 2015 में अपनी जांच बंद कर दी। उन्होंने कहा ज्यूरिडिक्शियल इशू, क्योंकि ये महाराष्ट्र राज्य से संबंधित है और हम एक ही राज्य में जांच नहीं कर सकते हैं, ये ऑर्ग्यूमेंट था। लेकिन एक दूसरा केस था, ओवर इनवाइसिंग ऑफ इंडिम्यूजिम कोल्ड, वो भी महाराष्ट्र में ही था और वो चलता गया, क्योंकि वो दूसरी कंपनी से संबंधित था, कोई दिल्ली वाली कंपनी थी। तो ये बड़ा सिलेक्टिव सी उनकी अप्रोच है कि जहाँ भी अडानी ग्रुप को फायदा होता है वो केस बंद हो जाता है या पॉलिसी बदली जाती है और जो किसी और कंपनी से संबंधित कार्यवाही चल रही है, वो आगे चलती रहती है।

अब सीबीआई और क्या देख सकती है, आप सब जानते हैं कि सितंबर, 2021 में एक श्रीलंकन कैबिनेट स्पोक्सपर्सन ने कहा कि “India has nominated the Adani Group for Colombo Ports west container terminal.” कुछ ही दिन पहले फॉरेन मिनिस्टर अली सेबरी श्रीलंका के हैं, उन्होंने कहा था कि This is a government to government contract. यानी कि इंडिया ने नोमिनेट किया है अडानी को, इंडिया ने सिलेक्ट किया है अडानी को, इंडिया ने प्रोजेक्ट दिया है अडानी को। लेकिन ही कुछ ही दिन बाद दबाव में आकर प्रेशर आया तो उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं आपने मिसइंटप्रेट किया है।  

एक और उदाहरण देता हूं श्रीलंका के बारे में, सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के चेयरमैन हैं, एमएमसी फर्डिनेंडो हैं, उन्होंने श्रीलंकन पार्लियामेंट में बयान दिया कि Rashtrapati Gotabaya Rajapaksa summoned me after a meeting and said, India’s Prime Minister Modi is pressuring him to hand over the project to the Adani group. उन्होंने सीधा कह दिया, फिर बाद में फोन आए होंगे, उन्होंने कहा नहीं-नहीं मेरा मतलब कुछ और था, लेकिन ये साफ साबित हो रहा है कि मोदी जी अडानी के लिए सेल एंड मार्केटिंग कर रहे हैं। वो हैं एक देश के प्रधानमंत्री, लेकिन काम हो रहा है एक प्राइवेट ग्रुप का, तो इसकी जांच जरुर होनी चाहिए।

अब एक और एजेंसी है डॉयरेक्ट्रेट रेवेन्यू ऑफ इंटेलिजेंस, इन्होंने 2004 और 2006 के बीच में अडानी ग्रुप से संबंधित डायमंड स्कैम में जांच की थी। उसमें गौतम अडानी के छोटे भाई राजेश अडानी और उनके ब्रदल इन लॉ समीर वोरा के खिलाफ सर्कुलेटरी ऑफ डायमंड और ऑवर इनवाइसिंग का, पहले ऑवर इनवाइसिंग का लंबा चल रहा है, लेकिन इस बार डायमंड़ में था और 2013 में कमीशनर ऑफ कस्टम ने उन पर फाइन इम्पोज किए।

राजेश अडानी, समीर वोरा, अडानी एंटरप्राइजेज अब 4 डायमंड कंपनीज़ जो इनसे लिंक्ड थी। लेकिन जैसे ही मोदी जी सत्ता में आए सेंसेटेटिक पहले ट्राइब्यूनल है, उसने पहले रिवर्स कर दिया और डीआरआई ने अपील नहीं किया। अब ट्राईब्यूनल में ऑर्डर तो कोई भी आ सकता है, लेकिन डीआरआई को अपील करना चाहिए। जैसे पावर इक्विपमेंट केस था मैंने बताया 5,500 करोड़ का, डीआरआई ने उसको अपील किया था, लेकिन इसे रहने दिया।

फाइनली एक और उदाहरण देता हूं, इंडोनेशियन कोल का। यहाँ भी अडानी ग्रुप के खिलाफ आरोप है कि इन्होंने इंडोनेशियन कोल का ऑवर इनवाइसिंग किया है और डीआरआई ने कई देशों को लैटर लोगो ट्री भेजे कि हमें जानकारी चाहिए लेकिन इसका कुछ हुआ नहीं है, क्योंकि अडानी ने अपोज किया है, केस चल रहे हैं और डीआरआई कुछ ज्यादा एनर्जी नहीं दिखा रही है।

तो मेरा ये मतलब है कि हमारे पास इतनी जांच एजेंसी हैं - सेबी, एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट, एसएफआईओ, सीबीआई, डॉयरेक्ट्रेट रेवेन्यू ऑफ इंटेलिजेंस, ये लगातार दूसरी कंपनियों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाते हैं, विपक्षी पार्टियों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाते हैं, सिविल सोसायटी के खिलाफ इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन जो उनका उद्देश्य है, जिस कारण के लिए उन्हें स्थापित किया गया था, सोए पड़े हैं या ढंग का काम नहीं कर रहे। तो मेरे पास और भी बहुत उदाहरण हैं, मैं ज्यादा डिटेल में अभी जाना नहीं चाहता। जैसे कोल में गवर्मेंट पॉलिसी कैसे बदली गई, पोर्ट में कैसे बदली गई, एयरपोर्ट तो आपको पता ही है। तो इनके बारे में आपको जानकारी दे सकता हूं अगर आप चाहते हैं। लेकिन मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि हम चाहते हैं कि ये जो एजेंसी हैं, ये अपना काम करें और ढंग से करें और अडानी ग्रुप के खिलाफ जो भी एक्वेजेशन हैं, उनको ढंग से  रिसर्च करें।

श्री जयराम रमेश ने पुन: कहा कि एक सारांश में आज जो हमारा 100वां सवाल है, ये एक सारांश का सवाल है और इन पांच एजेंसी जो अभी-अभी अमिताभ ने गिनाई आपको, सेबी, इनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट, एसएफआईओ, सीबीआई, डॉयरेक्ट्रेट रेवेन्यू ऑफ इंटेलिजेंस इन पांच एजेंसियों के हम सवाल जो उठते हैं, हमने सारांश में दिया है आज और मैंने नहीं समझता हूं, हम नहीं समझते हैं कि ये जो सुप्रीम कोर्ट की समिति है, इन सवालों पर ये उनका विषय है, उनका मन भी नहीं रहेगा इस पर विचार करने का और उनके टर्म ऑफ रेफरेंस में ये शामिल नहीं है। ये ऐसे सवाल जो उठते हैं, जैसे कि मैंने पहले कहा, फिर भी दोहराऊंगा, ये सवाल हम प्रधानमंत्री से कर रहे हैं, ये सवाल हम सरकार से कर रहे हैं, ये सवाल जो उठते हैं, ये उनकी नीयत और नीतियों पर उठते हैं और ये सवाल सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा जवाब नहीं मिल सकता। मिसाल के तौर पर जिस तरह से हवाई अड्डों का निजीकरण हुआ है। नीति आयोग ने कहा कि सिर्फ एक कंपनी को दो हवाई अड्डे के ऊपर नहीं देना चाहिए, पर सारे के सारे 6 जो बेचे गए हैं, वो सिर्फ एक ही ग्रुप यानी कि अडानी ग्रुप को बेचे गए हैं।

बंदरगाहों का निजीकरण जो आप देख रहे हैं, ऐसे सवालों का जवाब सिर्फ जेपीसी के माध्यम से ही रोशनी डाल सकते हैं। इसका जवाब जो निकलेगा, सिर्फ जेपीसी में जो बातचीत होती है, उसी से निकल सकता है।

तो साथियों, ये आज रहा हमारे लिए तो एक मील पत्थर है, हमने जब शुरुआत की थी, उम्मीद नहीं रखते थे कि हम 100 पहुंच पाएंगे, लेकिन हमें इतना मैटेरियल मिला और इतने कई -कई क्षेत्रों में हमें लोग हमें जानकारी देते रहे कि हमें अभी मुश्किल पड़ा, जिसको हमें शामिल करना है और जिसको हमें थोड़ा अभी के लिए पीछे रखना है। तो ये रहे 100 सवाल प्रधानमंत्री से अडानी घोटाले के बारे में, जो सिर्फ जेपीसी ही इस पर विचार कर सकती है। हमारी मांग है कि जेपीसी का गठन हो। ये मांग बरकरार रहेगी पार्लियामेंट के अंदर और पार्लियामेंट के बाहर।

एक प्रश्‍न पर कि आपने 100 सवाल पूछ लिएसरकार आपके एक सवाल का भी नोटिस नहीं दे रही है क्‍या कहेंगेश्री जयराम रमेश ने कहा कि सरकार ने बीच में कहीं-कहीं नोटिस लिया है, मैं आपको मिसाल देता हूं। हमने सवाल उठाया था श्रीलंका के विदेश मंत्री के बयान पर, जब हमने सवाल उठाया था, कुछ ही घंटों बाद या अगले दिन उन श्रीलंका के विदेश मंत्री का इंटरव्‍यू दूरदर्शन में आया और उन्‍होंने कहा कि भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है कि हमने अडानी को चुना था, हालांकि उनका पहला इंटरव्‍यू अलग था। तो ये एक उदाहरण है कि जो हमने सवाल उठाए थे, उसका कुछ असर हुआ है, हालांकि उन्‍होंने बोला नहीं है कहीं, उन्‍होंने कुछ कहा नहीं है लिखित रूप में या वक्‍तव्‍य देकर उन्‍होंने कुछ कहा नहीं, पर कहीं न कहीं लोग सरकार में इसको देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं और जहां कुछ डैमेज कंट्रोल हो सकता है, वो डैमेज कंट्रोल कर सकते हैं, वो कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर ये श्रीलंका के बारे में।

एक अन्‍य प्रश्‍न पर कि आपने ये सवाल जो उठाए हैं इसकी परिणति क्‍या होगीश्री जयराम रमेश ने कहा कि ये 100 सवाल तो हमने उठाए हैं, इसको हमें आगे ले चलना हैं, राजनीतिक तौर से हमें ले चलना है। हमारे संगठन की ओर से हम इसको आगे ले चलेंगे। ऐसे तो प्रदर्शन हुए हैं, प्रोटेस्‍ट हुए हैं अलग-अलग राज्‍यों में, पर देखते जाइएगा, ये हमारे लिए एक महत्‍वपूर्ण मुद्दा है, ये राजनीतिक मुद्दा है, ये सिर्फ स्‍टॉक मार्केट से जुड़ा हुआ नहीं है, ये सरकार की नीयत और सरकार की नीतियों से जुड़ा हुआ है। इसको हम यहां तक ही नहीं रखेंगे, इसको हम जरूर राजनीतिक तौर से संगठन के माध्‍यम से इसको आगे ले चलेंगे, जनता के बीच में हम जरूर इसको ले जाएंगे।

एक अन्‍य प्रश्‍न पर कि कल टीएमसी ने अडानी के मसले पर प्रोटेस्‍ट कियाउन्‍होंने मांग रखी कि जो गैर बीजेपी शासित राज्‍य हैं उनको अडानी के मामले पर एफआईआर करनी चाहिएजांच करनी चाहिए, क्या कहेंगेश्री रमेश ने कहा कि मुझे हंसी आती है इसको देखकर। जिन्‍होंने ये सुझाव दिया है उनका एक ही मकसद है कि इस सरकार को क्‍लीनचिट मिले। ये जो सवाल उठते हैं इस घोटाले में, अभी-अभी अमिताभ ने आपको कहा है... सेबी, क्‍या राज्‍य सरकार सेबी के बारे में कुछ कर सकती है? ईडी, क्‍या राज्‍य सरकार कुछ कर सकती है ईडी के बारे में? डीआरआई, क्‍या राज्‍य सरकार की कोई भूमिका है? सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिस, उसमें क्‍या राज्‍य सरकार की भूमिका है? सीबीआई, क्‍या राज्‍य सरकार की कोई भूमिका है? क्‍या जांच करेगी? ये सवाल तो प्रधानमंत्री के दरवाजे पर है। राज्‍य सरकार क्‍या जांच करेगी कि हवाईअड्डों का निजीकरण कैसे हुआ है? बंदरगाहों का निजीकरण कैसे हुआ? क्या ये राज्‍य सरकार की जिम्‍मेदारी है? ये सब केंद्र सरकार की नीति है। तो मुझे हंसी आई कल जब किसी ने मुझे कहा कि ये सुझाव आया है,

 

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