अपने एक लिखित वक्तव्य में मो.आज़म खां ने कहा कि पूर्व कांग्रेसी सांसद सज्जन कुमार को 1984 के दंगों के आरोप में उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है, जो समाज में अन्याय करने वालों और क़त्ल-ओ-ग़ारतगरी फ़ैलाने वालों के लिए एक सख्त नसीहत है | माननीय उच्च न्यायालय दिल्ली ने अपने फैसले में यह भी ज़िक्र किया है कि न सिर्फ 1984 के सिख दंगों में बल्कि 2002 के गुजरात और मुज़फ्फर नगर दंगों में भी ठीक उसी तरह अल्पसंख्यक लोगों की हत्या कि गई जैसे अन्य दंगों में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया है अपराधियों ने राजनैतिक संरक्षण का उपयोग किया और बच निकले |
आजम खान द्वारा इश्यू की गयी प्रेस रिलीज़ को पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक कीजिये
press note mo.azam khan sahab.pdf
देश की दूसरी अल्पसंख्यक आबादी (मुसलमान) देश की न्यायिक व्यवस्था से यह जानना चाहते हैं कि वोह इस बात पर क्यूँ और कितना भरोसा करें ? और यह भी जानना चाहते हैं कि क्या माननीय उच्च न्यायलय गुजरात ने दंगाइयों के सिलसिले में जो निर्णय दिया, साथ ही एस.आई.टी. गुजरात और सी.बी.आई. ने दंगाइयों के नाम निकाल कर न्यायिक प्रक्रिया का सिर ऊंचा किया था या नीचा ? गुजरात के कमज़ोर मारे गए लोगों की लाशों पर उच्च संवैधानिक पदों पर बैठ कर क़ानून,संविधान और इंसाफ़ की जो धज्जियाँ उडाई गई वोह सही हैं या नहीं ? माननीय उच्च न्यायलय ने गुजरात दंगों को लेकर राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर जो टिप्पणी की है वोह सही है या नहीं ?
मो.आज़म खां ने सर्वोच्च न्यायलय से यह उम्मीद ज़ाहिर की है कि वह उच्च मान्यताओं का निर्वाह करते हुए माननीय उच्च न्यायलय दिल्ली की एतिहासिक टिपण्णी पर जो कि गुजरात तथा मुज़फ्फरनगर दंगों से सम्बंधित है उस पर सुमोटो संज्ञान लेने का कष्ट करेंगे ?
माननीय सर्वोच्च न्यालय के ऐसा करने से न तो कोई ज़िन्दगी वापस आ सकती है और न ही इन मज़लूम परिवारों की आँख से निकला आँसू लेकिन सर्वोच्च न्यायलय के द्वारा लिए गए इस संज्ञान से भविष्य में एक शांत और सम्रद्ध हिन्दोस्तान बन सकेगा | साथ ही आमजन का भरोसा क़ानून की बालादस्ती पर और मज़बूत होगा |
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