अखिल भारतीय किसान महासंघ के अध्यक्ष डॉ राजाराम त्रिपाठी ने वतन समाचार से विशेष बातचीत में कहा है कि सरकार पहले दिन से किसानों और किसान आंदोलन के बीच मतभेद पैदा करना चाहती थी और वह हर संभव प्रयास कर रही थी कि किसी तरह से इस आंदोलन में दरार पैदा हो. उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को मीडिया का रोल भी अत्यंत निंदनीय रहा. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को बचाने और लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए जिस तरह की मीडिया की जरूरत होती है उस तरह की मीडिया का अभी हमारे यहां अभाव है.
उन्होंने कहा कि मीडिया ने देश के सामने सच्चाई को नहीं रखा और उन 99% किसानों के बारे में कोई खबर नहीं दिखाई जो हाथों में तिरंगा लिए पैदल मार्च कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सिर्फ उन लोगों को दिखाया गया जो किसान नहीं थे और दंगाई थे. इस की जांच होनी चाहिए. इस के पीछे कौन लोग थे, उनकी भी जांच होनी चाहिए और उनके कनेक्शन भी किस विशेष पार्टी से सामने आ रहे हैं, उसकी भी जांच होनी चाहिए. ऐसे में सरकार बच नहीं सकती.
उन्होंने कहा कि हम सोशल मीडिया के आभारी हैं कि उन्होंने किसानों से संबंधित सच्ची खबरों को देश और दुनिया के सामने रखा है और यह अब गांव-गांव पहुंच रहा हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरह से किसान आंदोलन को सरकार और उसके लोग बदनाम करना चाहते हैं, अब वह चीजें बाउंस हो रही हैं जो सरकार पर उल्टा साबित होंगी. उन्होंने कहा कि मीडिया का रोल हो या फिर किसानों के बीच हिंदू किसान, सिख किसान और खालिस्तानी और पाकिस्तान का जो मसला हो बात इस से आगे जा चुकी है और किसान इसमें अब फंसने वाले नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि जब भी सच्चाई मजबूत होती है तो झूठे लोग उस को बदनाम करने के लिए षड्यंत्र रचते हैं. उन्होंने कहा कि यह लोग युद्ध का भी माहौल बनाएंगे, उसकी संभावनाएं प्रकट करेंगे, लेकिन किसान अपनी बात को लेकर के अडिग हैं और किसान तीनों कानून की वापसी से कुछ कम पर पीछे हटने वाले नहीं हैं.
डॉ राजाराम त्रिपाठी ने आगे कहा कि जहां तक किसान संगठनों में मतभेद की बात है, तो मुद्दे पर सब लोग एक साथ हैं और मतभेद कोई गलत नहीं है. मतभेद होना चाहिए, लेकिन सबकी एक ही मांग है कि यह कानून वापस होने चाहिए. उन्होंने कहा कि देश के गणतंत्र दिवस के दिन जिस तरह मीडिया और सरकार का रोल रहा वह दुखद है. उन्होंने कहा कि हमारी मीडिया के लोगों से अपील है कि वह जिम्मेदारी का परिचय दें और सच देश को बताए.
उन्होंने कहा कि किसान अपनी मांगों पर अडिग हैं और किसान उस वक्त पीछे नहीं हटेंगे जब तक कि सरकार इन तीनों कानून को वापस नहीं ले लेती.
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