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शिक्षा हासिल करना लड़कियों और पिछड़े समाजों के लिए एक संघर्ष

"शिक्षा हासिल करना पूरे इतिहास में भारत में लड़कियों और हाशिए पर रहने वाले समाजों के लिए एक संघर्ष रहा है।" गर्ल्स इस्लामिक आर्गेनाईजेशन (जीआईओ) के केंद्रीय समिति द्वारा 'लड़कियों को शिक्षा से वंचित करने का इतिहास और भारत में हाशिए पर रहने वाले' समाज' विषय पर आयोजित एक पैनल परिचर्चा में विभिन्न पृष्ठभूमि के वक्ताओं ने इतिहास से हवाला देते हुए कहीं।

By: वतन समाचार डेस्क

शिक्षा हासिल करना लड़कियों और पिछड़े समाजों के लिए एक संघर्ष

 

 

नई दिल्ली: 18 फ़रवरी।  "शिक्षा हासिल करना पूरे इतिहास में भारत में लड़कियों और हाशिए पर रहने वाले समाजों के लिए एक संघर्ष रहा है।" गर्ल्स इस्लामिक आर्गेनाईजेशन (जीआईओ) के केंद्रीय समिति द्वारा 'लड़कियों को शिक्षा से वंचित करने का इतिहास और भारत में हाशिए पर रहने वाले' समाज' विषय पर आयोजित एक पैनल परिचर्चा  में विभिन्न पृष्ठभूमि के वक्ताओं ने इतिहास से हवाला देते हुए कहीं। 

 

 

 

अपने अध्यक्षीय भाषण में जमाअत इस्लामी हिन्द के महिला विंग की राष्ट्रीय सचिव रहमतुन्निसा ए ने कहा कि “सीखने के महत्व” को अपने पूर्वज-माताओं  के प्रयासों को देखना चाहिये जिन्होंने विभिन्न चुनौतियों के बावजूद हासिल किया है। उन्होंने  कहा कि संवैधानिक अधिकारों के लिए खड़े होने और एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए साहस विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षा के अधिकार अधिनियम और 'सब का विकास' के वादे वाले देश में जानबूझकर कट्टरपंथी माहौल बनाकर चुनिंदा समूहों को शिक्षा से वंचित करने की निंदा की।

 

 

 

 परिचर्चा की संयोजक डॉ आमना खानम ने अपने परिचयात्मक भाषण में इतिहास का जिक्र किया कि कैसे रीति-रिवाजों और संस्कृति के नाम पर कई समुदायों को शिक्षा से जानबूझकर वंचित और अज्ञानता के बादल में रखा गया। 'बेटी पढ़ाओ' जैसे नारों की भरमार है, इसके साथ देने और इसे हकीकत में बदलने के लिए जमीनी स्तर पर बहुत कम किया गया है।संस्कृति मंत्रालय, आईआईटी बॉम्बैट में शोध सहायक और इस परिचर्चा की मॉडरेटर जैनब राशिद  ने हाशिए पर रहने वाले समूहों को शिक्षा से वंचित करने के लंबे इतिहास में हिजाब पर मौजूदा हंगामे का संदर्भ दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए इतिहास को समझना महत्वपूर्ण है, साथ ही साथ  हाशिए के समुदायों की महिलाओं को दोहरे निवारक या दोहरे बोझ को समझने की आवश्यकता है।

 

 

 

 

 

ऐसा लिंग के साथ-साथ जाति/जनजाति/धार्मिक पहचान के आधार पर हाशिए पर होने के कारण। पत्रकार चंद्रानी बनर्जी ने भारत में बेरोजगारी, प्राथमिक शिक्षा या स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिति के सवालों की अनदेखी करते हुए हिजाब पर मीडिया में सनसनीखेज बहस पर निराशा व्यक्त की।  उन्होंने कहा कि हम एक समाज के रूप में उन महिलाओं के लिए खड़े होने में विफल रहे हैं जो एक स्वस्थ समाज के निर्माण का अभिन्न अंग रही हैं। चंद्रानी बनर्जी ने सभी लोगों और समूहों से अपने साथी नागरिकों के लिए खड़े होने का आग्रह किया, चाहे उनकी अपनी पहचान कुछ भी हो।अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (EFLU) की शोधकर्ता डॉ सौम्या तमालपाकुला ने दलित महिलाओं और शिक्षा तक उनकी पहुंच पर ध्यान केंद्रित करते हुए तर्क दिया कि शिक्षा जाति व्यवस्था के भीतर मजबूती से अंतर्निहित है। केरल प्रदेश महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव शिबा रामचंद्रण ने कहा कि महिला की स्थिति और उनका इतिहास के बारे में जानने हर किसी की नैतिक ज़िम्मेदारी है।

 

 

 

उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जो झांसी की रानी इस बात का तर्क हैं कि महिला परिवर्तन लाने और चुनौतियों का मुक़ाबला करने का केंद्र हैं। उन्होंने उन पिछड़ी महिलाओं के इतिहास के बारे में भी बात की जिन्होंने शिक्ष क्षेत्र में तेज़ी से प्रवेश होने और समाज के निर्माण हिस्सा लेने के प्रति बढ़ी हुई जागरुकता को उजागर किया। उन्होंने कर्नाटक के मौजूदा सूरतेहाल पर चर्चा करते हुए कहा कि किस तरह शैक्षिक संस्थान जंग का मैदान बन गए हैं। संस्था ‘‘कमज़ोरों के अधिकारों’’ की कार्यकर्ता ऐश्वर्या राज लक्षमी ने कहा कि दलित, पिछड़े और दिव्यांग महिलाओं के साथ अधिक भेद बर्ता जा रहा है और उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है।

 

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