अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में आज का दिन काफी महत्वपूर्ण रहा. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता कमलनाथ के प्रयासों से कांग्रेस पार्टी के बागी नेताओं और गांधी परिवार के बीच संवाद के लिए बुलाई गई मीटिंग में आज पार्टी के दो बड़े दिग्गज संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला दोनों दूर रहे. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पार्टी के बागी नेता इनको बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं और उनका मानना है कि पार्टी में जो भी मतभेद है या टकराव की जो स्थिति आई है उसके लिए पार्टी के यह दोनों नेता जिम्मेदार हैं.
इन पर आरोप है कि यह दोनों पार्टी नेतृत्व को सही जानकारी नहीं देते हैं. ज्ञात रहे कि बीते दिनों यह खबर मीडिया में आई थी कि कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी के आदेश को भी केसी वेणुगोपाल ने लंबित कर रखा था. कांग्रेस पार्टी के सूत्रों ने बताया कि रणदीप सिंह सुरजेवाला सीनियर नेताओं को बाईपास करके आगे बढ़ना चाहते हैं और अपने क़द को बढ़ाने के चक्कर में वह पार्टी नेतृत्व को सही फीडबैक नहीं देते हैं. उन पर आरोप है कि वह जहाँ भी जाते हैं पार्टी वहां हार का सामना करती है या पार्टी में दो फाड़ हो जाता है और पार्टी कमज़ोर हो जाती है.
सुरजे वाला पर यह भी आरोप है कि बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हों ने पार्टी के तमाम सीनियर नेताओं को चुनाव प्रचार के दौरान अलग कर रखा था. इसके बाद उन पर दबे लफ्जों में कई कांग्रेस के लोगों ने यह आरोप भी लगाया था कि सुरजेवाला की वजह से अब पार्टी की स्थिति बिहार में कमजोर हो रही है. वह पार्टी के एक ऐसे नेता को लेकर के आगे आगे चुनाव में घूम रहे हैं जिनकी राज्यसभा की सीट खाली हो जाएगी अगर उनको बिहार का मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बना दिया जाता है और सुरजेवाला उसकी जगह राज्यसभा सदस्य बन सकते हैं.
कई सियासी जानकारों का मानना था कि दरभंगा मधुबनी कटिहार समेत ऐसे तमाम क्षेत्रों में उन तमाम वरिष्ठ नेताओं को नहीं इस्तेमाल किया गया जो क्षेत्रों में प्रभाव रखते थे या जिन के जाने से इन क्षेत्रों में बड़ा असर पड़ सकता था और ऐसे लोगों को प्रचार के लिए आउट सोर्स किया गया जिन्हों ने पार्टी को हारने में बड़ी भूमिका अदा की.
कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि डॉ शकील अहमद से लेकर गुलाम नबी आजाद समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता और महासचिव को भी प्रचार से दूर रखा गया. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार केसी वेणुगोपाल के पास लैंग्वेज की अपनी अलग प्रॉब्लम है और नॉर्थ इंडिया में पार्टी सबसे ज्यादा कमजोर हो रही है और केसी वेणुगोपाल के साथ भाषा की अपनी प्रॉब्लम की वजह से यहां के लिए उनके सामने अपनी बात भी नहीं रख पाते हैं और उनका कोई ऐसा पॉलिटिकल (सियासी - राजनीतिक) एक्सपीरियंस (अनुभव) भी नहीं है जिसकी बुनियाद पर उनको इतने महत्वपूर्ण पदों पर बाकी रखा जाए.
वेणुगोपाल पर कई बार यह भी आरोप लगता रहा है कि वह वरिष्ठ नेताओं की सुनते भी नहीं है और अगर कोई राहुल गांधी से जा करके बात करता है तो वह ऐसे नेताओं को साइड करने में विश्वास रखते हैं. वेणुगोपाल की मंशा यह होती है कि पार्टी की पहली पंक्ति के नेता भी उनके जरिए से ही कांग्रेस नेतृत्व तक जाएं. अब जबकि आज की मीटिंग से KC वेणुगोपाल और सुरजेवाला दोनों को दूर रखा गया है इससे यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस पार्टी पहली बार उन लोगों को पहचानने में सफल रही है जिन पर पार्टी को कमजोर करने का आरोप लगता रहा है.
क्या आने वाले दिनों में पार्टी इस दिशा में आगे बढ़ेगी या फिर भंवर का शिकार हो जाएगी यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा, लेकिन आज की मीटिंग से वेणुगोपाल और सुरजेवाला की दूरी ने बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर तो दे ही दिया है, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए इस पर आगे चलना कितना आसान होगा यह आने वाला समय बताएगा.
ज्ञात रहे कि कोरोना के दौरान वर्चुअल PC (प्रेस कॉन्फ्रेंस) के दौरान एक पत्रकार ने जब राहुल गांधी से सवाल करने की अनुमति मांगी तो सुरजेवाला ने बार-बार अनुमति लेने के बाद भी उनको अनुमति नहीं दी. सूत्रों के अनुसार इसके बाद पत्रकार ने इसकी शिकायत कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता स्वर्गीय अहमद पटेल से की थी और उस पर अहमद पटेल को काफी गुस्सा आया था.
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