भारत सरकार के जरिए लाए गए तीन कृषि बिलों के संबंध में सरकार और किसानों के बीच जारी संवाद के बीच कोई समाधान ना निकलता देख किसानों ने अलग राह पर चलने का फैसला किया है. किसानों की तरफ से इस बात की घोषणा की गई है कि दिल्ली आने वाले दूसरे रास्तों को भी वह बंद कर देंगे.
किसानों ने मंगलवार को भारत बंद का आह्वान किया है. साथ ही उन्होंने कहा है कि 8 दिसंबर को पूरे देश के टोल प्लाजा को फ्री करेंगे और जो दिल्ली के बचे खुचे रास्ते हैं उन्हें भी बंद कर देंगे. किसानों का कहना है कि जिस तरह से भारत सरकार तीनों कृषि संबंधित बिलों से किसानों का दमन करना चाहती है वह उसे किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं.
किसानों की ओर से सोशल मीडिया पर पोस्ट किया जा रहा है कि डिजिटल इंडिया कितना भी हो जाए लेकिन रोटी गूगल से डाउनलोड नहीं किया जा सकता है. किसानों का आरोप है कि जिस तरह से बीएसएनएल और दूसरे सरकारी संसाधन धीरे-धीरे खत्म हो गए और प्राइवेट संस्थानों ने उस पर कब्जा जमा लिया उसी तरह से आने वाले दिनों में मंडी सिस्टम को यह सरकार खत्म करके धीरे-धीरे पूरे सिस्टम को प्राइवेट जगत के हवाले कर देगी और किसानों की जमीन पर कारपोरेट जगत के लोग कब्जा कर लेंगे.
किसानों का यह भी आरोप है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने 1500000 रुपए और दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था और विदेशों से काला धन लाने की बात कही थी लेकिन यह तीनों वादे जमीन पर नजर नहीं आए तो कैसे हम विश्वास कर लें कि आने वाले दिनों में MSP जारी रहेगी और प्राइवेट सेक्टर उस पर कब्जा नहीं करेगा.
किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनकी हितेषी है तो यह तीनों बिल वापस ले और नया बिल ला करके उसमें इस बात का प्रावधान करे कि कोई भी व्यक्ति अगर MSP से कम कीमत पर खरीदता है तो उसे 5 साल की सजा होगी.
किसानों का कहना है कि कॉटन कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया CCI जब खरीद में धांधली को नहीं रोक पा रहा है और सीसीआई के अधिकारियों पर आरोप है कि वह खरीद में होने वाली धांधली में लिप्त हैं तो फिर हम कैसे विश्वास कर लें कि सरकार हमारे साथ छल नहीं करना चाहती है.
किसानों का आरोप है कि जिस तरह से कॉटन अवने पौने दाम में बेची जा रही है उसी तरह से आने वाले दिनों में उनके धान और उनके अनाज को भी आ बेचा जाएगा और किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.
ज्ञात रहे कि देश में पिछले कुछ सालों में किसानों में आत्महत्या का चलन काफी तेजी से बढ़ा है, जिसके बाद किसान और भी डरे हुए हैं. किसानों का कहना है कि जब सरकार यह कह रही है कि किसानों के साथ कोई अन्याय नहीं होगा और वह पूरी तरह से आजाद हैं तो फिर सरकार उनको दिल्ली आने की अनुमति क्यों नहीं दे रही है?
आधी अधूरी आजादी क्यों? वह बुराड़ी के मैदान में क्यों जाएं? किसान जंतर मंतर पर क्यों नहीं जा सकता है? किसानों का आरोप है कि आने वाले दिनों में ₹20 किलो आटे को ₹200 किलो में बेचा जाएगा, इसलिए पूरे देश के लोगों को साथ आने का समय आ गया है. जिस तरह से ₹400 गैस को ₹1000 तक पहुंचा दिया गया और देश में किसी ने प्रदर्शन तक नहीं किया, उसी तरह यह भी होगा.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से यह सरकार महंगाई कम करने का दावा करके सत्ता में आई थी उसी तरह से यह सरकार महंगाई को बढ़ा रही है. इसलिए इस सरकार पर विश्वास करना मुमकिन नहीं है. किसानों का कहना है कि अगर सरकार मानती नहीं है तो वह प्रदर्शन के लिए नई राह अपनाएंगे, लेकिन वह सरकार के आगे झुकने वाले नहीं हैं.
ज्ञात रहे कि बीते दिनों जिस तरह से किसानों ने विज्ञान भवन में सरकारी लंच को ठुकरा कर जमीन पर बैठ कर के अपना लंच खाया उससे उनके इरादे स्पष्ट है कि वह किसी भी सूरत में समझौते के मूड में नहीं हैं और वह हर हाल में तीनों बिलों की वापसी चाहते हैं. यही वजह है कि हरियाणा में सत्तारूढ़ बीजेपी की सहयोगी जे जे पी JJP ने भी किसानों के समर्थन में बातचीत शुरू कर दी है और उसका कहना है कि किसानों पर जो भी मुकदमे हुए हैं बिना शर्त वापस लिए जाएं.
आरएसएस से जुड़ा किसान संगठन भी किसानों की हां में हां मिलाता नजर आ रहा है. बीते दिनों जिस तरह से फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत ने किसान मूवमेंट पर टीका टिप्पणी की थी उसके बाद जिस तरह से सोशल मीडिया पर उनको टोल किया गया उससे भी या स्पष्ट है कि यह किसान डिजिटली काफी साउंड है और हर मोर्चे पर वह संघर्ष करने के लिए तैयार हैं.
गोदी मीडिया के जरिए किसान मूवमेंट को खालिस्तानी बताने का मामला भी अब पूरी तरह से हवा हवाई होता दिखाई दे रहा है और गोदी मीडिया के लोगों को किसान पहचान चुके हैं. यही वजह है कि जब गोदी मीडिया के लोग किसान प्रदर्शन को कवर करने जाते हैं तो कोई भी किसान उनसे संवाद तक स्थापित नहीं करता है और उनको खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है.
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