असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई निराशा, याद दिलाया पूजा स्थल अधिनियम 1991
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट से 2019 में राम मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान अपने एक बयान को याद करते हुए "वॉक द टॉक" करने का आग्रह किया।
ज्ञानवापी मस्जिद मामले को जिला न्यायालय, वाराणसी में स्थानांतरित करने के सुप्रीम अदालत के इस फैसले पर असदुद्दीन ओवैसी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपनी नाराजगी ज़ाहिर करते हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चहिए थी। उन्होंने बहुत ही जल्दीबाजी में इसे जिला न्यायलय को सौंप दिया।
उन्होंने इस्लाम धर्म में नमाज अदा करने से पहले वज़ू के बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “अगर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धार्मिक पालन की अनुमति दें, तो इसमें तालाब से वज़ू भी शामिल है। कोई भी व्यक्ति तब तक नमाज़ नहीं अदा कर सकता जब तक वह वज़ू नहीं करता। फव्वारा संरक्षित किया जा सकता है लेकिन तालाब खुला होना चाहिए।”
उन्होंने वाराणसी के जिलाधिकारी पर आरोप लगाया है कि वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ताओं के साथ सहयोग कर रहें हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वाराणसी के डीएम पर कथित 'शिवलिंग' की सुरक्षा सुनिश्चित करने और परिसर में नमाजियों की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करने का आरोप लगाया गया है।
अपनी बात को आगे रखते हुए असदुद्दीन ओवैसी अदालत के आदेश के बारे में बात करते हुए याद दिलाते हैं कि “भविष्य में इन्हीं तरह के धर्म पर आधारित विवादों को रोकने के लिए पूजा स्थल अधिनियम 1991 बनाया गया था।”
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